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जन्मदिन विशेष: रेडियो का सिक्का खोटा, जो कहलाया भजन सम्राट अनूप जलोटा

अनूप जलोटा ऑल इंडिया रेडियो के अपने पहले ‘ऑडिशन’ में फेल हो गए थे

Shivendra Kumar Singh

आज एक ऐसे गायक अनूप जलोटा की कहानी जो ऑल इंडिया रेडियो के अपने पहले ‘ऑडिशन’ में फेल हो गए थे. उस ‘ऑडिशन’ की इससे भी दिलचस्प एक और कहानी है. दरअसल, जब अनूप जलोटा लखनऊ में पहली बार ऑल इंडिया रेडियो का ऑडिशन देने जा रहे थे तो उनकी मां ने कहा कि वो भी साथ चलकर ऑडिशन देंगी. इस पर अनूप जी ने कहा कि- ‘मां आप रियाज तो करती नहीं हैं, ऑडिशन कैसे देंगी? मां ने जवाब दिया- ‘तुम मेरा फॉर्म भर दो मैं भी ऑडिशन दूंगी.’

अनूप जलोटा ने मां का फॉर्म भर दिया. दोनों ऑडिशन देकर आ गए. जब ऑडिशन के नतीजे आए तो दोनों चौंक गए. मां तो कम चौंकीं, अनूप जलोटा ज्यादा चौंके. दरअसल, ऑडिशन में मां पास हो गई थीं और अनूप जलोटा फेल हो गए थे. इस शुरुआती नाकामी के बाद ये अनूप जलोटा की मेहनत लगन और समर्पण का ही नतीजा है जिस ऑल इंडिया रेडियो में उन्हें फेल किया गया था. आज वो उसी प्रसार भारती के सदस्य हैं.


पिता की वजह से आए संगीत के करीब

आज वे दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो की तमाम व्यवस्थाओं को तय करते हैं. 29 जुलाई 1953 को नैनीताल में पैदा हुए अनूप जलोटा के गुरु और पिता पुरुषोत्तम दास जलोटा भी जाने माने भजन गायक थे. पिता जी के संगीत से जुड़े होने की वजह से अनूप जलोटा के घर कलाकारों का आना जाना था. उन दिनों लखनऊ में बड़े-बड़े कलाकार आया भी करते थे. अनूप जलोटा के पिता सभी बड़े कलाकारों के कार्यक्रमों में उन्हें ले जाते थे.

बचपन में ऐसे ही एक कार्यक्रम में अनूप जलोटा ने लखनऊ में ही पहली बार पंडित जसराज जी को सुना था. फिल्मी गायकों में उन्होंने मुकेश और हेमंत कुमार को वहीं सुना. बेगम अख्तर तो लखनऊ में रहती भी थीं तो उन्हें भी सुनने का सौभाग्य अनूप जलोटा को मिला. बिरजू महाराज, गुदई महाराज, किशन महाराज, पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान ये सभी लोग अनूप जलोटा के पिता जी के मिलने जुलने वालों में थे.

पिता की वजह से इन सभी कलाकारों का आशीर्वाद अनूप जलोटा को भी मिला. इन बड़े कलाकारों के कार्यक्रम देखने और इन्हें अपने घर आते जाते देखकर अनूप जलोटा के मन में बचपन से ही एक ख्वाहिश जागी- वो ये थी कि कभी उन्हें सुनने के लिए भी इसी तरह की भीड़ जमा होगी. बस इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उन्होंने खूब मेहनत करनी शुरू कर दी.

पसंदीदा भजन के बदले पसंदीदा नंबर

स्कूल में अनूप जलोटा का गाना खूब पसंद किया जाता था. कई टीचर तो ऐसे थे जो इम्तिहान के बाद उन्हें घर बुलाते थे. ये न्यौता भी उस दिन का होता था जब अनूप जलोटा की कॉपी जंचनी होती है. एक दो पसंदीदा भजन सुनाए और बदले में मनपसंद नंबर लेकर आए. अनूप जलोटा के बड़े भाई अनिल के साथ बचपन का एक किस्सा उन्हें कभी नहीं भूलता. अनूप जलोटा खुद ही बताते हैं- ‘हम लोग बचपन में रेडियो-रेडियो खेला करते थे. एक दिन भैया ने कहा कि वो गाना गाएंगे और मैं ‘अनाउंसमेंट’ करूं. मैंने कहा कि मैं क्यों ‘एनाउंसमेंट’ करूंगा, आप ‘अनाउंसमेंट’ करिए मैं गाना गाऊंगा. करते-करते बात बढ़ गई.’

अनूप जलोटा कहते हैं, ‘मैं जिद पर उतर आया कि नहीं मैं गाना गाऊंगा और आप ‘अनाउंसमेंट’ करिए. उन्होंने गुस्से में मुझे एक थप्पड़ रसीद कर दिया. वो उम्र में मुझसे बड़े थे इसलिए आखिरकार ‘अनाउंसमेंट’ मुझे करना पड़ा. एक थप्पड़ मैं खा ही चुका था तो अंदर से गुस्सा भी आ रहा था. मैंने ‘अनाउंसमेंट’ शुरू की- ये आकाशवाणी का विविध भारती केंद्र है. रात के 11 बज चुके हैं और कार्यक्रम समाप्त होता है. इतना ‘अनाउंसमेंट’ करने के साथ ही दोबारा पिटने के डर से मैं वहां से भाग गया.’

यूं शुरू हुआ फिल्मी सफर

अनूप जलोटा के करियर के लिहाज से बड़ी घटना उस दिन हुई जब अभिनेता मनोज कुमार ने उनका गाना सुना. उन्हें अनूप जलोटा की आवाज बहुत पसंद आई. उन्होंने फिल्म ‘शिरडी के साई बाबा’ में अनूप जलोटा का गाना रख दिया. ये फिल्म 70 के दशक के आखिरी सालों में आई थी. फिल्म के गाने भी हिट हुए और फिल्म तो खैर हिट हुई ही. इसके बाद संगीत की दुनिया में लोगों ने अनूप जलोटा का नाम जानना शुरू किया. जल्दी ही अनूप जलोटा ने उस दौर के सभी बड़े संगीतकारों के लिए गाना गाया.

कल्याण जी आनंद जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी, हृदयनाथ मंगेशकर, आरडी बर्मन साहब, बप्पी लाहिड़ी, आनंद मिलिंद जैसे उस दौर के सभी बड़े और नामी संगीतकारों के लिए अनूप जलोटा ने गाना गया. हालांकि इस दौरान अनूप जलोटा मंच की गायकी को ‘मिस’ करते थे.

इसके बाद 1980-81 में उनका एक एल्बम आया. उस एल्बम का नाम था-भजन संध्या. उस वक्त उनकी उम्र 27 साल थी. 27 साल की उम्र में ही उनका ये एल्बम घर-घर में पहुंच गया. भजन संध्या एल्बम के भजन पूरे देश में गूंजने लगे. पूरे देश में अनूप जलोटा का नाम हो गया. इसकी वजह थी- भजन संध्या एल्बम में ही वो भजन था- ‘ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन.’ इस एक भजन ने कमाल कर दिया.

जलोटा के प्रसिद्ध भजन की कहानी 

इस भजन की कहानी भी दिलचस्प है. साल 1978 की बात है. अनूप जलोटा अमेरिका गए थे. एक रोज एक करीबी मित्र के यहां खाने का न्यौता था. अनूप जलोटा खा ही रहे थे जब दोस्त की पत्नी ने उन्हें लाकर एक पतली सी किताब दी. अनूप जलोटा ने उस किताब के पन्नों को खाते खाते ही पलटना शुरू किया. अचानक एक पेज पर जाकर उनकी नजर रुक गई. उस पेज पर लिखा था- ‘ऐसी लागी लगन मीरा हो गईं मगन.’

इन लाइनों में जाने कैसा जादू था कि वो बार बार उन लाइनों को पढ़ते गए. इन लाइनों को पूना की इंदिरा देवी जी ने लिखा था. खाना खत्म करने के बाद अनूप जलोटा ने दोस्त की पत्नी से हारमोनियम मंगाया. दरअसल ये लाइनें उनके दिलो दिमाग में लगातार घूम रही थीं. उन्होंने हारमोनियम पर सीधा इन पंक्तियों को गाना शुरू किया और बगैर रुके, बगैर कुछ सोचे गाते चले गए-‘ऐसी लागी लगन मीरा हो गईं मगन’.

खाने के दौरान ही इस भजन की धुन तैयार हो चुकी थी. सच्चाई ये है कि पिछले चार दशक में इस एक भजन से अनूप जलोटा को जितना नाम मिला वो यकीन से परे है. हालत ये हो गई कि अगर वो किसी कार्यक्रम में ‘ऐसी लागी लगन’ भजन ना गाऊं तो आयोजक पैसे नहीं देते हैं. अनूप जलोटा खुद बताते हैं कि अगर कार्यक्रम के आयोजक से पैसे लेने हैं तो ‘ऐसी लागी लगन’ गाना ही गाना है.

भजन की दुनिया से अलग अनूप जलोटा के व्यक्तिगत जीवन में दो साल पहले एक बड़ा झटका लगा था, जब उनकी पत्नी मेधा दुनिया छोड़कर चली गईं. इसके बाद से वो अपनी मां के साथ मुंबई में रहते हैं. बेटा आर्यमन करीब 20 साल का है. वो अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा है. अनूप जलोटा भजन गायकी की इस सुंदर कला को आगे ले जाने में जुटे हुए हैं.