view all

जब लता जी को सामने देखकर रूना लैला को नहीं हुआ भरोसा

सामने से आने वाले शख्स के हाथ में गुलाब के फूलों का एक गुलदस्ता भी था. जैसे जैसे वो करीब आईं लगा कि ये तो लता मंगेशकर हैं.

Shivendra Kumar Singh

1974 में बांग्लादेश की एक गायिका को आईसीसीआर यानी इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस से भारत आने का न्यौता मिला. आईसीसीआर 1950 में बनाई गई संस्था थी जिसका काम भारतीय संस्कृति को देश विदेश से जोड़ना था. भारतीय अधिकारियों ने जब उस गायिका को न्यौता दिया तो ‘कर्टसी’ में पूछा कि वो अपने भारत दौरे पर क्या किसी से मिलना चाहती हैं? जवाब मिला- जी हां, लता मंगेशकर से.

भारतीय अधिकारियों के लिए ये काम थोड़ा मुश्किल था. ऐसा इसलिए क्योंकि लता जी आम तौर पर आयोजित होने वाले संगीत कार्यक्रमों में कम ही जाती थीं. खैर, भारतीय अधिकारियों ने कहा कि वो लता जी से उस गायिका की मुलाकात कराने की पूरी कोशिश करेंगे. तय तारीख पर वो गायिका अपने कार्यक्रम से पहले बैकस्टेज रिहर्सल कर रही थीं. अचानक उन्हें दूर से सफेद साड़ी में कोई आता दिखाई दिया.


सामने से आने वाले शख्स के हाथ में गुलाब के फूलों का एक गुलदस्ता भी था. जैसे जैसे वो करीब आईं लगा कि ये तो लता मंगेशकर हैं. लेकिन आंखों पर यकीन करना मुश्किल था. ये यकीन तब जाकर हुआ जब लता जी उस गायिका के बिल्कुल करीब पहुंच गईं और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया. ये सपना था पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में अपनी गायकी से प्यार बटोरने वाली कलाकार रूना लैला का. जो उन्हें ताउम्र याद रहेगा.

17 नवंबर 1952 को सिलहेट में जन्मी रूना लैला दरअसल इस कथन की ब्रांड एम्बेसडर हैं कि संगीत की कोई सीमा नहीं होती. उन्हें पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत में भरपूर प्यार मिला है. उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ.  22 साल की उम्र में उन्होंने बांग्लादेश में बसने का फैसला किया. भारत के साथ उनका करीबी रिश्ता रहा. ये अलग बात है कि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश में आपसी रिश्ते बनते बिगड़ते रहे लेकिन रूना लैला पिछले करीब पाच दशक से तीनों देशों में अपने चाहने वालों से प्यार पाती रहीं. इसके पीछे थी उनकी लाजवाब आवाज और अदायगी. रूना लैला को बचपन से ही शास्त्रीय कलाओं से प्यार था.

बचपन में उन्होंने करीब चार साल तक शास्त्रीय नृत्य सीखा. चार साल तक शास्त्रीय नृत्य सीखने के बाद उनका रुझान गायकी की तरफ हुआ. बहन दीना लैला भी संगीत जानती थीं. वही रूना की शुरुआती गुरु भी थीं. रूना लैला जब करीब 9 साल की थीं तब उन्होंने अपने स्कूल के एक म्यूजिक कॉम्पटीशन में हिस्सा लिया. उस रोज उन्हें पहला ईनाम मिला. वहां लाहौर के एक जाने माने फिल्म प्रोड्यूसर भी मौजूद थे.

नतीजा ये हुआ कि कुछ ही साल बाद रूना लैला ने फिल्म जुगनू के लिए प्लेबैक सिंगिग की. उस गाने के बोल थे- गुडिया सी मुन्नी मेरी. इस गाने से रूना लैला का नाम पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री में ‘सर्कुलेट’ होने लगा.

ये भी पढ़ें: जन्मदिन विशेष: जो भी किया उषा उत्थुप ने किया शान से...

घर वालों ने और खुद रूना लैला ने समझ लिया था कि अब उनकी गायकी को संजीदगी से लेने का वक्त आ गया था. मां ने भी इस बात को समझा. इसी दौरान उनकी तालीम शास्त्रीय गायकी में शुरू हो गई थी. उस्ताद हबीबुद्दीन खान और उस्ताद अब्दुल कादिर ने रूना लैला को शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सिखाईं.

बाद में रूना लैला ने गजल सम्राट मेहंदी हसन के बड़े भाई गुलाम कादिर से गजल गायकी भी सीखी. अगर आप मेहंदी हसन की गाई मशहूर गजल रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ को रूना लैला की आवाज में सुनें तो आप समझ सकेंगे कि वो किस खूबसूरती से इस गजल को निभाती हैं. दरअसल, गजल गायकी में रूना लैला का नाम तभी से हो गया जब 1966 में उन्होंने उनकी नजरों से मोहब्बत का जो पैगाम मिला गाया.

इस गजलनुमा गीत में रूना लैला की गायकी के सभी पहलू सामने आए. उनकी दमदार आवाज में वो मुलायमियत भी थी जो गजल गायकी के लिए जरूरी होती है. पाकिस्तान टीवी पर रूना लैला के शो शुरू हो गए. अगले कुछ साल उन्होंने पाकिस्तान की फिल्मों में कई लोकप्रिय नगमों को अपनी आवाज दी.

इस दौरान उन्होंने नौशाद समेत कई जाने माने संगीतकारों के साथ काम किया. जिसमें निसार बज्मी, गुलाम अहमद चिश्ती और मास्टर अब्दुल्ला जैसे नाम शामिल हैं. सत्तर के दशक में रूना लैला ने गायकी में पाकिस्तान में अच्छा खासा नाम कर लिया था. इसके बाद वो बांग्लादेश चली गईं. बांग्लादेश में भी रूना लैला ने दर्जन भर फिल्मों में प्लेबैक सिंगिग की. उनकी गायकी को ना सिर्फ काफी पसंद किया गया बल्कि उन्हें तमाम पुरस्कार भी मिले.

भारत में रूना लैला की पॉपुलैरिटी ओ मेरा बाबू छैल छबीला मैं तो नाचूंगी और दमा दम मस्त कलंदर से हुई. 1976 में उन्होंने कल्याण जी आनंद जी के संगीत निर्देशन में एक से बढ़कर एक फिल्म का टाइटिल गीत भी गाया. इसके अलावा उन्होंने संगीतकार जयदेव के साथ भी काम किया लेकिन रूना लैला को भारत में बड़ी कामयाबी मेरा बाबू छैल छबीला और दमादम मस्त कलंदर से ही मिली.

इन दो गानों की लोकप्रियता का आलम ये रहा कि रूना लैला ने आज तक जितने भी शो किए उनमें इस गाने के बिना महफिल पूरी नहीं हुई. बाद के दिनों में बप्पी लाहिड़ी के साथ रूना लैला का एल्बम बहुत हिट हुआ. ये जानना भी दिलचस्प है कि रूना लैला ने अपने करियर में करीब डेढ़ दर्जन भाषाओं में गाना गाया.

ये भी पढ़ें: पुण्यतिथि विशेष संजीव कुमार: जिनके लिए हमें गुलज़ार को शुक्रिया कहना चाहिए

इसके अलावा तीन दिन में तीन गानों की रिकॉर्डिंग कर उन्होंने एक रिकॉर्ड भी कायम किया, जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है. भारतीय टेलीविजन पर रिएलिटी शो में रूना लैला ने जज की भूमिका भी निभाई. पिछले दिनों रूना लैला ने गायकी में अपने पचास साल पूरे किए. कैंसर में अपनी बहन को खोने के बाद रूना लैला कैंसर के लिए काफी चैरिटी भी करती हैं.