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जन्मदिन विशेष: 'पंडितों' के ही दुश्मन बने बैठे हैं 'पंडित' नवाज शरीफ

आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का भी कश्मीरी पंडितों से एक खास कनेक्शन है

Subhesh Sharma

कश्मीर में अशांति, शांति में कब तब्दील होगी? आखिर कब कश्मीरी पंडितों को उनका हक मिलेगा? इन सभी सवालों का जवाब मिल पाना बेहद मुश्किल लगता है. घाटी में अशांति के लिए काफी हद तक अलगाववादी नेता और हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान जिम्मेदार हैं. जो कि लंबे समय से आतंकवाद को पनाह देता आ रहा है.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तक लोगों से घाटी में शांति बनाए रखने और कश्मीरी पंडितों को उनका हक वापस दिलाने की बात कर रहे हैं. लेकिन इतना सब होने के बावजूद पाक के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है. कश्मीर के मुद्दे को वो अपने बयानों से भुनाना तो चाहते हैं लेकिन कभी उस समुदाय की त्रासदियों का जिक्र नहीं करते जिससे उनका परिवार ताल्लुक रखता है.


पंडितों से है शरीफ का खास कनेक्शन

आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का भी कश्मीरी पंडितों से एक खास कनेक्शन है. शरीफ का जन्म 25 दिसंबर, 1949 में लाहौर, पंजाब में एक ऐसे परिवार में हुआ जो वहां विस्थापित होकर आया था. उनके पूर्वज कश्मीर के अनंतनाग के रहने वाले थे मूलत: ब्राह्मण थे. ब्रिटिश लेखक लाइवेन एनातोल ने अपनी किताब पाकिस्तान: अ हार्ड कंट्री में इसका जिक्र किया है.

ये है शरीफ की फैमिली हिस्ट्री

नवाज शरीफ की पत्नी कलसूम भट्ट भी कश्मीरी पंडित हैं और उनकी जड़ें भी कश्मीर में ही हैं. आपको बता दें कि कश्मीर और पाकिस्तान में भट्ट पंडितों को बट्ट भी कहा जाता है.

हालांकि 20वीं सदी की शुरुआत में शरीफ का परिवार व्यापार के सिलसिले में पंजाब चला गया और अमृतसर के जाति उमरा में बस गया था. लेकिन जिन्‍ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग द्वारा साल 1940 में लाहौर रेजॉल्‍यूशन पारित कर भारतीय मुस्लिमों के लिए अलग मुल्‍क की मांग सामने रखी गई और मुस्लिमों के लिए भारत से अलग एक नया देश 'पाकिस्तान' बनने के बाद शरीफ परिवार पाकिस्तान चला गया और लाहौर में जाकर बस गया.

पीएम बने थे तो कश्मीर को याद किया था

5 जून 2013 को जब नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कश्मीर से अपने पुराने नाते को याद किया था. उन्होंने कहा था, 'मेरे पिता अक्सर याद दिलाया करते थे कि हम अनंतनाग के रहने वाले हैं और बिजनेस के सिलसिले में अमृतसर गए थे. मेरी मां पुलवामा की रहने वाली थी. मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं वहां जाऊं. अब तो मुझे ये भी जानकारी नहीं है कि मेरे रिश्तेदार वहां कहां रहते होंगे.'

लेकिन ये शायद अंतिम बार था जब पीएम बनने के बाद उन्होंने अपनी कश्मीरी जड़ों को याद किया था. हांलाकि कश्मीर को लेकर उनके बयान बाद में भी आते रहे. लेकिन वो भारत-पाकिस्तान के पारंपरिक रिश्तों की तरह ही पारंपरिक थे.

राजनीति में लंबा वक्त गुजार देने के बाद अब नवाज भले ही अपनी जड़ों को याद तो कर लें. लेकिन शायद ही उस समुदाय के प्रति कोई धारणा रखते हों, जिसे कश्मीर में बीते दशकों में बेहद तकलीफ से गुजरना पड़ा. जिस समुदाय से उनके परिवार का भी ताल्लुक है. सिर्फ ताल्लुक ही नहीं मंत्रिमंडल में उनके कई करीबी इसी समुदाय से हैं. लेकिन नवाज ने कभी कश्मीरी ब्राह्मणों के साथ हो रहे अत्याचार को लेकर कोई मानवीय संवदनाएं नहीं प्रकट कीं.

पूर्व पाक पीएम के अलावा उनके मंत्रिमंडल में कई लोगों का है कश्मीर से जुड़ाव

आप ये जानकर दंग रह जाएंगे कि जब नवाज शरीफ पाक के पीएम थे, उस समय उनके मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे कई मजबूत लोगों की जड़ें भी कश्मीर से जुड़ी हुई हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ और वित्त मंत्री ख्वाजा इशाक डार की भी जड़ें कश्मीरी ही हैं. पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष राहील शरीफ कश्मीरी तो नहीं हैं लेकिन उनकी जड़ें पंजाब के क्षत्रीय परिवार से हैं.

वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला खुद कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि वो भी मूल रूप से कश्मीरी पंडित हैं. आपको बता दें कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे. फारूक खुद को सारस्वत ब्राह्मण बताते हैं.

उन्होंने दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में कश्मीरी भाषा में पहली बार प्रकाशित बच्चों की किताबों के विमोचन अवसर पर कहा था कि मैं मुसलमान नहीं, असल में कश्मीरी सरस्वती पंडित हूं, जोकि वर्षों पहले कश्मीरी ब्राह्मण से मुसलमान बने थे. दरअसल कश्मीरी मुसलमान कश्मीरी पंडितों की ही उपज है. इसी के चलते आज भी मुझमे कश्मीरी पंडित की जुबां हैं.

इसके अलावा स्पीरिचुअल फादर ऑफ पाकिस्तान कहे जाने वाले अल्लामा इक़बाल के पूर्वज भी कश्मीरी पंडित थे. अल्लामा ने अपने शेरो-शायरी में भी कई जगह अपनी पंडित जड़ों के बारे में जिक्र किया है.