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बर्थडे स्पेशल: मल्लाह परिवार में जन्मी फूल सी बेटी के फूलन बनने की कहानी

फूलन बनने की कहानी में अत्याचार, यातानाएं, प्रतिशोध, बेरहमी और प्रायश्चित सबकुछ है

Kinshuk Praval

हां वो फूलन थी.... किसी के लिए दस्यु सुंदरी तो किसी के लिये देवी. 11 साल की उम्र में शादी तो 15 साल की उम्र में गैंगरेप. चंबल की दस्युसुंदरी बनने से लेकर सांसद बनने तक के सफर में फूलन देवी की कहानी किसी फिल्म की मानिंद ही चलती रही और अचानक किसी क्लाइमैक्स की तरह खत्म हो गई.

एक मल्लाह परिवार में जन्मी फूल सी बेटी के चंबल में दहशत की फूलन बनने की कहानी में अत्याचार, यातानाएं, प्रतिशोध, बेरहमी और प्रायश्चित सबकुछ है.


बेहमई कांड के बाद सुर्खियों में आई दस्यु सुंदरी फूलन देवी अस्सी के दशक में बीहड़ में आतंक का सबसे बड़ा नाम थी. उरई, जालौन, मैनपुरी, इटावा और चंबल के इलाकों में फूलन कहीं खौफ तो कहीं रॉबिन हुड भी थी.

11 साल की उम्र में पुत्तुलाल नाम के आदमी के साथ हुई शादी के बाद पति के अत्याचारों ने बचपन को त्रस्त किया और मासूमियत को कुचला. जब पंद्रह साल की हुई तो गांव के दबंगों ने सामूहिक बलात्कार कर ताउम्र न भूलने वाली यातना दी. जब कमजोर काया ने बंदूक थामी तो प्रतिशोध की आग में जल कर बेहमई में बेरहम फूलन बन गई. वो फूलन जिसने 22 लोगों को लाइन से खड़ा कर गोलियों से भुनवा दिया. जब बीहड़ और पुलिस की गिरफ्त में पूरी तरह जिंदगी आ गई तब प्रायश्चित के लिए आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन जिंदगी सिर्फ इन्हीं मोड़ तक सिमटी नहीं हुई थी.

फूलन की कहानी में कई किरदार थे. चाहे पिता हो या फिर पति या फिर डकैत विक्रम मल्लाह हो या फिर दुश्मन डकैत श्रीराम. अपने ही गांव में बेइज्जत होकर बेगानी होने वाली फूलन ने कई बार खून का घूंट पिया. फूलन के साथ ज्यादतियों की इंतेहाई की कई कहानियां चस्पा हैं. चाहे वो रस्सियों से जकड़ी हुई एक काली रात रही जब उसकी बंद कमरे में उसकी चीखों का दम घोंटा जा रहा था और उसके साथ बारी बारी से रेप हो रहा था. या फिर वो गांव जहां उसका जुलूस निकाला गया था और उसके जिस्म पर एक भी कपड़ा छोड़ा न गया.

फूलन देवी यूं ही नहीं बैंडिट क्वीन बनी. बदले की आग ने उसके भीतर की कमजोरी को बंदूक उठाने पर मजबूर किया. समाज के लिए वो दस्यु थी लेकिन उसके खुद के मुताबिक वो अपने इंसाफ के लिये बागी बनी.

फूलन देवी के दस्यु सुंदरी बनने की पहली वजह

यूपी का छोटा सा गांव पूर्वा जहां साल 1963 में फूलन का जन्म हुआ. बचपन से ही उसने जातिगत भेदभाव देखा. दलितों पर दबंगों के अत्याचारों को देखा.

मात्र 11 साल की उम्र में ही ब्याह दिए जाने के बाद जब फूलन पहली दफे पति के हाथों रेप का शिकार हुई तो वो भागकर घर वापस आ गई. पिता के साथ मजदूरी में हाथ बंटाने लगी. दलित की बेटी पर गांव के ऊंची जाति के दबंगों की नजर उसके जवान होने का इंतजार कर रही थी. पंद्रह साल की उम्र में उसके साथ गांव के लोगों ने सामूहिक बलात्कार कर फूलन को दस्यु बनाने का पहला अपराध कर दिया. न पंचायत से फूलन को इंसाफ मिला और न ही गांव में लोगों से सहानुभूति.

कुछ ही दिनों बाद डकैतों ने गांव पर धावा बोलकर फूलन को अगवा कर लिया. फूलन की चीखें बीहड़ के सन्नाटे को चीरती रह जाती थीं लेकिन डकैतों के हाथों उसकी आबरू को बचाने वाला कोई न था.

फूलन के लिये बागी हुआ डकैत विक्रम मल्लाह

एक दिन एक डकैत विक्रम मल्लाह फूलन के लिए बीहड़ में बागी बन गया. विक्रम मल्लाह ने फूलन के लिए बंदूक उठा ली और फिर शुरू हुआ फूलन की जिंदगी में मल्लाह के साथ नया सफर.लेकिन फूलन के लिए विक्रम मल्लाह अपने ही दल में कई लोगों की नाराजगी मोल ले चुका था. जिसके बाद एक दिन विक्रम मल्लाह को डकैत श्रीराम के ग्रुप ने गोलियों से भून दिया और फूलन को अगवा कर लिया.

डाकू श्रीराम फूलन को बेहमई गांव ले गया जहां फूलन की इज्जत तार-तार की गई. पूरे गांव में पहले उसे नग्न कर घुमाया गया फिर एक रात उसके साथ बारी बारी से रेप किया गया.

बेहमई का बदला लेकर बनी 'दस्यु सुंदरी'

हालात फूलन को पत्थर बना चुके थे. प्रतिशोध की आग में सुलग कर वो भीतर से लोहा बन चुकी थी. बेहमई में हुए गैंगरेप के लिए वो बदले का इंतजार कर रही थी. 14 फरवरी 1981 को उसने 22 सवर्णों को लाइन से खड़ा कर गोलियों से भुनवा दिया. ये फूलन का प्रतिशोध था जो उसने लिया लेकिन इस हत्याकांड ने उसे बीहड़ की बेरहम बैंडिट क्वीन के नाम से बदनाम कर दिया. हालांकि फूलन इस नरसंहार में खुद के शामिल होने से इनकार करती रही लेकिन सच को न फूलन छिपा सकी और न बेहमई के गांव वाले. तभी फूलन के खिलाफ नफरत की आंधी और भड़क उठी.

बीहड़ में भागते-भागते थक चुकी थी फूलन देवी

अपनी क्रूरता को फूलन अपने साथ हुए अत्याचार से सही साबित नहीं कर सकती थीं. सिर्फ एक ट्रिगर दबा कर किसी की जान ले लेने वाली फूलन देवी के पीछे यूपी और एमपी की पुलिस हाथ धो कर पड़ी हुई थी. बीहड़ के चप्पे चप्पे खाक छानती हुई फूलन देवी अपनी जिंदगी की सुरक्षा की छांव तलाश रही थी. मौत उसके सिर पर मंडरा रही थी और उसका अतीत और वर्तमान साथ में हर मौके पर खौफ पैदा करता था. बीहड़ों में पुलिस और सवर्णों से बचने के लिये छिपते फिरने के अलावा कोई रास्ता जब नहीं बचा तो फूलन देवी ने मध्यप्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने फूलन देवी ने एक समारोह में हथियार डाल दिये. फूलन कितनी कुख्यात थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके आत्मसमर्पण को देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटी थी.

11 साल जेल की जिंदगी के बाद बनी सांसद

ग्यारह साल तक फूलन देवी जेल में बंद रही. साल 1994 में फूलन की जिंदगी में किस्मत ने नई करवट बदली. समाजवादी पार्टी ने फूलन देवी को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिये टिकट दिया. फूलन चुनाव लड़ी भी और जीती भी. वो दो बार लोकसभा का चुनाव जीती. लेकिन 25 जुलाई 2001 में अचानक 38 साल की उम्र में ही फूलन देवी की उसके घर के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई. फूलन की हत्या का आरोप शेर सिंह राणा नाम के शख्स पर लगा जिसने दावा किया कि उसने बेहमई कांड का बदला ले लिया. फूलन देवी भी उसी बंदूक और गोली का शिकार हो गई जिसने उसे दहशत और नाम दिया था.