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जन्मदिन विशेष जिम कॉर्बेट: एक शिकारी जो था 'टाइगर' का बेस्ट फ्रेंड

मशहूर शिकारी जिम कार्बेट का 9 अप्रैल, 1955 के दिन निधन हो गया था

Pawas Kumar

सन 1957 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के हैली नेशनल पार्क का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया. इससे 2 साल पहले 19 अप्रैल 1955 को जिम कॉर्बेट का निधन हो गया था. कॉर्बेट एक मशहूर शिकारी थे. अद्भुत लगता है कि आखिर किसी शिकारी के नाम पर एक अभयारण्य का नाम क्यों रखा जाए. आखिर एक शिकारी का काम तो ठीक उलटा ही हुआ न.

जिम कॉर्बेट की शख्सियत ही ऐसी थी. वह एक ऐसे शिकारी थे जिन्होंने दर्जनों बाघों और तेंदुओं का शिकार किया था. कॉर्बेट के लिए शिकार एक शौक से ज्यादा था. उनके लिए यह जानवर शिकार से कहीं बढ़कर थे. लेकिन कॉर्बेट का निशाना बने अधिकतर जानवर आदमखोर थे. आदमखोरों का शिकार करने के बाद भी उनके मन में भी उनके लिए गजब की समझ थी.


अपनी किताब 'मैन-ईटर्स ऑफ कुमाऊं' में कॉर्बेट लिखते हैं, 'एक आदमखोर बाघ वैसा बाघ होता है जिसे परिस्थितियों के कारण एक ऐसा आहार अपनाना पड़ा जो उसकी प्रकृति से अलग है. 10 में से 9 मामलों में यह परिस्थितियां घावों के कारण पैदा होती हैं और बाकी में उम्र इसके पीछे होती है.'

पोवलगढ़ में बाघ 'बैचलर' के शिकार के बाद कॉर्बेट

उन्होंने जीवनभर प्रकृति से प्यार किया और हमेशा इसके संरक्षण की वकालत की. भारत में बाघों की घटती जनसंख्या पर उन्होंने कहा था, 'बाघ एक बड़े-दिलवाली प्रजाति है जिसके पास असीम साहस होता है- अगर यह खत्म हो गई तो भारत अपने वन्यजीवन के सबसे शानदार हिस्से को खोकर और गरीब हो जाएगा.'

एडवर्ड जिम कार्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल में हुआ था. तब नैनीताल भारत के संयुक्त प्रांत यानी यूनाइटेड प्रॉविन्स का एक पहाड़ी जिला था. 18 साल की उम्र में वह रेलवे की नौकरी करने लगे.

जिम कार्बेट ने कभी शादी नहीं की. उन्होंने अपनी बड़ी बहन कार्बेट मैगी के साथ अपना अधिकांश जीवन कालाढूंगी और नैनीताल के स्थानीय ग्रामीण लोगों के बीच में रहकर बिताया.

कहा जाता है कि 1907 से 1938 के बीच जिम कार्बेट ने 33 नरभक्षियों का शिकार कर उन्हें मार गिराया. सरकारी रिकार्ड के अनुसार इन आदमखोरों ने करीब 1200 लोगों को मौत के घाट उतारा था.

जिम को हमेशा अकेले शिकार करना पसंद था. उनके साथ अक्सर उनका पालतू कुत्ता रॉबिन हुआ करता था. जिम ने अपनी जान जोखिम में डालकर कई लोगों की जान बचाई, इसी लिए लोग इन्हें ‘गोरा ब्राह्मण’ के नाम से भी जानते है.

1947 में भारत के आजाद होने के बाद वह केन्या में रिटायर हो गए. बाद में उन्होंने 6 किताबें लिखीं.

केन्या में जब वह नयेरी में थे तो उसी समय प्रिसेंस एलिजाबेथ वहां घूमने आई थीं. प्रिसेंस एक बड़े पेड़ पर बने ट्री-हाउस में रह रही थीं जब इंग्लैंड से खबर आई कि उनके पिता का निधन हो गया है. कॉर्बेट लिखते हैं, 'शायद पहली बार ऐसा हुआ कि एक राजकुमारी पेड़ पर चढ़ी और जब उतरी तो वह महारानी बन चुकी थीं.'

(यह लेख पूर्व में छप चुका है)