view all

जन्मदिन विशेष: जब हेमंत कुमार के बनाए गीत ने दी थी लता मंगेशकर को नई जिंदगी

डॉक्टर ने लता मंगेशकर को आराम की सलाह दी. आराम भी दो चार दिन का नहीं बल्कि महीनों का. ऐसे में इस बीमारी ने लता जी के मन में ये डर पैदा कर दिया कि वो पहले की तरह दोबारा गा भी पाएंगी या नहीं

Shivendra Kumar Singh

60 के दशक की बात है. लता मंगेशकर बीमार पड़ गईं. हुआ यूं कि एक रोज जब वो सोकर उठीं तो उन्हें पेट में तकलीफ हुई. शुरू-शुरू में लगा कि बीमारी मामूली है. डॉक्टरों से सलाह मशविरा करने के बाद पता चला कि उनके पेट में इंफेक्शन है.

डॉक्टर ने लता मंगेशकर को आराम की सलाह दी. आराम भी दो चार दिन का नहीं बल्कि महीनों का. ये वो दौर था जब लता मंगेशकर बड़ा नाम बन चुकी थीं. उनके गाए सैकड़ों गाने हिट हो चुके थे. ऐसे में इस बीमारी ने लता जी के मन में ये डर पैदा कर दिया कि वो पहले की तरह दोबारा गा भी पाएंगी या नहीं. लता जी की इस बीमारी के बारे में ये भी कहा जाता है कि किसी ने उन्हें ‘स्लो-पायजन’ देने की कोशिश की थी. यहां तक कि उनके घर जो रसोइया काम करता था वो अचानक बिना पैसे लिए भाग गया था.


यह भी पढ़ें: पंडित रविशंकर की दी कौन सी सीख ताउम्र रहेगी अनुष्का शंकर के साथ

ये उसी समय की बात है जब मजरूह सुल्तानपुरी रोज लता जी के घर जाया करते थे और उन्हें जो खाना दिया जाता था उसे पहले खुद चखते थे. खैर, करियर के उस अहम मोड़ पर कई महीनों का ‘ब्रेक’ लगने के बाद जिस संगीतकार के गाने के साथ उन्होंने इंडस्ट्री में वापसी की, वो संगीतकार थे हेमंत कुमार. गाना था- फिल्म बीस साल बाद का कहीं दीप जले कहीं दिल. हेमंत कुमार जितने बेजोड़ गायक थे उतने ही लाजवाब संगीतकार. आज उन्हीं का जन्मदिन है.

40 के दशक में ही हेमंत कुमार मुंबई गए

हेमंत कुमार का जन्म 1920 में बनारस में हुआ. घर में भाई बहन को भी लिखने पढ़ने का शौक था. हेमंत कुमार को भी पढ़ाई लिखाई में कम और संगीत के साथ साथ लिखने पढ़ने का शौक ज्यादा था. यही वजह है कि इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के बाद उन्होंने पढ़ाई पूरी नहीं की. घरवाले बहुत नाराज हुए. ये उस दौर की बात है जब गाना-बजाना कोई अच्छी चीज नहीं मानी जाती थी. बावजूद इन बंदिशों के हेमंत कुमार ने खुद को संगीत के हवाले कर दिया. उन्होंने बाकयदा संगीत शिक्षा ली.

हेमंत कुमार ने उस्ताद फैयाज खान के शिष्य से संगीत सीखा था. पंकज मलिक के जबरदस्त फैन हेमंत कुमार जल्दी ही गायकी की दुनिया में कदम रखने को तैयार थे. यहां तक की लोग उन्हें छोटा पंकज भी बुलाने लगे थे. हेमंत कुमार ने रबींद्र संगीत भी सीखा था. 1940 के दशक में उन्होंने दूसरे संगीत निर्देशकों के लिए बंगाली फिल्मों के लिए गाना गाया. साथ ही खुद के कंपोज किए गए गाने भी गाए.

40 के दशक में ही हेमंत कुमार मुंबई गए. वहां उन्होंने नौशाद साहब से मुलाकात की. हेमंत कुमार ने नौशाद से कहा कि मैं हिंदी गाने कम ही गाता हूं लेकिन आपको एक हिंदी गाना सुनाना चाहता हूं. नौशाद साहब ने हेमंत कुमार का नाम पहले से सुन रखा था. उन्होंने कहा- बिल्कुल बिल्कुल जरूर सुनाइए. ये वो दौर था जब केएल सहगल की तरह ज्यादातर गायक नीचे के सुरों में गाया करते थे. हेमंत कुमार ने भी नीचे के सुरों में नौशाद साहब को गाना सुनाया. नौशाद साहब बड़े खुश हुए. बाद में उन्होंने नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में दो बेमिसाल नगमें रिकॉर्ड किए. फिल्म शबाब का गाना- चंदन का पलना, रेशम की डोरी और फिल्म गंगा जमुना का इंसाफ की डगर पर बच्चों दिखाओ चलके.

यह भी पढ़ें: पंडित शिवकुमार शर्मा, अभिनेता शशि कपूर और अनु कपूर में क्या है एक खास रिश्ता

खैर, नौशाद साहब और हेमंत दा की मुलाकात के किस्से के बाद वापस लौटते हैं अपनी कहानी पर. वो 1947 यानी देश की आजादी का साल था, उसी साल हेमंत दा को भी आजादी मिली. आजादी यानी उन्हें पहली बार किसी फिल्म का संगीत तैयार करने का मौका मिला. यही वो समय था जब हेमंत कुमार इप्टा से जुड़े. जहां उनकी दोस्ती सलिल चौधरी से हुई. इप्टा के लिए लिखना, गाना चलता रहा. फिर पचास के दशक में एक रोज एक निर्देशक ने उन्हें मुंबई आने का न्यौता दिया, जो अपनी पहली हिंदी फिल्म बना रहे थे. फिल्म बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना आनंदमठ पर आधारित थी. इसी फिल्म के लिए हेमंत कुमार ने वंदे मातरम गीत को कंपोज किया. जो आज भी सुना और सराहा जाता है.

उनका एक एक गाना हिंदुस्तानी संगीत के साथ आगे बढ़ता रहेगा

1952 में ही हेमंत कुमार को एक और बड़ी कामयाबी मिली. जाने-माने अभिनेता और निर्देशक गुरूदत्त अपनी दूसरी फिल्म बना रहे थे- जाल. इस फिल्म में देव आनंद और गीता बाली अभिनय कर रहे थे. संगीतकार थे- सचिव देव बर्मन. सचिन दा की इसी फिल्म से बतौर गायक हेमंत कुमार को हिंदी फिल्मों में एक पहचान मिली. गाना था- ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिल की दास्तान. इसके बाद उन्होंने ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला’ जैसे गाने गाकर खुद को स्थापित किया. जल्दी ही वो समय भी आया जब गुरूदत्त ने उन्हें अपनी फिल्मों का संगीत तैयार करने की जिम्मेदारी दी. साहब बीबी और गुलाम ऐसी ही फिल्म थी.

इसके बाद उन्होंने फिल्म नागिन का संगीत तैयार किया. इस फिल्म के तमाम गाने जबरदस्त हिट हुए. मसलन- तेरे द्वार खड़ा एक जोगी, मेरा दिल ये पुकारे आजा, जादूगर सैयां, ऊंची ऊंची दुनिया की दीवारें जैसे गाने. लेकिन इस फिल्म के एक गाने- ‘तन डोले मेरा मन डोले’ ने तो कामयाबी के तमाम रिकॉर्ड्स तोड़ दिए. दिलचस्प बात ये है कि जब लता मंगेशकर इस फिल्म के गाने गा रही थी तो उन्होंने कहा था कि ये गाना नहीं चलेगा. बाद में जब फिल्म रिलीज हुई तो यही गाना जबरदस्त हिट हुआ.

हेमंत कुमार की खास बात ये भी रही कि उन्होंने अपने संगीत निर्देशन में उस दौर के दूसरे बड़े गायकों को भी गवाया. मोहम्मद रफी, तलत महमूद से लेकर किशोर कुमार तक ने हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में प्लेबैक सिंगिंग की. फिल्म खामोशी का किशोर कुमार का गाया सुपरहिट गाना ‘वो शाम कुछ अजीब थी ये शाम भी अजीब है’ में हेमंत कुमार का ही संगीत था. इसी फिल्म में उन्होंने खुद तुम पुकार लो जैसा शानदार गाना गाया. हेमंत कुमार का खुद का गाया अजर अमर गीत छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा संगीतकार रोशन का तैयार किया हुआ गाना था. हेमंत दा तो 1989 में ढाका के एक दौरे के बाद दिल का दौरा पड़ने से दुनिया को अलविदा कह गए लेकिन उनका एक एक गाना हिंदुस्तानी संगीत के साथ आगे बढ़ता रहेगा.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)