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पुण्यतिथि विशेष: बैलाड के आखिरी भारतीय गायक थे भूपेन हजारिका

90 के डेकमशीन वाले गानों के युग में रुदाली आंख से टपके इकलौते आंसू की तरह है.

Animesh Mukharjee

साल 1993-94 को हिंदी सिनेमाई संगीत के लिहाज से याद करें तो दो चीजें याद आती हैं. एक पाकिस्तान से चुराए हुए गानों पर दिल जिगर वाली लिरिक्स चिपकाकर बनाए गए डेक मशीन युग के गाने. दूसरी पहलाज निहलानी ‘साहब’ और गोविंदा की जोड़ी वाली फिल्में जिनके गानों में कभी कोई खड़ा होता था तो कहीं खटिया सरकाई जाती थी.

इन सबके बीच 1993 की एक फिल्म है ‘रुदाली’, जिसमें एक गाना है ‘दिल हूम-हूम करे, घबराए’ लता की जी की आवाज़ और संगीत दिया था भूपेन हज़ारिका. उस दौर के गानों के बीच हम जब इसे सुनते हैं तो लगता है कि ये गाना अपने दौर से अलग किसी गलत समय में फंस गया है.


गलत इसलिए उस साल के फिल्म फेयर अवॉर्ड्स में म्यूजिक के लिए ज़्यादातर अवॉर्ड्स ‘दीवाना’ को मिले और रुदाली का तो कहीं ज़िक्र भी नहीं था. बेस्ट सिंगर के लिए कुमार सानू को छोड़ दीजिए. उस समय के काबिल लोगों की मानें तो 1993 की सबसे बेहतरीन लिरिक्स ‘तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करते हैं’ थी. वक्त के साथ रुदाली का संगीत एक अलग ऊंचाई पर पहुंच गया, मगर औसत दर्जे के काम पुरस्कृत करने वाली बॉलीवुड की प्रवृत्ति का ये एक और उदाहरण है.

आखिरी बैलाड सिंगर

भूपेन दा फिल्मों में बैलाड गाने वाले आखिरी गायक थे. बैलाड मतलब सीधे सरल शब्दों वाले लोकगीत जैसे गाने जिन में एक कहानी होती है. अमेरिका में बैलाड को लेकर कई प्रयोग हुए लिरिकल बैलाड से लेकर हेवी मेटल बैलाड रॉक तक बना. भूपेन दा ने अमेरिका प्रवास के बाद ‘ओल्ड मैन रिवर’ की थीम पर गंगा तुम बहती हो क्यों लिखा.

मूल रूप से असमिया और बांग्ला में लिखने वाले भूपेन दा ने कई लोकगीतों और कहानियों को बैलाड फॉर्म में कंपोज किया. गंगा क्यों बहती हो क्यों के अलावा. जमीदारों के किसानों के कंधों पर पालकी में बैठकर चलने को रूपक लेते हुए उन्होंने ‘हे डोला, रे डोला’ रचा.

पत्रकारिता में पीएचडी

भूपेन हजारिका अपने समय के गायकों संगीतकारों में सबसे ज़्यादा पढ़े-लिखे हो सकते हैं. अमूमन संगीत के सुरों में खोए रहने वाले लोगों का मन राजनीतिशास्त्र जैसे बोझिल विषय में नहीं लगता है मगर भूपेन दा ने बीएचयू से पॉलिटिकल साइंस में बीए और एमए किया. 1949 में दादा पत्रकारिता में पीएचडी करने अमेरिका चले गए. वापस आकर पूर्वोत्तर में सिनेमा के विकास में सबसे अहम भूमिका निभाई. मगर हिंदी वालों की नजर में 70 के दशक के बाद में ही आए.

दर्शकों के लिहाज से कहें तो 1993 की रुदाली ही वो बिंदु है जहां भूपेन हजारिका हर आम हिंदी दर्शक के लिए एक जाना पहचाना नाम हो गए. पर्दे पर दो कैमरों से फिल्माए गए इस गाने के लिए कल्पना लाज़मी ने कोई कोरियोग्रफी नही की थी. पीछे लता मंगेश्कर की आवाज में सुनाई पड़ रहा था, ‘इक बूंद कहीं पानी की, मेरी अंखियों से गिर जाए’. ये गाना और सीन हिंदी सिनेमा के इतिहास के उन दृश्यों में से एक बन गया है जो दर्शकों के दिमाग पर जस के तस छपे हुए हैं.

असम के लिए बहुत कुछ

भूपेन हजारिका ने दो दशक तक प्रतिध्वनि नाम का अखबार निकाला. असम और पूर्वोत्तर को एक साथ लाने के लिए नदियों से जुड़े कई गीत, सांस्कृतिक चीज़ें लेकर आए. इन सबके चलते उन्हें ‘बार्ड ऑफ लोइत’ (लोइत का चारण) भी कहा गया. लोइत असम में ब्रह्मपुत्र को कहते हैं. इसके अलावा भूपेन हजारिका 1967 से 1972 तक असम में विधायक भी रहे. 2004 में वो भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़े पर हार गए.

इस साल मई में शुरू हुए देश के सबसे लंबे धोला सादिया पुल का नाम उनके नाम पर रखा गया. ये पुल असम से अरुणाचल की दूरी कई घंटे कम कर देता है. भूपेन दा की पूरी ज़िंदगी इसी प्रयास में बीती कि नॉर्थ-ईस्ट से बाकी देश की दूरी कैसे भी कम हो जाए.