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जन्मदिन विशेष: मनोहर श्याम जोशी ने इस वजह से रखा था 'कसप' नाम

कसप की रचना और इसके नामकरण की कहानी खुद मनोहर श्याम जोशी ने बताई है

Piyush Raj

मनोहर श्याम जोशी का नाम सुनते ही अलग-अलग खयाल लोगों के जेहन में उतरते हैं. जो लोग 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर आने वाले टीवी धारावाहिकों के प्रेमी रहे हैं, उनकी आंखों के सामने ‘हमलोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ जैसे धारावाहिक आ जाते हैं. जिनकी रुचि हिंदी के रोमांटिक उपन्यासों में हैं उन्हें ‘कसप’ याद आता है.

उत्तर आधुनिक जीवन के कथाकार


मनोहर श्याम जोशी का पहला उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ था. यह उपन्यास 1980 में प्रकाशित हुई थी. इसके बाद इन्होंने कसप, हरिया हरक्यूलिस की हैरानी, हमजाद, ट-टा प्रोफेसर, क्याप और कौन हूं मैं जैसे उपन्यासों की रचना की.

मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यासों में अमानवीय होती परिस्थितियों का जिक्र किया है. कुरु कुरु स्वाहा में नेहरू युग के खोखलेपन का जिक्र है तो कसप को छोड़कर अन्य उपन्यासों में उन्होंने उपभोक्तावादी उत्तर आधुनिक जीवन के क्रूर और भयावह चेहरे को दिखाया है. मनोहर श्याम जोशी समाज की सभी पतनशील प्रवृतियों और विकृतियों का जिक्र करते हैं और पाठक को अंत में एक विकल्पहीन स्थिति में छोड़ देते हैं.

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हालांकि कथा लिखते वक्त इन विकल्पहीन परिस्थितियों में वे मानवीय मूल्यों को उजागर करना नहीं भूलते हैं. लेकिन दिन-ब-दिन आदर्शहीन होती व्यवस्था का कोई हल उन्हें नजर नहीं आता है. उन्हें उस वक्त जो महसूस होता है उसे अपनी कथा में शामिल कर लेते हैं.

टीवी धारावाहिक के पुरोधा पुरुष

टीवी धारावाहिक बुनियाद के पात्र

मनोहर श्याम जोशी को टीवी धारावाहिक लेखन का पुरोधा भी कहा जाता है. जिस वक्त टीवी आम घरों का हिस्सा बनना शुरू ही हुआ था उस वक्त उन्होंने प्रसिद्ध धारावाहिक ‘हमलोग’ की रचना की.

थोड़े ही दिनों में दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- ' बुनियाद' 'नेताजी कहिन', 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने', 'हम लोग' आदि के कारण वे भारत के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे. इस धारावाहिकों में बतौर लेखक मनोहर श्याम जोशी का एक अलग की रूप नजर आता है. उपन्यासों में जहां वे समाज और परिवार की पतनशील प्रवृत्तियों को दिखाते हैं वहीं धारावाहिकों में इससे बचते हुए परिवार के महत्व को स्थापित करने की कोशिश करते हैं.

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यह वह दौर था जब संयुक्त परिवारों के टूटने का चलन कस्बों और छोटे शहरों में भी शुरू हो गया था. उसी वक्त दूरदर्शन के साथ मध्यमवर्गीय परिवारों में टेलीविजन का भी प्रवेश हो रहा था. मनोहर श्याम जोशी में इस विघटन के दौर में परिवार और समाज को अपने लेखन के माध्यम से बचाने की कोशिश की थी. इससे भी बढ़कर उन्होंने मानवीय मूल्यों और संबंधों की जरूरत को एक लोकप्रिय माध्यम से पेश करने की सफल कोशिश की.

यूं हुई कसप की रचना

मनोहर श्याम जोशी अपने धारावाहिकों के अलावे अपने उपन्यास ‘कसप’ के लिए भी जाने जाते हैं. ‘कसप’ एक कुमायूंनी शब्द है जिसका मतलब होता है ‘क्या जाने’ या ‘राम जाने’ यानी जिसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सके. यह उपन्यास एक प्रेम कथा है. जिस तरह प्रेमकथाओं के शौकीन लोगों के बीच यह उतना ही लोकप्रिय है जितना धर्मवीर भारती का उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’.

इस उपन्यास की रचना और इसके इस नामकरण के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. मनोहर श्याम जोशी ने खुद एक लेख में इसका जिक्र किया है. दरअसल मनोहर श्याम जोशी की पत्नी ने उनसे एक प्रेम कथा लिखने की फरमाइश की. उस वक्त वो ‘विज्ञानकथा’ लिख रहे थे. इसे छोड़कर उन्होंने अपने जवानी के दिनों की एक घटना के आधार पर एक उपन्यास को लिखा. जिस तरह के इस उपन्यास के नायक डीडी के पायजामे के नाड़े में ‘मारगांठ’ लगती है उसी तरह मनोहर श्याम जोशी के जवानी के दिनों में उनके पायजामे के नाड़े में भी ‘मारगांठ’ लगी थी.

इस उपन्यास के नामकरण की कहानी भी उन्होंने इस लेख में बताई है. पहले वे इस उपन्यास का नाम कुछ और रखना चाहते थे जिससे वे खुद संतुष्ट नहीं थे. उसी वक्त उन्हें एक अपने छात्र जीवन की एक घटना याद आई. वे अपने छात्र जीवन में एक दिन अल्मोड़ा से अपने पुरखों का का गांव ‘तल्ली’ को देखने पैदल निकल गए थे.

उन्हें रास्ता पता नहीं था और वे रास्ता पूछते हुए जा रहे थे. इसी बीच वे एक पहाड़ की एक ऐसी चोटी पर पहुंच गए जहां उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि किधर जाएं. तभी उन्हें वहां एक युवती दिखी जिससे उन्होंने पूछा कि यह रास्ता किधर जाता है. उस युवती ने हंसकर उनसे कुमायूंनी में कहा- ‘कसप’ (राम जाने). चूंकि यह उपन्यास कुमायूंनी संस्कृति पर आधारित था. इस वजह से यह नाम इस उपन्यास के लिए सटीक भी था.