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गुरुकुल का जीता जागता रूप है मगध सुपर 30, भिक्षा से गरीब छात्रों का संवारा जाता है भविष्य

मगथ सुपर 30 पिछले 10 वर्षों में आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में 200 गरीब बच्चों को भेज चुका है

Pankaj Kumar

मगध सुपर 30 सिर्फ कहने के लिए गुरुकुल का जीता जागता स्वरूप नहीं है बल्कि इसकी कार्यप्रणाली इसे गुरुकुल का सच्चा स्वरूप होने का प्रमाण देती है. इस संस्थान का टैग लाइन है, 'समाज के लिए और समाज के द्वारा.' बिहार के गया में मौजूद यह संस्थान समाज के दबे, कुचले और पीड़ित परिवारों के बच्चों के लिए वाकई किसी भगवान के मंदिर से कम नहीं. यहां निशुल्क शिक्षा के साथ-साथ रहना और खाना भी मुफ्त है, और यह सुविधा मुहैया कराया जाता है गया शहर के समाज के कुछ चंद लोगों से जो गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ रुपए अपनी जेब से निकालने में परहेज नहीं करते.

इतना ही नहीं विद्या के इस मंदिर में यतीमों और अनाथ को भी सहारा मिलता है. सुविधाओं से महरूम बच्चे एक-दूसरे के लिए हर समय मदद को तैयार रहते हैं. इसलिए इनमें कॉम्पीटिशन विद कॉपरेशन की भावना कूट-कूट कर भरी हुई रहती है. इन अनाथ बच्चों की मदद के लिए 10 साल पुराने इस संस्थान की कुछ हकीकत दिल को छू लेती है.


मगर सुपर 30 में मेधावी छात्रों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ यहां रहना और खाना भी निशुल्क है

जीवन संवारने के साथ-साथ अनाथ बच्चों का घर बन चुका है संस्थान

खुशबू इन दिनों एक बड़े शहर में बड़ी कंपनी में काम करती है. सुरक्षा कारणों से उसका पूरा विवरण लिखा नहीं जा सकता है. साल 2014 में दसवीं के बाद गया में दो साल की पढ़ाई सुपर 30 में करने के बाद वो एनआईटी में चुनी गई. फिर उसका सेलेक्शन कोचीन यूनिवर्सिटी के साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हुआ.  लेकिन साल 2011 में दसवीं पास कर मगध सुपर 30 में दाखिला लेना उसके लिए खुशी का ही नहीं बल्कि गौरव का भी विषय था. खुशबू औरंगबाद के रजवरियां गांव की रहने वाली है. उसके पिता की मौत साल 2001 में एक दुर्घटना में हो गई थी. खुशबू की मां उसे और उसकी छोटी बहन की परवरिश ढंग से करना चाहती थी. लेकिन पिता की मौत के बाद उसके दादा और चाचा के व्यवहार में आकाश-जमीन का फर्क आ गया था.

खुशबू की पढ़ाई में दिलचस्पी को देखकर उसकी मां उसे गांव के बाहर अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती थी. दरअसल साल 2011 में खुशबू दसवीं कक्षा में जिले में दूसरी टॉपर थी. इसलिए खुशबू की मां उसके पिता के देहांत के बाद जायदाद के अपने हिस्से से उसकी बेहतर पढ़ाई कराना चाहती थी. लेकिन खुशबू के दादा और चाचा को उसकी मां की यह पसंद नागवार गुजरी. एक लड़की को गांव के बाहर भेजना उन्हें कतई पसंद नहीं था. लेकिन मगध सुपर 30 में निशुल्क शिक्षा और रहने खाने की व्यवस्था हो जाएगी इसलिए खुशबू ने सुपर 30 के सेलेक्शन प्रक्रिया से गुजरने के बाद वहां के आवास में रहकर इंजीनियरिंग की तैयारी भी शुरू कर दी.

मां और बहन की चाचा और दादा ने कर दी थी हत्या

लेकिन जून 2012 में खुशबू की मां और उसकी छोटी बहन की हत्या उसके चाचा और दादा द्वारा कर दी गई. खुशबू की मां को बेटियों को पढ़ाने की चाहत महंगी पड़ी. अपने देवर और ससुर से अपने पति के हिस्से की प्रॉपर्टी मांगने की कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ी. खुशबू के लिए इस घटना के बाद दुनिया में कोई नहीं बचा था. इसलिए वो इस वारदात के बाद अपना सुध-बुध खोने लगी थी.

खुशबू यह कहते हुए रोने लगती है कि पिता के गुजर जाने के बाद मां और छोटी बहन का दुनिया में होना उसके लिए बहुत बड़ा संबल था. लेकिन साल 2012 में उनकी हुई हत्या ने उसे पूरी तरह झकझोर दिया. लेकिन इस मौके पर संस्थान का उसे भरपूर सहयोग मिला. आरोपियों के खिलाफ मुकदमा से लेकर कोर्ट में उसके बयान देने तक उसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया.

खुशबू 2013 में परिस्थिति वश अच्छा नहीं कर पाई फिर भी सुपर 30 से मदद उसे मिलती रही. साल 2014 में वो इंजीनियरिंग कॉलेज में चुनी गई और उसके एडमिशन से लेकर तमाम खर्चे को लोगों की मदद से पूरा किया गया.

खुशबू कहती है कि सुपर 30 के बच्चे ही उसके भाई-बहन हैं उसके कॉर्डिनेटर पंकज कुमार उसके माता-पिता. अब खुशबू छुट्टी में सुपर 30 के बच्चों को पढ़ा कर उन्हें प्रतियोगिता परीक्षा के लिए तैयार करती है. साथ ही बाकी का वक्त उनके साथ अपने अनुभवों को साझा करने में बिताती है.

यह सिर्फ एक बच्चे की कहानी है लेकिन गुरबत की जिंदगी जीने वाले तमाम परिवारों के लिए यह संस्थान किसी फरिश्ते के रहने वाले जगह से कम नहीं है.  यहां पास आउट बच्चे ही छुट्टियों में आकर अपने से जूनियर बच्चों को कोचिंग देते हैं. जाहिर है आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला पा चुके बच्चों के लिए यह पहला घर है जहां वो छुट्टियों में ज्यादा वक्त गुजार कर ही अपने मां-बाप से मिलने अपने-अपने घरों को जाते हैं.

'समाज के लिए समाज के द्वारा' को पूरी तरह चरितार्थ करता है संस्थान 

इस संस्थान के पूरे साल का बजट 12 लाख रुपया है. इस पैसे को समाज के कुछ लोगों द्वारा सहायता के रूप में लिया जाता है जिसे एक बैंक में जमा कराया जाता है. एक-एक रुपए की सोशल ऑडिट होती है जो मदद करने वाले मददगारों के बीच हर साल एक दिन तय कर उनके सामने रखी जाती है. इस दिन को संस्थान के लिए महत्वपूर्ण भी माना जाता है क्योंकि रिजल्ट के साथ-साथ रुपए-पैसे के खर्च का पूरा लेखा-जोखा समाज के प्रतिष्ठित और मददगार लोगों के सामने रखा जाता है. सुपर 30 जब साल 2008 में शुरू हुआ था तब से लेकर अब तक समाज के कई लोगों से मिली राशि का एक-एक रुपए का हिसाब देखा जा सकता है.

गया शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी और कारोबारी शिवराम डालमिया ने अपने ही मकान का एक फ्लोर कोचिंग के नाम पर साल 2008 में मुफ्त में दे दिया था. उसके बाद शहर के डॉक्टर से लेकर कई इंजीनियर और समाजसेवियों ने इसके खर्चे के लिए अहम योगदान दिए. हर साल बजट का 40 फीसदी रकम कुछ डोनर्स चंदे के रूप में देते हैं और बाकी का पैसा पास आउट बच्चे और अन्य श्रोतों से इकट्ठा किया जाता है. पिछले साल पास आउट बच्चों ने 3 लाख की रकम संस्थान की मदद के लिए भेजा था जबकि इस साल यह रकम दोगुना होने की उम्मीद है.

मगध सुपर 30 से कोचिंग लेकर विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिल लेने वाले छात्र अपनी छुट्टियों में वापस आकर यहां पढ़ाते हैं

कॉम्पीटिशन विद कॉपरेशन है मूलमंत्र

साल 2008 में 2 लड़की और 9 लड़कों ने इस संस्थान में दाखिला लेकर तैयारी करनी शुरू कर दी थी. 11 में से सभी आईआईटी, एनआईटी और टीएस चाणक्या जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में चुने गए. इन छात्रों में चिंतामणि आईआईटी मुंबई, आकांक्षा झा आईआईटी गुवाहाटी प्रमुख हैं. इसके बाद मगध सुपर 30 की विश्वसनीयता और सफलता दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती गई. स्थापना के 10 साल गुजर जाने के बाद मगध सुपर 30 में कोचिंग ले चुके तकरीबन 200 बच्चे आईआईटी से लेकर अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला ले चुके हैं जिनमें ज्यादातर बच्चों के माता-पिता की आय 1 लाख रुपए सालाना से कम है.

ऐसे में इन गरीब मेधावी बच्चों को तराश कर और उनके जीवन को संवारने में मगध सुपर 30 की भूमिका बेहद अहम है.

आईआईटी दिल्ली से एमटेक कर रहे चैतन्य का कहना है कि सुपर 30 के बगैर उनके लिए आईआईटी सोचना किसी सपने से कम नहीं था. वो आईआईटी में हैं तो प्रॉपर गाइडेंस की वजह से और इसका सारा क्रेडिट मगध सुपर 30 को जाता है.

बच्चों को एक विशेष बॉन्डिंग और आपस में एक-दूसरे की मदद इस छोटे से कोचिंग इंस्टीट्यूट को बेहतरीन बनाता है. विद्यार्थी अभाव में जीते हुए एक-दूसरे की मदद कैसे करते हैं वो कल्चर यहां के बच्चों में कूट-कूट कर भरा हुआ प्रतीत होता है.

आईआईटी दिल्ली में पढ़ रही रेणु कहती हैं कि वो मामूली घर में पैदा हुई और माता-पिता के साथ खेत में काम करते हुए बड़ी हुई हैं. उनके लिए आईआईटी का नाम जानना भी बड़ी बात थी. लेकिन पैसों की तंगी के बावजूद मार्गदर्शन देकर उन्हें आईआईटी दिल्ली तक पहुंचाने वाला अगर कोई है तो मगध सुपर 30 ही है.

जाहिर है ऐसे 200 लड़कों और लड़कियों की सफलता की कहानी लिखने वाला मगध सुपर 30 नक्सली इलाकों में भी अपनी अमिट छाप छोड़ रहा है. इस काम में मदद कर रहे हैं समाज के कई लोग जिनमें 3 नाम काफी महत्वपूर्ण हैं.

एक पत्रकार और 2 पुलिस अधिकारियों की मदद से मगध सुपर 30 कामयाबी के शिखर पर पहुंचा है.

गरीब मेधावी छात्रों को कोचिंग देकर पंकज कुमार उन्हें आईआईटी और अन्य प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संंस्थानों में एडमिशन के लिए तैयार करते हैं

10 साल में 200 गरीब बच्चों का भविष्य संवारने में सराहनीय भूमिका

पंकज कुमार पेशे से पत्रकार रहे हैं लेकिन पिछले 10 साल में 200 गरीब बच्चों के भविष्य को बदलने में उनकी भूमिका बेहद सराहनीय रही है. खुशबू अपनी मां, बहन और पिता सबको खो देने के बाद उन्हें ही अपना पिता मान चुकी है.  आईआईटी दिल्ली से लेकर आईआईटी मुंबई, कानपुर और अन्य संस्थानों में पढ़ रहे बच्चे अपनी सफलता का श्रेय भी उन्हें तहे दिल से देते हैं. मगध क्षेत्र पंकज कुमार की एक विशेष पहचान बन चुकी है. लोग उन्हें भाग्य विधाता के तौर पर देखने लगे हैं.

पंकज कुमार गरीब बच्चों के लिए समाज से भिक्षा के तौर पर चंदा वसूलते हैं और हर साल संस्थान के मद में खर्च किए गए एक-एक रुपए का हिसाब देकर लोगों को इस कार्य में मदद करने के लिए प्रेरित करते हैं.

पंकज कुमार के मुताबिक यहां तक पहुंचने में समाज के द्वारा आर्थिक मदद और उस पैसे का बेहतरीन रिजल्ट के साथ समुचित सदुपयोग काफी सहायक रहा है. पंकज कुमार कहते हैं कि संस्थान के बेहतरीन रिजल्ट जिनमें उन शिक्षकों का भी योगदान है जो दूर-दराज से आकर यहां फ्री सेवा देते हैं. उनके मुताबिक पढ़ाई में मार्गदर्शक के तौर पर विशेष भूमिका पूर्व डीजीपी अभयानंद जी की रहती है जो डे टू डे (दिन-प्रतिदिन) के प्रॉग्रेस में विशेष रूचि लेते हैं. इतना ही नहीं पिछले सप्ताह सभी बच्चों को गया से पटना बुलाकर मॉडर्न फिजिक्स का सिलेबस (पाठ्यक्रम) पूरा करा उन्हें आने वाले परीक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार कर दिया. अभयानंद इस संस्थान के पठन-पाठन में विशेष रूचि रखते हैं इसलिए यहां का रिजल्ट बेहतर होता रहा है. पंकज कुमार के मुताबिक संस्थान में बच्चों के सेलेक्शन से लेकर सिलेबस को पूरा करने में उनका विशेष योगदान रहता है.

पूर्व डीजीपी अभयानंद छात्रों की पढ़ाई में मार्गदर्शक के तौर पर विशेष भूमिका निभाते हैं साथ ही वो उनके डे टू डे के प्रॉग्रेस में भी रूचि लेते हैं

समाज सेवा की भावना को देखते हुए पुलिस अधिकारी मदद के लिए आते हैं आगे

वैसे मगध सुपर 30 में समाज सेवा की भावना को देखते हुए ज्यादातर पुलिस अधिकारी मदद को आगे आते रहे हैं. पंकज कुमार बताते हैं कि इसकी स्थापना में प्रवीण वशिष्ठ जी की अहम भूमिका रही है जब वो गया रेंज में डीआईजी के पद पर तैनात थे. इस संस्थान के मेंटर के रूप में वो अपना योगदान देते रहे हैं. वहीं आईपीएस दलजीत सिंह समेत आईपीएस मलार विज भी यहां आकर अलग-अलग तरीके से बच्चों को प्रोत्साहित करती रही हैं. दलजीत सिंह यहां बच्चों को प्रतियोगिता की तैयारी के लिए गणित पढ़ाया करते थे.

जाहिर है समाज के लोगों का इस कदर आगे आकर मदद करने से यह संस्थान बुलंदियों की ऊंचाई को छूने लगा है. इसलिए इसका टैग लाइन 'समाज के लिए समाज के द्वारा' लोगों को आकर्षित करता है क्योंकि मुनाफा और निजी स्वार्थ यहां के जन-जीवन में न तो दिखाई पड़ता है न ही उसकी कहीं बू आती है