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सियासत का महाकाव्य: भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी

हिंदुस्तान की सियासत का एक महाकाव्य तो किसी कविता के प्रवाह के मानिंद हैं अटल बिहारी वाजपेयी

Kinshuk Praval

‘टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी

अंतर को सुन व्यथा पलकों पर ठिठकी


हार नहीं मानूंगा

रार नहीं ठानूंगा

काल के कपाल पर लिखता और मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं......’

हिंदुस्तान की सियासत का एक महाकाव्य, तो किसी कविता के प्रवाह के मानिंद हैं अटल बिहारी वाजपेयी. हिंदुस्तानी सियासत पर एक अमिट दस्तखत, तो भारतीय राजनीति के उतार-चढ़ाव के बीच एक ठहराव भी. इस चेहरे में हिंदुस्तान की सियासत का कई दशकों का इतिहास सिमटा हुआ है. इस शख्सियत में आजाद भारत के राजनीतिक संघर्ष की गाथा समाहित है.

जबांदानी के उस्ताद और वाक् चातुर्य और वाक सौंदर्य का रूपक, तो देश की राजनीति में एक कविता हैं अटल बिहारी वाजपेयी. उनकी  कविताओं के पीछे एक अतीत है. जब जनता पार्टी बनी और जब जनता पार्टी टूटी तब उन्होंने कविताएं लिखीं.

उनकी कविताएं उनके व्यक्तित्व का आईना है. कविताओं की तहरीरों में अटल जी की भावनाएं हैं. आज जीवन के उस पड़ाव पर अटलजी हैं जहां वो महसूस कर सकते होंगे कि 92 साल के सफर में उन्होंने क्या खोया क्या पाया.

 ‘क्या खोया, क्या पाया जग में

मिलते और बिछुड़ते मग में

मुझे किसी से नहीं शिकायत

यद्यपि छला गया पग-पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें,

यादों की पोटली टटोलें!’

अटल जी जानते हैं, जीवन के संघर्ष का सच और पड़ाव को मंजिल समझने की भूल का फर्क. तभी उनकी कविताओं में कहीं विद्रोह है, तो कहीं वेदना है, तो कहीं बैचेनी है. अटल जी कहते हैं कि कविता उन्हें 'घुट्टी' में मिली थी. पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी से विरासत में वाजपेयी को कविता और साहित्य मिले.

अटलजी का राजनीतिक सफर

भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अटल उदय की कहानी शुरु होती है सन् 1951 से. जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटल बिहारी वाजपेयी की वाणी में बसी सरस्वती को महसूस किया और जनसंघ का स्थापक सदस्य बनाया. वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई भारतीय जनसंघ की स्थापना के साथ और जनसंघ के ही टिकट पर पहली बार संसद पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी.

1957 के चुनाव में अटल जी ने उत्तर प्रदेश के बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीता. संसद में युवा अटल के विचार सुनकर सत्तासीन सरकार के नुमाइंदे भी उनकी जबांदानी के मुरीद हो गए. ये तक कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से कहा था कि ये लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री जरूर बनेगा.

अटल जी की सियासत का सफर एक नई जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ रहा था. 1968 से लेकर 1973 तक अटल बिहारी वाजयपेयी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. 1971 में अटलजी ने अपना चुनाव क्षेत्र भी बदला और उत्तर प्रदेश के बलरामपुर की जगह अपने जन्मस्थान यानी मध्यप्रदेश के ग्वालियर को चुना.

1955 से 1977 तक अटल बिहारी वाजपेयी संसद में भारतीय जनसंघ के नेता रहे. बाइस साल का ये वक्त पूरे देश के पटल पर वाजपेयी जी की साफसुथरी राजनीति की गहरी छाप छोड़ रही था.

इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिशास्त्र में पढ़ाई पूरी कर एक पत्रकार के रुप में काम शुरू कर चुके थे लेकिन वक्त के साथ वाजपेयी  का दूसरा चेहरा भी सामने आ रहा था.

पक्ष हो या विपक्ष सबमें स्वीकार्य

अटल बिहारी वाजपेयी किसी पार्टी विशेष के नेता से ज्यादा पूरे देश के नेता की छवि के साथ तेजी से आगे बढ़ रहे थे. अपने व्यवहार और आचरण से दूसरे दलों में भी स्वीकार्य छवि बना चुके थे. विपक्ष में बैठने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी की तुलना मां दुर्गा की थी जो उनकी सहृदयता की बानगी थी.

1975 में देश में इमरजेंसी लगी. देश में गिरफ्तारी का रेला चला. अटल जी भी गिरफ्तार हुए और उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी के साथ बैंगलोर की सेंट्रल जेल में रखा गया. लेकिन अटल जी की साहित्यिक आजादी और मौलिकता जेल की दीवारों में कैद न हो सकीं. उन्होंने ‘कैदी कविराज की कुंडलियां’ नाम की रचनाओं को रूप दिया.

1977 में जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसमें भारतीय जनसंघ का विलय कर दिया गया. अटल जी जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. पूरे देश में जनता पार्टी की लहर चली और जनता पार्टी सत्ता में आई. अटल जी जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने.

अटल जी की बेबाक और बेलौस संवाद अदायगी एक मिसाल बन गई संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में, जहां 4 अक्टूबर 1977 को अटल जी ने हिंदी में भाषण देकर सबको चौंका दिया.

जनता पार्टी में भारतीय जनसंघ के विलय के प्रयोग के नाकाम होने के बाद अटल जी ने जनसंघ के नए अवतार की कमी महसूस की. साल 1980 में वाजपेयी जी ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और पहले अध्यक्ष बने. 1980 से 1986 तक अटल जी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे और साथ ही संसद में पार्टी के नेता भी.

अटलजी साल 1962 में पहली दफे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. उसके बाद लगातार लोकसभा के सदस्य रहे. 1980 से 1990 तक का वक्त अटल जी ने राज्यसभा को दिया. ये वही वक्त था जब भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ दो ही सदस्य लोकसभा तक पहुंचे थे.

गठबंधन राजनीति का सफल नेतृत्व

नब्बे का दशक शुरु हो चुका था. देश आर्थिक मोर्चे पर बदहाली के दौर से गुजर रहा था. देश का सोना तक गिरवी रखना पड़ा था. यही नब्बे का दशक बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति के लिए नई पटकथा लिखना शुरु कर चुका था.

पिछले तीन दशक के तजुर्बे और सियासी संघर्ष का फल अटल जी को पूरे दशक के लिए मिलने वाला था. देश ने पांच साल में कई सरकारें और कई प्रधानमंत्री देख लिए थे. देश आम चुनाव के लिए तैयार था. 1995 में बीजेपी के मुंबई अधिवेशन में लालकृष्ण आडवाणी ने एलान किया कि वाजपेयी पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का चेहरा होंगे.

1996 के आमचुनाव में कांग्रेस की भारी हार हुई. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने वाजपेयी जी को सरकार बनाने का न्योता दिया.

16 मई 1996 को पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने. ये वो वक्त था जब लोगों का लोकतांत्रिक संस्थाओं से भरोसा उठ रहा था तो राजनेताओं पर से विश्वास उठ रहा था. वाजपेयी जी के लिए उस विश्वास को बहाल करना पहली बड़ी चुनौती थी तो साथ ही राजनीति को बेदाग बनाने की भी.

हालांकि वाजपेयी जी की ये पहली सरकार सिर्फ तेरह दिन ही चल सकी और लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने लायक विश्वास मत नहीं मिल सका. लेकिन अटल जी के भीतर हताशा घर नहीं बना सकी. कवि हृदय एलान कर चुका था कि ‘हार नहीं मानूंगा ....रार नहीं ठानूंगा....’

विपरीत परिस्थितियों में देश को फील गुड कराया

1996 से 1997 तक वाजपेयी लोकसभा में विपक्षी दल के नेता रहे. लेकिन 1998 में वाजपेयी जी को देश ने दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाया. इस मौके पर वाजपेयी जी के एतिहासिक फैसले ने देश को दुनिया के सामने नई पहचान दे दी. भारत परमाणु सम्पन्न राष्ट्रों की कतार में शामिल हुआ क्योंकि वाजपेयी जी की पहल से ‘बुद्ध मुस्कुराए’ और भारत ने 11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया.

90 के दशक में अटल-आडवाणी-जोशी . फोटो: रायटर्स

हालांकि परीक्षण से अंतर्राष्ट्रीय पाबंदियों की आंधियां चली. अमेरिका समेत दुनिया के कई बड़े देशों ने भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए  लेकिन वाजपेयी जी की सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और देश की विकास दर छह के आंकड़े को चूमती हुई ही दिखाई दी. लेकिन ये सरकार 13 महीने में सिर्फ एक वोट से गिर गई.

देश 1996 से 1999 तक बदलते हुए प्रधानमंत्री और अस्थिर सरकारों को केंद्र में देख रहा था और एक उलझा हुआ जनमत त्रिशंकु हालात दे रहा था. लेकिन 1999 के आम चुनावों में कहानी पूरी तरह से बदल गई. 13 अक्टूबर 1999 में वाजपेयी देश के तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. एनडीए के गठबंधन की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन ये पांच साल अग्निपथ से कम नहीं थे.

पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सुलझाने और मजबूत करने की कोशिश में वाजपेयी जी  ने दिल्ली से लाहौर तक सदा-ए-सरहद बस चलाई. वाजपेयी जी खुद बस पर सवार हो कर लाहौर पहुंचे. लेकिन पाकिस्तान को दी गई दोस्ती की सदा पर करगिल जंग की गूंज भारी पड़ गई. पाकिस्तान ने बदले में करगिल की जंग दी जिसमें  वो परास्त भी हुआ.

अटल जी ने अपने प्रधानमंत्री काल में देश को कई गौरव दिए तो विकास के कई आयाम दिए. लेकिन इंडिया शाइनिंग और फील गुड फैक्टर 2004 के आम चुनाव में जनता के दिलों में जगह नहीं बना सके और एनडीए चुनाव हार गई. जिसके बाद खराब स्वास्थ की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया.

अटल बिहारी वाजपेयी आज एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है. अटल जी ही एक ऐसे सांसद रहे जो चार अलग-अलग राज्यों से निर्वाचित हुए. उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात

सियासत को पचास साल देने के बाद भी एक ऐसा बेदाग चेहरा जिसे आज भी पूरा देश प्यार करता है क्योंकि लोगों के दिलों में वाजपेयी की ‘अमर आग’ है.

‘बिखरे नीड़,

विहंसे चीड़,

आंसू हैं न मुस्कानें,

हिमानी झील के तट पर

अकेला गुनगुनाता हूँ.

न मैं चुप हूँ न गाता हूं.

आज नेपथ्य में वो चेहरा है. आज एकाकीपन में वो नायक है. आज खामोशी में वो आवाज है. आज ओझल वो अंदाज है. शून्य के एकाकीपन में एक युग है. लेकिन फिर भी वो अविरल है और अटल है.