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काजीरंगा बाढ़: 'सुंदरी' की कहानी बताती है आखिर टाइगर क्यों नहीं छोड़ता अपना इलाका

कहते हैं जानवर समझदार होते हैं. वो इनसान से ज्यादा कुदरत को पहचानते और उसकी इज्जत करते हैं

Subhesh Sharma

उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य इन दिनों बाढ़ की मार झेल रहे हैं. जिन राज्यों में बाढ़ का कहर सबसे अधिक देखने को मिला है. उनमें असम, बिहार और उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं. लेकिन हालात सबसे बदतर असम में है और असम में भी काजीरंगा नेशनल पार्क में. बाढ़ के कारण इस पार्क का लगभग 85 फीसदी हिस्सा पानी में डूबा हुआ है.

सरकार बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. लेकिन बेजुबान जानवरों के बचाव कार्य में ऐसी फुर्ती कम ही देखने को मिलती है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, 346 जानवर बाढ़ के कारण मारे जा चुके हैं. जिनमें 15-20 गेंडे, एक टाइगर और चार हाथी भी शामिल हैं. सबसे ज्यादा 196 हॉग डियर मारे गए हैं. जबकि करीब 12 सांभर हिरणों की भी बाढ़ के कारण मौत हुई है.


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कहते हैं जानवर समझदार होते हैं. वो कुदरत को इनसान से ज्यादा पहचानते और उसकी इज्जत करते हैं और तभी मॉनसून के टाइम अपनी समझदारी से ऊंची जगहों की ओर मूव कर जाते हैं. लेकिन हर एक जानवर समय रहते सुरक्षित स्थान पर नहीं पहुंच पाता है. कुछ अपने इलाके को मरते दम तक नहीं छोड़ते हैं. बात अगर टाइगर की ही करें, तो उसे अपने इलाके से बहुत प्यार होता है. एक टाइगर अपने इलाके की रक्षा के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देता है. कई बार टाइगर्स बाढ़ या सूखा पड़ने पर भी अपना इलाका छोड़ कर नहीं जाते हैं.

मछली की बेटी भी बिल्कुल उसके जैसी

बाढ़ आने पर भी अपना इलाका न छोड़ कर जाने की एक बड़ी अच्छी कहानी है, लेजेंड्री बाघिन मछली की बेटी T17 यानी सुंदरी की. सुंदरी ने अपना इलाका अपनी मां और तीन बहनों को हराकर हासिल किया था. जिस इलाके को सुंदरी ने अपना बनाया था. उस पर मछली ने करीब 10 सालों तक राज किया था. ये इलाका रणथंबोर नेशनल पार्क के सबसे अच्छे इलाकों में से एक है. लेकिन एक दिन एक यंग टाइगर सुंदरी के इलाके में घुसपैठ करता है.

धीरे-धीरे वो निडर होकर T17 के इलाके में घूमने-फिरने लगता है. कुछ वक्त बाद मॉनसून रणथंबोर में दस्तक देता है. और सभी जानवर किले वाले सुंदरी के इलाके को छोड़ ऊंची पहाड़ियों का रुख करते हैं. लेकिन सुंदरी अपने इलाके को नहीं छोड़ती है और चार महीनों के लंबे मॉनसून सीजन को झेलती है. इसकी वजह थी वो यंग टाइगर. जोकि उसके इलाके को अपना समझने लगा था. अगर इस वक्त पर सुंदरी अपना इलाका छोड़ देती, तो उसे उसका घर दोबारा शायद ही मिलता. इस मजेदार किस्से से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी जानवर को अपने इलाके से कितना प्यार होता है.

संभलने का मौका तक न मिला

काजीरंगा में 1988 के बाद 2017 में बाढ़ का ऐसा कहर देखने को मिला है. बाढ़ में करीब 20 गेंडों की भी मौत हुई. टाइगर्स की तरह गेंडा भी अकेला रहने वाला जानवर है. गेंडा भी अपने इलाके में आखिर तक बने रहने की कोशिश करता है. अपना इलाका छोड़कर न जाना काजीरंगा में गेंडों की मौत का बड़ा कारण हो सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पार्क के डायरेक्टर सतेंद्र सिंह का कहना है कि मौसम की पहली बारिश से पार्क का ज्यादातर इलाका लंबे समय के लिए पानी में डूबा गया. इस दौरान लगभग 105 जानवरों की मौत हुई. लेकिन इसके बाद आई दूसरी बाढ़ ने जानवरों को संभलने का मौका तक नहीं दिया. 10 से 12 घंटों के अंतराल में ही जल स्तर 10 फीट तक बढ़ गया. जिससे 264 और जानवरों की मौत हो गई.

सिंह ने कहा कि इस साल 200 से ज्यादा हिरण, पांच हाथी, 20 गेंडे, चार जंगली भैंसे और चार जंगली सुअरों (वाइल्ड बोर) की मौत हुई है. आमतौर पर हाथी, गेंडे, टाइगर, भैंस और वाइल्ड बोर ऊंचे इलाकों की ओर बढ़ जाते हैं. जबकि छोटे जानवरों का बाढ़ में बहने का खतरा रहता है.

सोचने वाली बात है

ये सोचने वाली बात है कि अगर सभी जानवर ऊंचे इलाकों में चले जाएंगे, तो भिड़ंत होनी पक्की है. सिंह का कहना है कि हमारे गार्ड्स ने हाथियों की तेज चिंघाड़ सुनी थी. हाथियों की वो चिंघाड़ आम नहीं थी. अगले दिन हमें एक छोटे हाईलैंड पर बाघ का शव मिला. और पास में हाथी के एक बच्चे का भी शव मिला. हो सकता है चार साल के नर बाघ ने हाथी के बच्चे का शिकार किया हो और झुंड ने उसे कुचल दिया हो. सिंह की इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है. हाथियों ने ही बाघ को मारा हो, ऐसा काफी हद तक संभव है.

बहरहाल जंगल में जानवरों के रहने के भी अपने नियम कायदे हैं. वो भी अपने घरों से उतना ही प्यार करते हैं. कुदरत के कहर से जूझते हुए आखिरी वक्त तक डटे रहते हैं. इन बेजुबानों की जिंदगी ज्यादा मुश्किल है. कुदरत ही नहीं उन्हें तो हम इंसानों से भी उतना ही खतरा है.