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जन्मदिन विशेष: जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीती हैं आशा भोसले

समाज की तमाम धारणाओं, वर्जनाओं को तोड़ने का काम आशा भोसले ने किया है, इसीलिए वो किसी भी गायिका से अलग दिखाई देती हैं

Shailesh Chaturvedi

किसी पारंपरिक परिवार की लड़की हो. भारत में गुलामी के दौर में जन्मी हो. लेकिन उसने तय किया हो कि जिंदगी जीने के लिए किसी बंधन को नहीं मानेगी. उसने जिंदगी अपनी शर्तों पर,अपने तरीके से, पूरी आजादी के साथ जी हो, तो उसका नाम आशा से बेहतर क्या हो सकता है.

वाकई, आशा भोसले की जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने की जिद को लेकर एक मिसाल है. एक से ज्यादा शादियां. किसी की गुलामी नाकाबिले बर्दाश्त. जिस दौर में लोग लिव-इन जैसे शब्द को किसी पाप की तरह लेते थे, आशा जी ने उसे किसी आम प्रचलन की तरह स्वीकार किया. समाज की तमाम धारणाओं, वर्जनाओं को तोड़ने का काम आशा भोसले ने किया है. इसीलिए वो किसी भी गायिका से अलग दिखाई देती हैं.


लता जी के पर्सनल सेक्रेटरी से आशा को हो गया था प्यार

8 सितंबर 1933 की बात है. पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर एक और बेटी का जन्म हुआ. महाराष्ट्रियन परिवार था. पहली बेटी का नाम हेमा था, जो बाद में लता हो गईं. दूसरी बेटी का नाम रखा आशा. आज आशा की उम्र 84 साल हो रही है. लेकिन अब भी वो गाती हैं, तो लगता है वक्त थम जाए. उम्र का असर अब जरूर उनकी आवाज पर दिखने लगा है. लेकिन मिठास वैसी ही है, जिंदादिली वैसी ही है. दरअसल, वो जिंदगी की आशा हैं. अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी. उन्होंने बहुत मुश्किलें झेली हैं. हर मुश्किलों ने उन्हें और मजबूत ही किया.

आशा नौ साल की थीं, जब परिवार पुणे से बंबई आ गया. उन्होंने अपनी बड़ी बहन लता के साथ गाना शुरू किया. फिल्मों में एक्टिंग भी की. 1943 में एक मराठी फिल्म के लिए उन्होंने पहला गाना गाया. पहली हिंदी फिल्म 1948 में आई. हंसराज बहल की इस फिल्म का नाम था चुनरिया. पहला सोलो गाना 1949  फिल्म रात की रानी के लिए था.

उन दिनों लता मंगेशकर का काफी नाम होने लगा था. लता जी ने पर्सनल सेक्रेटरी भी रख लिया था. उनका नाम था गणपतराव भोसले था. कुछ जगह गणपतराव भोसले को राशन इंस्पेक्टर बताया गया है. आशा जी को गणपतराव से प्यार हो गया. घर वाले तैयार नहीं हुए. दोनों घर से भाग गए. आशा जी 16 की थीं और गणपतराव 31 के, शादी नहीं चली.

आशा जी के अनुसार गणपतराव ने उनको घर से निकाल दिया. गणपतराव का परिवार एक स्टार गायिका को स्वीकार नहीं कर पाया. उनके साथ मारपीट की कोशिश होती थी. आखिरकार शादी का अंत हुआ. वो अपनी मां के घर चली आईं. दो बच्चों हेमंत और वर्षा के साथ. उसके अलावा एक गर्भ में.

आशा जी अपना घर बनाना चाहती थीं

पहली शादी न चलने के बाद आशा भोसले में सफल होने की इच्छा और ज्यादा बढ़ गई थी. अब वो हर तरह से जिंदगी ‘सिक्योर’ करना चाहती थीं. उनके तीन बच्चे थे. हेमंत, वर्षा और आनंद. वर्षा ने कुछ साल पहले आत्महत्या कर ली थी. हेमंत की 2015 में कैंसर से मौत हो गई. वर्षा कॉलम लिखा करती थीं. कई कॉलम अपनी आई यानी मां के बारे में थे. उन्होंने बचपन की कहानी लिखी है कि कैसे सुबकते हुए आशा जी आती थीं और उन्हें सुलाकर चली जाती थीं. उसके बाद उनका कमरा बंद हो जाता था. वहां से आवाजें आती थीं. जाहिर है, वो आवाजें गणपतराव भोसले और आशा भोसले के बीच झगड़े की थीं.

वर्षा के अनुसार वो मारपीट बर्दाश्त नहीं कर पाईं और अपनी कमाई की एक-एक पाई उस घर में छोड़कर बच्चों के साथ निकल आईं. आशा जी अपना घर बनाना चाहती थीं. वो बच्चों को सारी सुख सुविधाएं देना चाहती थीं. वर्षा ने लिखा था- मैंने पूछा कि आई, हमारे पास नानी का घर है. तुम्हारी बहनों का घर है. हमें इतनी जल्दी क्या है कि इतना बड़ा घर बनवाएं. घर बनाने के बजाय तुम हमारे साथ ज्यादा समय क्यों नहीं बितातीं.

आशा जी का जवाब था कि मैं नहीं चाहती कि तुममें से कोई किसी की दया पर पले. कोई तुम्हें नुकसान पहुंचाए. तुम अपने घर में बड़े हो. किसी की दया पर नहीं. ये किस्सा बताता है कि पहली शादी के टूटने की किस कदर कड़वी यादें उनमें थीं. वो अपने बच्चों को ऐसी किसी भी आशंका से दूर रखना चाहती थीं. उनकी मानसिक ताकत के बारे में भी ये कहानी काफी कुछ कहती है.

नैयर और पंचम

आशा भोसले के करियर को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. ओपी नैयर से पहले... और बाद. नैयर साहब ने एक तरह से आशा जी को वो पहचान दी, जिसकी वो हकदार थीं. हालांकि आशा जी इसके लिए बीआर चोपड़ा को ज्यादा श्रेय देती हैं. उनका कहना है कि किसी नई गायिका को मौका देने के लिए जो हिम्मत चाहिए, वो बीआर चोपड़ा में थी. सही है कि दोनों के बीच रिश्ते की बात ओपी नैयर हमेशा स्वीकारते थे. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि हमारा रिश्ता वही था, जो पति-पत्नी का होता है. लेकिन अलगाव के बाद आशा जी एक समय उस रिश्ते पर बात करने में हिचकने लगीं.

ओपी नैयर से आशा जी की पहली मुलाकात 1952 में हुई थी. सीआईडी में नैयर साहब ने आशा जी को पहला बड़ा ब्रेक दिया था. साल था 1956. नया दौर के बाद तो ये जोड़ी जबरदस्त हिट हो गई.  फिर रिश्ता प्रोफेशनल से बढ़कर भावनात्मक रूप लेने लगा. 1974 में आशा जी ने ओपी नैयर के लिए आखिरी गाना रिकॉर्ड किया. फिल्म थी प्राण जाए पर वचन न जाए. 1972 में दोनों अलग हो गए थे. ओपी नैयर से कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि मैं ज्योतिष में बहुत भरोसा करता हूं. मुझे पता था कि हमें अलग होना है. कुछ ऐसा हुआ कि मैं अलग हो गया. हालांकि वो यह कहते रहे कि उनकी जिंदगी में सबसे अहम इंसान आशा भोसले रही हैं.

फिर आशा जी ने पंचम के साथ जिंदगी बिताने का फैसला किया. पंचम यानी आरडी बर्मन. दोनों की पहली शादी की कहानी लगभग एक जैसी थी. आशा जी को खुद से करीब 15-16 साल बड़े गणपतराव से प्यार हो गया था, जिनसे उन्होंने शादी की. आरडी बर्मन की शादी रीता पटेल से हुई थी. रीता ने आरडी के साथ डेट की शर्त लगाई थी, जो धीरे-धीरे प्यार में बदली और शादी हो गई. लेकिन शादी के बाद दोनों को समझ आया कि वो एक-दूसरे के लिए नहीं हैं. कड़वाहट के साथ शादी टूटी. जब आशा जी पहली बार आरडी से मिली थीं, तो वो दसवीं क्लास में थे. लेकिन आखिरकार कुछ साल बाद दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया. आशा जी पंचम को बब्स बुलाती थीं.

वो वाकई संगीत के लिए आशा हैं

आशा भोसले और आरडी बर्मन ने 1980 में शादी की. जाहिर है, आशा जी बड़ी थीं. लेकिन ऐसा लगा नहीं कि इसका दोनों पर कोई असर पड़ा. दोनों को खाना बनाने का बड़ा शौक था. दोनों एक-दूसरे के लिए उनकी पसंद का खाना पकाते थे. खाना और गाना.. दोनों चीजें कॉमन थीं. दोनों में इस बात को लेकर झगड़ा भी होता था कि कौन बेहतर खाना बनाता है.

आशा जी ने अपने इंटरव्यू में कई बार बताया है कि वो पंचम से झगड़ा करती थीं कि उन्हें शास्त्रीय संगीत वाले गाने क्यों नहीं दिए जाते. सारे सुरीले गाने लता मंगेशकर को मिलते हैं. उनके हिस्से आड़े-तिरछे गाने आते हैं. इस पर पंचम का जवाब था कि वो गाने तुम्हीं गा सकती हो, इसलिए मैं वो बनाता हूं. फिर वो दिन आया, जब पंचम दुनिया छोड़ गए. आशा जी ने संघर्ष भरी जिंदगी में एक और मुश्किल मोड़ देखा. वो टूट गईं. लेकिन उन्होंने हमेशा की तरह वापसी की. आशा जी कहती हैं कि पिता की मौत के बाद ये उनकी जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर था.

उसके बाद भी उन्होंने अपने करीबियों की मौत देखी है. वो दर्द झेला है. लेकिन हर बार जब आशा जी किसी पब्लिक फंक्शन में आती हैं, तो उन्हें देखकर खुशनुमा अहसास होता है. वो वाकई संगीत के लिए आशा हैं. विद्रोह के लिए आशा हैं. जिंदगी के लिए आशा हैं.

(ये लेख पूर्व में प्रकाशित हो चुका है, हम इसे दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं)