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देश भर के साधुओं का दु्र्लभ और अनोख डेरा है माघ मेला

आस्था से भरे श्रद्धालु दूर दूर से स्नान के लिए गंगा तट पर पहुंचते हैं

Gyan prakash Singh

हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीना साल का ग्यारवां महीना है. गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर इलाहाबाद में माघ के महीने में एक मेला लगता है जिसको माघ मेला कहा जाता है. इन तीन नदियों के संगम पर 1432 बीघे में माघ महीने में एक शहर बसाया जाता है जो हर साल की तरह इस साल भी दो महीने के लिए बसाया गया है. इस शहर में बिजली पानी और सभी दैनिक जीवन की वस्तुएं आपको मिल जाएगी.

भारत में रहने वाले सभी साधू संत इस माघ मेले का इंतजार करते हैं और मेला लगने से पहले अपने अपने तम्बू लगा लेते है और विभिन्न तरह की साधनाओं में लग जाते हैं. भारत के हर कोने से इस मेले में श्रध्दालु आते हैं और कल्पवास करते है. कहा जाता है की माघ मेले में कल्पवास करने वाले को हजार अश्वमेघयज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है. 2 जनवरी 2017 को पौष पूर्णिमा के दिन माघ मेले का पहला स्नान संपन्न हुआ और लगभग 60 लाख लोगो ने स्नान किया.


क्यों होता है खास

मान्यता के अनुसार जब तारे दिख रहे हों उस समय का स्नान सबसे ज्यादा शुभ फल देता है और सूर्योदय के बाद का स्नान अधम फल देता है.  कल्पवास करने वाले साधू महात्मा सूर्य की पहली किरण निकलने से पहले ही स्नान कर लेते है और उस समय आम जनता को प्रशासनिक अमला रोके रहता है, जब साधू महात्मा स्नान कर लेते है उसके बाद अन्य लोग स्नान करते हैं. भारत की विविधता को देखने का एक अनोखा अवसर है माघ मेला. इस मेले में ऐसे अद्भुत लोग देखने को मिलेंगे जो हम सब किस्सों कहानियों में पड़ते और सुनते हैं. नागा साधुओं का ऐसा रूप जो कही अन्य देखने को नहीं मिलेगा. अघोरियो की औघड़ साधना जो दुर्लभ है वो भी इस माघ मेले में जगह जगह देखने को मिल जाती है.

उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों का कल्पवास करना अपने आप में एक रोमांच पैदा करता है. लगभग 10 डिग्री तापमान पर एक कपड़े के तम्बू में एक महीने तक ईश्वर की आराधना करना.सुबह सुबह बर्फ जैसे संगम के पानी में स्नान करना और अपने हाथों से खाना बना के खाना. इन सब घटनाओ को बिना आंखों से देखे कोई भरोसा नहीं कर सकता. लेकिन इस समय माघ मेले में ये सब घटनाएं आम हैं.

विदेशी सामजशास्त्री आज भी इस बात को लेकर अपना रिसर्च करते हैं की ऐसी कौन सी ताकत है जो इन लोगो को इस कड़ाके की ठण्ड में भी इस तरह के काम करने की प्रेरणा देती है और लाखों लोग एक साथ एक अस्थाई शहर के नागरिक बन जाते हैं.

14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन आपको संगम पर पांव रखने तक की जगह नहीं मिलेगी. भोर का पहला स्नान जब नागा सन्यासी झुण्ड में करने निकलते हैं तो आप वो दृश्य देखने के बाद जीवन भर नहीं भूल सकते. हजारो विदेशी जो भारत की संस्कृति से प्रभावित होकर सन्यासी बन गए हैं उनको देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे भारत की संस्कृति में कुछ तो ऐसा है जो विदेशी भी इसका हिस्सा बन कर धन्य महसुस कर रहे हैं.

माघ मेले से जुड़ी तैयारियां

प्रशासन ने माघ मेले की सुरक्षा को बहुत ही सुंदर तरीके से  व्यवस्थित किया हुआ है. जगह जगह आपको पुलिसकर्मी मिल जाएंगे जो आपके मार्गदर्शन का काम करेंगे. सीसी टीवी कैमरों की मदद से पूरे माघ मेले की निगरानी की जा रही है. आधुनिक ड्रोन से पूरे माघ मेले की हवाई निगरानी का भी इंतजाम किया गया है.

सूरज के डूबते ही जब यह रेत पर बसा शहर रौशनी में नहाता है तो आंखे खुली की खुली रह जाती हैं. जगह जगह हवन की धुएं की महक आपको आध्यात्मिक अनुभव कराती है और मंत्रों का धीमा धीमा जाप आपको अनंत सुख प्रदान करेगा. इस भागम भाग की जिंदगी में माघ मेले में आना अपने आप में एक अनोखा अनुभव होगा.

क्या है मान्यताएं

ज्योतिषियों का मानना है की माघ महीने में प्रयाग में संगम में स्नान करने मात्र से विषम से विषम ग्रह दोष भी शांत हो जाता है. पुराणों के अनुसार ब्रंहा ने सृष्टी की रचना करने के बाद प्रथम यज्ञ प्रयाग में ही किया जिसके कारण इस जगह का नाम प्रयाग पड़ा. भगवान विष्णु ने प्रयाग को ही अपनी मुख्य भूमि चुना था.

गंगा यमुना के संगम में सूरज निकलने से पहले स्नान करने वालो की भीड़ आपको बरबस ही अपनी तरफ खीचने लगेगी. कड़ाके की ठण्ड भी आपको आनंदित कर देगी. तो आइए इस माघ मेले में बरस रहे अमृत का अंश पाने का भागीदार बनिए और तर्क से दूर होकर आस्था के संगम पर पुण्य के भागीदार बनिए.