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जानिए कौन है वो फोटोजर्नलिस्ट जिसने खींची है दाऊद की फोटो

क्या आप जानते हैं कि दाऊद का नाम आते ही आपके दिमाग में जो तस्वीर कौंधती है, वह किसकी क्लिक है

Anand Dutta

साल 2014 में नरेंद्र मोदी बतौर पीएम संसद पहुंचने की तैयारी कर रहे थे. लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ बीजेपी को बहुमत देकर सत्ता सौंपी. उन उम्मीदों में एक वजह यह भी थी कि जब मोदी पीएम बनेंगे तो वह मोस्ट वांटेड डॉन दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान से खींचकर भारत लाएंगे. जनसभाओं में इस बारे में उन्होंने काफी कुछ कहा भी था. भारतीयों की यह हसरत कब पूरी होगी, यह तो नहीं पता. मगर क्या आप जानते हैं कि दाऊद का नाम आते ही आपके दिमाग में जो तस्वीर कौंधती है, वह किसकी क्लिक है?

पीली टीशर्ट, ब्राउन रंग का शीशा लगा काले फ्रेम वाला चश्मा, हाथ में फोन, घनी काली मूंछें, अंगुली में अंगूठी. हां...यही चेहरा आपको गूगल पर मिलेगा. डॉन की यह तस्वीर सबसे अधिक देखी और सर्च की गई है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसे किसी और ने नहीं, बल्कि भारत के फोटो जर्नलिस्ट ने खींचा है. नाम है भवन सिंह.


यह फोटो उन्होंने सन 1985 में शारजाह में भारत-पाकिस्तान में एक मैच के दौरान स्टेडियम में खींची थी. फिलवक्त वह नई दिल्ली के विनोद नगर स्थित अपने घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. जीवन के 80 बसंत देख चुके भवन सिंह अब मुश्किल से बोल पा रहे हैं. आईए जानते हैं क्या हुआ था उस दिन शारजाह के क्रिकेट स्टेडियम में.

‘बात मुंबई ब्लास्ट (1993) से कुछ साल पहले की है. मैं उस वक्त इंडिया टुडे में बतौर फोटो जर्नलिस्ट काम कर रहा था. वह डे-नाइट मैच था, जिसे कवर करने मैं कुछ और भारतीय फोटोग्राफरों के साथ पहुंचा था. मैच चल रहा था. मैं फोटोग्राफरों के लिए बने स्टैंड की जगह वीआईपी दर्शक दीर्घा में घूम रहा था. किसी ने दाऊद इब्राहिम का नाम लिया. जैसे ही मेरे कान में यह नाम गूंजा, मैं चौंक पड़ा. दो सेकेंड के लिए तो मेरे समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिए. लेकिन फिर मैंने अपनी ड्यूटी को सही तरीके से करने का फैसला किया.

ऐसे मिली 'डॉन' से इजाजत

उस वक्त तक दाऊद की कोई तस्वीर मीडिया में नहीं आई थी. मेरे पास दो कैमरे थे. एक को ट्रायपॉड पर लगाकर छोड़ दिया. दूसरे को गले में लटकाया और आगे बढ़ा. मैंने भी उससे पहले दाऊद को कभी देखा नहीं था. लेकिन उसके आसपास के माहौल से समझ गया कि हो न हो, यही वह डॉन है. जैसे ही मैंने फ्रेम सेट करना शुरू किया, उसके आसपास खड़े गुर्गों में छोटा राजन भी शामिल था, ने चिल्लाकर कहा कि क्यों खींच रहे हो फोटो. बंद करो. मैं भी सकपका गया. कुछ सेकेंड के लिए रुका और दाऊद की तरफ ताकता रहा. तभी दाऊद ने अपने गुर्गों की तरफ इशारा किया और कहा कि खींचने दो. मैंने पांच फोटो उतार ली और चुपचाप वहां से आगे निकल गया.’

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‘अब मेरा ध्यान मैच से ज्यादा इस फोटो को अपने संपादक और दोस्त (अरुण पुरी) को दिखाने पर था. मैं थोड़ा डरा भी था कि कहीं उसका मूड बदल गया तो अपने आदमियों को भेज उस फोटो को डिलीट भी करवा सकता था. या फिर मेरा कैमरा ले सकता था. अगले दिन दोपहर में शहर के एक दुकान में शॉपिंग करते सुनील गावस्कर मिले. मैच के बारे में उनसे हल्की-फुल्की बातचीत हुई. उन्होंने कहा कि डे-नाइट मैच की वजह से कई चीजें गड़बड़ हो रही हैं. भारत वह मैच हार भी चुका था.’

‘मैं वापस इंडिया आया. यहां जैसे ही अरुण पुरी ने वह फोटो देखी तो वह चौंक पड़े. उन्होंने बस इतना ही कहा कि ये तुम्हारे पास कैसे? इंडिया टुडे के बाकी साथी भी चौंके. खैर वह फोटो छपी. फिर क्या था...उसकी चर्चा होनी ही थी. इस बीच सुकून वाली बात ये रही कि जिसकी तस्वीर मैंने खींची थी, वह दाऊद ही था. अगर मैं गलत इंसान की तस्वीर खींच लेता, तो मेरे कैरियर पर सबसे बड़ा धब्बा होता.

भवन सिंह बताते हैं कि उसके बाद भारतीय पुलिस, इंटेलिजेंस के लोग... किसी ने मुझसे उसके बारे में पूछताछ नहीं की. जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था. भवन सिंह को हाल ही में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नेशनल हेराल्ड नामक अखबार से की थी. इसके बाद उन्होंने मदरलैंड नामक पत्रिका जॉइन कर ली थी. यह पत्रिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र हुआ करता था. इस नाते भवन सिंह के खाते में एक और उपलब्धि है.

शुरुआत के दिनों में संघ के शाखाओं और पदाधिकारियों की तस्वीर खींचने की मनाही थी. पहली बार भवन सिंह को ‘मदरलैंड’ के फोटोजर्नलिस्ट होने के नाते संघ शाखा की तस्वीर उतारने की अनुमति मिली. यह नानाजी देशमुख के कारण संभव हो सका था.

इसके बाद उन्होंने संघ के दूसरे संघचालक गोलवलकर उर्फ गुरुजी के देहांत को भी नागपुर जाकर कवर किया था. बाद में इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने इस पत्रिका पर बैन लगवा दिया था. उसके बाद उनकी नौकरी भी चली गई थी. इसके बाद उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स और फिर इंडिया टुडे जॉइन किया. इंडिया टुडे में रघु रॉय फोटो एडिटर थे. वह असिस्टेंट फोटो एडिटर नियुक्त हुए.

सरकार ने जब्त कराई पत्रिका

भवन सिंह याद करते हैं- साल 1983 फरवरी में नेल्ली नरसंहार कवर किया था. असम के नेल्ली में स्थानीय और असम के बाहर से आकर बसे लोगों में हिंसक संघर्ष हुआ. इसमें हजारों लोग बेमौत मारे गए थे. इस हादसे को कवर करने के बाद वह दिल्ली लौटे. फोटो छपी लेकिन पत्रिका जब तक लोगों के बीच पहुंचती, सरकार को पता चला गया कि फोटो लोगों की भावनाओं को भड़का सकती है क्योंकि तस्वीरें बहुत ही दर्दनाक थीं. रातों-रात इंदिरा गांधी की सरकार ने पत्रिका जब्त करवा ली. उस संस्करण पर बैन लगा दिया गया था.

भवन सिंह बतौर फोटोजर्नलिस्ट इंदिरा गांधी को बहुत पसंद करते हैं. कहते हैं- ‘इंदिरा गांधी हमेशा फोटोजर्नलिस्ट के साथ सहज रहा करती थीं. उनके सुरक्षाबल भी हमारे साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं करते थे. इस मामले में मोरारजी देसाई को क्लिक करना बहुत मुश्किल रहा.’

नेल्ली नरसंहार की भवन सिंह की फोटो

रघु राय के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘हम दोस्त से बढ़कर थे. एक संस्थान और एक प्रोफेशन में होने के बावजूद उसके साथ कोई प्रतियोगिता नहीं थी. उसकी खींची फोटो बेहतरीन होती थीं. मैं उसका मुरीद रहा हूं लेकिन एक बात के लिए आलोचक भी रहा कि वह कई दफे फोटो अरेंज करता था. यानी फोटो में दिख रहा सिचुएशन वास्तविक नहीं होता. रघु उसे क्रिएट करता था. मैंने कभी ऐसा नहीं किया. हमेशा वास्तविक फोटो खींची.’

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उनकी खींची फोटो में ओतावियो क्वात्रोची का पोट्रेट भी शामिल है. यह फोटो एक साक्षात्कार के दौरान ली थी. यह साक्षात्कार इंडिया टुडे के तत्कालीन बिजनेस एडिटर टी एन निनान ने किया था.

बातचीत के दौरान बमुश्किल निकल रही अपनी फुसफुसाती आवाज में दुख जताते हुए कहते हैं कि मैं उस दिन का इंतजार करता रह गया कि जब किसी अखबार के पहले पेज पर फुल पेज तस्वीर छपी हो. कहने के लिए भले ही एक फोटो हजार शब्द के बराबर होते हैं, लेकिन कभी किसी संपादक में इस बात की हिम्मत नहीं हुई कि वह पूरे पन्ने पर कोई तस्वीर छापे.