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राजनीतिक पार्टियों की सेहत के लिए आज भी क्यों जरूरी हैं बापू?

गांधी का नाम भरोसे की गारंटी है और ये गारंटी विरासत के तौर पर दोनों ही राजनीतिक पार्टियां अपने पास रखना चाहती हैं.

Arun Tiwari

मई 2014 में सत्तासीन होने के महज चार महीने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान लॉन्च किया था. नरेंद्र मोदी ने इसे ‘स्वच्छाग्रह से सत्याग्रह’ का नाम दिया. मोदी ने चंपारण में गांधी के सत्याग्रह से अपनी योजना को जोड़ा. और जैसे ही मोदी सरकार ने इस अभियान को लॉन्च किया कांग्रेस की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया आई. पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम ने कहा, 'ये कुछ नया नहीं बल्कि निर्मल भारत अभियान' ही है. महात्मा गांधी के नाम पर खींचतान शुरू गई थी और इसके बाद ये सिलसिला थमा नहीं बल्कि बढ़ा ही है.

अब फिर गांधी जयंती को कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही राजनीतिक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. दोनों ही पार्टियां इस अवसर का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षा को हवा देने के लिए करती हैं. इस बार महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर कांग्रेस के शीर्ष नेता वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में दिखेंगे. इसे सिर्फ महात्मा गांधी को याद करने के लिए ही नहीं है बल्कि बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी पटखनी देने की तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है. वहीं पंजाब में बीजेपी ने राज्य सरकार के खिलाफ पदयात्रा निकालने का संकल्प लिया है. बीजेपी ने इसके लिए कांग्रेस सत्ता छोड़ो का नारा भी दिया है. बीजेपी के नेता इसे भारत छोड़ो आंदोलन से मिलाकर देख रहे हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी की राज्य सरकार ने ‘स्वच्छता से संवाद यात्रा’ रखी है. ये 2 अक्टूबर 2018 से 30 जनवरी 2019 तक चलेगी. राज्य में मंत्री सुधीर मंगटीवार ने कहा कि बीजेपी इस 2 अक्टबर से गांधी जी के उस सपने को पूरा करेगी जिसके हिसाब से कांग्रेस को आजादी के बाद ही भंग कर दिया जाना चाहिए था.


कांग्रेस और बीजेपी की इस ‘विरासत हथियाओ’ राजनीति के बीच महात्मा गांधी कहां दिखते हैं? और ऐसा क्यों है कि मृत्यु के 70 सालों बाद भी देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों, बीजेपी और कांग्रेस, को अपनी राजनीति को शक्ति देने या जनता के बीच पैठ बनाने के लिए गांधी के नाम का इस्तेमाल करना पड़ता है?

गांधी एक महात्मा के तौर लोगों के बीच इस वजह से याद किए जाते हैं क्योंकि उनके सिद्धांत अब भी लोगों की भावनाओं तक पूरे पहुचंते हैं. उनके एक कथन को पढ़िए... ‘वास्तविक खुशी की स्थिति वो होती है जब आपको लगने लगे कि आप जो कहते हैं और जो करते हैं उसके बीच साम्य है.’

क्या देश में किसी को भी लगता है कि राजनीतिक पार्टियां इसलिए वायदे करती हैं कि उन्हें पूरा किया जा सके? क्या ऐसी राजनीति गांधी के मूल सिद्धांतों के विपरीत नहीं है?

गांधी भारत के ऐसे इकलौते व्यक्ति हैं जिनके नाम पर दुनिया के करीब 170 से भी अधिक देशों में सड़कें हैं. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर न जाने कितने दुनिया के नामचीनों ने उन्हें नमन किया है. वो दुनिया के लिए आदर्श हैं. वो भारत के लिए राष्ट्रपिता हैं और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अप्रतिम नायक.

ऐसे में अगर कोई राजनीतिक पार्टी उन्हें उनकी जयंती पर याद करे ये कोई बड़ा सम्मान तो न हुआ! अगर महात्मा गांधी की जयंती भारत में मनानी बंद भी कर दी जाए तो दुनिया के तमाम मुल्क उन्हें 2 अक्टूबर के दिन याद तो कर ही लेंगे. उसके बाद भी गांधी शिद्दत से याद किए जाते रहेंगे.

महात्मा गांधी महज एक हाड़-मांस के व्यक्ति नहीं रहे. उनके विचारों ने ही उन्हें इतना महान बनाया कि वो महान कहलाने की उपमा बन गए. शरीर को महात्मा गांधी ने कभी उतना महत्व भी नहीं दिया जितना विचारों को दिया. ऐसे में महात्मा गांधी की तस्वीरों के जरिए महज उनके हाड़-मांस के शरीर के इस्तेमाल करना कितना उचित है ये तो वे राजनीतिक पार्टियां ही जानती होंगी जो ऐसा करती हैं.

महात्मा गांधी अपने विचारों की वजह से दुनियाभर में मशहूर हुए और ये उनके विचार ही हैं जो आज भी हर पार्टी को उनके साथ जुड़ने को मजबूर करते हैं. राजनीतिक युद्ध में महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के प्रयोग प्रतीकात्मक तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं. वो भी सिर्फ राजनीतिक अवसरवाद के लिए.

देश की दोनों बड़ी पार्टियों को ये मालूम है कि अपने वादे को पूरा कर पाना बेहद कठिन काम है ऐसे में राष्ट्रीय प्रतीकों को अपने पाले में बनाए रखने से कम से कम छवि ठीक रखी जा सकती है. क्या आज की कांग्रेस को देखकर कोई भी कह सकता है कि ये महात्मा गांधी की कांग्रेस है? राहुल गांधी लाख दावा करें कि ये वही कांग्रेस है जिसने देश को आजादी दिलाने में योगदान दिया लेकिन क्या उनकी बातों पर भरोसा करना तनिक भी संभव है? सत्य को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हथियार मानने वाले महात्मा गांधी की कांग्रेस अब सच से कोसों दूर खड़ी है. महात्मा गांधी के सिद्धांत तज दिए गए हैं. बस उनके नाम की जरूरत है.

बीजेपी जो महात्मा गांधी का नाम लेकर देश को कांग्रेस मुक्त करने का अभियान छेड़ना चाहती है क्या ये कहीं से महात्मा गांधी के सिद्धांतों से मेल खाता है? यहूदियों के नरसंहार पर बापू ने कहा था, ‘आंख के बदले आंख वाले सिद्धांत पर अमल करने पर पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी.' पूरी दुनिया को सदाशयता का पाठ पढ़ाने वाले बापू क्या किसी राजनीतिक पार्टी की देश से बेदखली की बात को स्वीकार करते? पाकिस्तान को अलग देश बनाने की मांग पर पीड़ा से भर उठने वाले गांधी क्या हिंदू राष्ट्र की मांग को कभी स्वीकृति देते?

इसलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही जिस तरीके से महात्मा गांधी के नाम का प्रयोग कर रहे हैं वो खुद गांधी के सिद्धांतों से उलट है. दोनों ही पार्टियों के लिए महात्मा गांधी के नाम का ‘सहारा’ इसलिए जरूरी है कि लोग आज भी शायद किसी पार्टी से ज्यादा गांधी के नाम पर भरोसा करते हैं. गांधी का नाम भरोसे की गारंटी है और ये गारंटी विरासत के तौर पर दोनों ही राजनीतिक पार्टियां अपने पास रखना चाहती हैं.