view all

अरुंधति रॉय को जीप से क्यों बांधना चाहते हैं परेश रावल?

परेश रावल सोशल मीडिया के सेंटीमेंट का फायदा भी उठा रहे हो सकते हैं.

Arun Tiwari

वक्त पे शादी ना करो...तो आदमी बहक जाता है- दामिनी

किसी शरीफ के कमीनेपन को देखने में जो मजा आता है न वो किसी हरामी के हरामीपन में नहीं- टेबल नंबर 21


फिल्म अभिनेता और बीजेपी सांसद परेश रावल ने अपनी फिल्मों में कई बार घटिया संवाद बोले हैं. निश्चित रूप ये संवाद उनके दिमाग की उपज नहीं रहे होंगे. लेकिन इस बार ट्विटर पर परेश ने एक ऐसा ट्वीट किया है जो पूरी तरह से उनका ही है और उनके बुरे फिल्मी संवादों से स्तरहीन भी.

परेश रावल लेखिका अरुंधति रॉय को जीप से बंधे हुए क्यों देखना चाहते हैं? इसका जवाब शायद उनके फैंस भी चाह रहे होंगे.

हाल की बात है जब कश्मीर से एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें ये दिखाया गया कि सेना ने पत्थरबाजी रोकने के लिए एक कश्मीरी नागरिक को जीप के आगे बांधे रखा है. तस्वीर वायरल होते ही सोशल मीडिया पर इसकी तारीफ और आलोचना दोनों शुरू हो गईं. फिर इस पर सेना का बयान भी आया. मामला एक दो दिन चला और फिर उसके बाद शांत हो गया. लेकिन कश्मीर में हिंसा और उसका मुद्दा तो चल ही रहा है.

आज इस मुद्दे पर अचानक परेश रावल ने एक ट्वीट किया और लिखा कि इस नागरिक की जगह अरुंधति रॉय को बांधना चाहिए. उनके ट्वीट का जवाब देते हुए एक यूजर ने कहा कि सर अगर अरुंधति रॉय मौजूद न हों तो पत्रकार सागरिका घोष को भी विकल्प के तौर पर बांधा जा सकता है. परेश रावल ने उस यूजर के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि हमारे पास और भी कई विकल्प मौजूद हैं.

अरुंधति रॉय बीजेपी की वैचारिक विरोधी मानी जाती हैं. कश्मीर के संबंध में उन्होंने एक बार बयान भी दिया था कि उसे आजाद कर दिया जाना चाहिए. उस समय भी उनके बयानों पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं थीं. लेकिन अरुंधित रॉय देश के किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठी हुई हैं.

परेश रावल को ये बात समझ में आनी चाहिए कि अब वो सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री के एक कलाकार भर नहीं हैं. वो अब ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि मैं देश का एक आम नागरिक हूं.

दरअसल परेश रावल ने देशभक्ति के उस सेंटीमेंट को भुनाने की कोशिश की है. कश्मीर देश के लिए संवदेनशील मसला है. यहां हिंसा की आग में सेना और आम नागरिक दोनों ही झुलस रहे हैं. कश्मीर से इतर लोगों में सेना का लेकर सेंटीमेंट भावनात्मक रूप से काफी ज्यादा गहरा है.

परेश रावल इस बात को समझते हैं. वो अरुंधति के कश्मीर पर पुराने स्टैंड को भी ठीक से समझते हैं. वो यही बात ट्वीट करने की जगह बयान भी दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. वो सोशल मीडिया का हालिया इतिहास अच्छे से जानते हैं और ये भी समझते हैं कि ट्रोलर गैंग कैसे लोगों का जीना हराम करते हैं. इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि परेश का ये ट्वीट एक वैचारिक विरोधी को सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स के सामने छोड़ देने के लिए भी किया गया हो.

अगर ऐसा है तो परेश रावल को ये बात समझनी चाहिए कि सत्ता पक्ष का व्यक्ति अगर ऐसा करने लगेगा तो बीजेपी या कोई अन्य पार्टी हमेशा सत्ता से चिपकी नहीं रह सकती. भविष्य में किसी दूसरी पार्टी की सरकार आने पर ऐसा अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए किया जा सकता है. लेकिन ये ठीक ट्रेंड नहीं होगा.

अगर ऐसा नहीं है तो भी परेश को एक बात समझनी चाहिए कि वो देश की बड़ी महिला लेखिका के बारे में ऐसा लिख रहे हैं. अभी भी हमारा देश पुरुषवादी सत्ता के खिलाफ के लड़ाई लड़ रहा है ऐसे में देश की दो सम्मानित महिलाओं के बारे में अपमानजक टिप्पणी करना महंगा पड़ सकता है.