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गूगल डूडल: हिमालय के इतिहास के गुमनाम मगर बड़े नायक

नयन सिंह ने जो किया उसके चलते उनको भारतीय इतिहास में और सम्मान मिलना चाहिए था

FP Staff

21 अक्टूबर 1830 को जोहार घाटी के एक गांव में पैदा हुए नयन सिंह ने सबसे जरूरी काम तिब्बत की मैपिंग का किया. उस दौर में तिब्बत में बाहरी लोगों का आना-जाना वर्जित था. सिर्फ बौद्ध भिक्षु ही वहां प्रवेश कर सकते थे.

नयन सिंह हाथ में माला फेरते हुए किसी भिक्षु की तरह पूरे हिमालय में घूमते थे. उनकी माला में सामान्य 108 मनकों की जगह 100 ही मनके होते थे. 31.5 इंच का एक कदम रखने वाले नयन सिंह के 2000 कदमों में एक मील की दूरी तय होती थी. इस यात्रा से जो भी आंकड़े मिलते उन्हें नयन प्रार्थना की शकल में लिखते थे और भिक्षु जिस चकरी को घुमाते हैं, उसमें सुरक्षित कर रखते थे.


नयन सिंह ने कुमायूं की यात्रा की. एक बार कश्मीर के रास्ते ल्हासा गए. इसके बाद काठमांडू से 1200 मील की यात्रा कर फिर ल्हासा गए. वहां से मानसरोवर गए और वापस आए. नयन सिंह ने एक बार फिर लेह से ल्हासा तक की यात्रा की, इसे उनकी सबसे सफला यात्रा माना जाता है.

नयन सिंह की यात्रा का नक्शा और उन पर जारी भारतीय डाक टिकट

1865 की अपनी यात्रा में नयन सिंह की पहचान दो कश्मीरी व्यापारियों ने कर ली. उन्होंने उसकी शिकायत की. बाद में नयन सिंह अपनी घड़ी गिरवी रखकर वापस आए. 1876 में ब्रिटिश रॉयल सोसायटी ने गोल्ड मेडल दिया. भारत सरकार ने उन पर डाकटिकट भी जारी किया है.