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गूगल डूडल: वर्जीनिया वुल्फ की कहानी, जिसने लाखों को प्रेरणा दी

वर्जीनिया वुल्फ अपने बेहतरीन उपन्यासों और निबंधों के लिए जानी जाती हैं. उन्हें औरतों के लिए साहित्य की दुनिया में जगह बनाने के लिए जाना जाता है

FP Staff

गूगल ने प्रख्यात ब्रिटिश लेखिका वर्जीनिया वुल्फ की 136वीं जन्मतिथि पर उनके नाम डूडल समर्पित किया है. वर्जीनिया वुल्फ अपने बेहतरीन उपन्यासों और निबंधों के लिए जानी जाती हैं. उन्हें औरतों के लिए साहित्य की दुनिया में जगह बनाने के लिए जाना जाता है. उनकी की रचनाएं अब भी प्रासंगिक बनी हुई हैं. वहीं उनके कई उपन्यासों पर बेहतरीन फिल्में भी बन चुकी हैं.

इस डूडल को लंदन के इलस्ट्रेटर लुईस पॉमरॉय के इलस्ट्रेशन के ऊपर बनाया गया है. इस डूडल में वर्जीनिया वुल्फ अपने चिर-परिचित अंदाज में दिखाई दे रही हैं. उनकी फोटो के किनारे ढाक के पत्ते उड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं.


शुरुआती जिंदगी

वर्जीनिया वुल्फ का जन्म 25 जनवरी, 1882 को लंदन के केन्सिंगटन में हुआ था. उनका नाम एडेलीन वर्जीनिया स्टेफन था. उनके माता-पिता प्रतिष्ठित लोग थे. उनकी परवरिश भी साहित्यिक माहौल में हुई थी. वो काफी कम उम्र से ही लिखने लगी थीं.

1895 में उनकी मां का निधन हुआ, जिसके बाद वो मानसिक रूप से टूट गईं. 1904 में उनके पिता का निधन हो गया. ये भी वो बर्दाश्त नहीं कर पाईं. लेकिन इसी साल उनकी पहली रचना दिसंबर में टाइम्स लिटरेरी सप्लीमेंट में पब्लिश हुआ.

1912 में उन्होंने लियोनार्डो वुल्फ से शादी कर ली. इसके बाद उनका असल साहित्यिक करियर शुरू हुआ. वो उस वक्त के जाने-माने लेखकों के ब्लूम्सबरी ग्रुप में शामिल हो गईं.

साहित्यिक योगदान

1915 में उनका पहला उपन्यास द वोयॉज आउट पब्लिश हुआ. इससे उन्हें काफी ख्याति मिली. उन्होंने इसके बाद इस दुनिया से जाने तक लिखा. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में ऑरलैंडो, मिसेज डैलोवे, बिटवीन द एक्ट्स, नाइट एंड डे और द इयर्स हैं. उनका प्रसिद्ध निबंध है- अ रूम ऑफ वन्स ओन.

उन्हें उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें मार्गरेट एटवुड और गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज की श्रेणी में रखा जाता है. वर्जीनिया वुल्फ का काम 1970 के फेमिनिस्ट मूवमेंट में आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणास्रोत था.

मौत की त्रासदी

वर्जीनिया की मौत उनकी जिंदगी जितनी ही त्रासदी से भरी हुई है. उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. उन्होंने ससेक्स के अपने घर के पास की नदी में खुद को डुबा लिया था. उस वक्त वो महज 59 साल की थीं. उस वक्त उन्होंने डायरी लिखी थी और अपने पति को लिखे उनके आखिरी पत्र से पता चलता है कि वो कितने गहरे अवसाद में डूबी हुई थीं. उनकी डायरियों से पता चलता है कि वो मौत के प्रति कितनी आसक्त होती जा रही थीं.

उन्होंने अपने पति को जो पत्र लिखा था, उसे पढ़कर कोई भी टूट सकता है. उन्होंने लिखा था.

'प्रियतम,

मुझे यकीन है कि मैं फिर से पागल हो रही हूं. मुझे लगता है कि इस बार हम हमेशा की तरह इस मुश्किल वक्त से नहीं गुजर पाएंगे. मैं इस बार इससे नहीं उबर पाऊंगी. मुझे आवाजें सुनाई दे रही हैं और मैं ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही हूं. इसलिए मैं वो कर रही हूं जो मैं इससे बेहतर कर सकती हूं. तुमने मुझे सबसे बड़ी खुशी दी है. तुम हर तरह के वक्त में मेरे साथ रहे. मुझे नहीं लगता इस बीमारी के आने से पहले हम जितने खुश थे, उससे ज्यादा दो लोग एक दूसरे के साथ खुश रह सकते हैं. लेकिन अब मैं इससे ज्यादा और नहीं लड़ सकती. मुझे पता है मैं तुम्हारी जिंदगी बरबाद कर रही हूं और अगर मैं न रहूं तो तुम अपना काम अच्छी तरह कर पाओगे. तुम देख ही रहे हो कि मैं अब न सही से लिख पाती हूं, न पढ़ पाती हूं. मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि मेरी जिंदगी की खुशी बस तुमसे है. तुम मेरे साथ बहुत ही सब्र के साथ और आश्चर्यजनक रूप से प्यार से रहे हो. मैं ये कहना चाहती हूं और सब ये जानते हैं. अगर मुझे बचाने की किसी के पास क्षमता होती, तो वो तुम होते. मैं सबकुछ खोती जा रही हूं लेकिन ये मुझे पता है कि तुम कितने अच्छे हो. लेकिन अब मैं तुम्हारी जिंदगी और बरबाद नहीं कर सकती. मुझे नहीं लगता कि हम साथ में जितने खुश रहे, उतना कोई हो सकता है.'

अपने पति के नाम इस खत को लिखने के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. वर्जीनिया वुल्फ की जगह अब भी साहित्य की दुनिया में कोई नहीं ले सकता.