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गूगल डूडल: कलम को बंदूक बनाकर महिलाओं की आवाज बनने वाली दबंग लेखिका की कहानी

24 अक्टूबर 1991 में वो इस दुनिया से रुखसत हुईं लेकिन तबतक उनकी बागियाना सोच ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया था

FP Staff

आज यानी 21 अगस्त को उर्दू की मशहूर लेखिका इस्मत चुगताई की 107वीं जयंती है. इस खास मौके पर गूगल ने एक डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है. चुगताई को अपनी कहानियों को जरिए महिलाओं की आवाज दुनिया के सामने उठाने के लिए जाना जाता है. कुछ लोग इन्हें इस्मत आपा के नाम से भी पुकारते हैं.

गूगल ने अपने डूडल इस्मत चुगताई को सफेद रंग की साड़ी पहने हुए दिखाया है, इस डूडल में वो लिखती हुई नजर आ रही है. चुगताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था. हालांकि कुछ लोगों का ये भी मानना है कि उनका जन्म 15 अगस्त 1915 को हुआ था.


मुस्लिम तबके की महिलाओं की आवाज बनी इस्मत

चुगताई पूरी जिंदगी अपनी कलम को बंदूक बनाकर महिलाओं के हक के लिए लड़ती रहीं. उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए महिलाओं की दबी हुई आवाज को दुनिया के सामने उठया. चुगताई ने विशेष तौर पर अपनी रचनाओं में निम्न और मध्यम वर्ग से आनी वाले मुस्लिम तबके की लड़कियों की दबी-कुचली आवाज उठाई जिनके लिए उन्हें विवादों का सामना भी करना पड़ा.

1942 उन्होंने अपनी सबसे विवादित कहानी 'लिहाफ' लिखी थी जिसके कारण उनके ऊपर लाहौर हाई कोर्ट मे मुकदमा भी चला. आरोप था कि चुगताई ने अपने इस लेख में अश्लीलता दिखाई है. हालांकि ये मुकदमा बाद में खारिज हो गया. इस कहानी को भारतीय साहित्य में लेस्बियन प्यार की पहली कहानी भी माना जाता है. दरअसल अपने इस लेख में चुगताई ने एक गृहणी की कहानी दिखाई थी जो पति के समय के लिए तरसती है लेकिन उसका पति उसे समय नहीं दे पाता. बाद में वो अपने नौकरानी के साथ समय बिताती है.

दफन नहीं चिता जलाकर हुआ अंतिम संस्कार

चुगताई ने अपनी पहली कहानी 1939 में लिखी थी जो साकी नाम की प्रतिष्ठित पत्रिका में छपी थी. इसके बाद भी उन्होंने कई सारी कहानियां लिखी जिनके कारण उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा.

24 अक्टूबर 1991 में वो इस दुनिया से रुखसत हुईं लेकिन तबतक उनकी बागियाना सोच ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया था. मुंबई में उनका इंतकाल हुआ और उनकी वसीयत के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार चिता जलाकर किया गया. ता-उम्र आग से खेलने वाली, आग में विलीन हो गई.