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मनमोहन सिंह: वाकई इतिहास उनके प्रति ज्यादा उदार होगा!

जनवरी, 2014 में अपने आखिरी प्रेस कांफ्रेंस में मनमोहन सिंह ने कहा था, 'इतिहास मेरे प्रति ज्यादा उदार होगा'

Prabhakar Thakur

जनवरी, 2014 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था. उनकी विदाई में कुछ ही महीने बाकी थे. उस दौरान उनसे पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है कि इतिहास उन्हें किस तरह याद करेगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘मुझे भरोसा है कि इतिहास मेरे प्रति ज्यादा उदार होगा.’ ध्यान रहे कि उनके जाते-जाते उनके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार पर कई दाग लगे हुए थे और उनकी छवि बेहद खराब बनी हुई थी.

आज जब इस घटना को लगभग साढ़े तीन साल हो चुके हैं तो लोगों में एक ऐसा भी समूह उभर रहा है जो मनमोहन सिंह के बयान को याद करने लगा है. उनमें मनमोहन सिंह के बयान के प्रति सहानुभूति भी है.


कौन बेहतर पता चलेगा, तुलना तो करिए

इसी संबोधन में मनमोहन ने कहा था, 'मुझे पूरा विश्वास है कि नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए त्रासद होगा.' उक्त समूह का यह भी कहना है कि जिस तरह नोटबंदी के बाद के दिनों में आम लोगों को इसके परिणामों से दो-चार होना पड़ा, मनमोहन के इस बयान का मर्म भी साफ होता चला गया. खबरों के मुताबिक कई कामगारों को न सिर्फ अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा, बहुत ऐसे भी लोग थे जिनका समय पर इलाज नहीं हो सका, कइयों की शादी में भी अड़चनें आईं. विपक्ष का आरोप था कि इसके परिणाम स्वरूप करीब 100 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया.

वर्ल्ड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कौशिक बसु ने नोटबंदी के कुछ दिनों बाद ही द न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू में कहा था कि यह फेल हो जाएगा. इसके अलावा फोर्ब्स के प्रधान संपादक स्टीव फोर्ब्स ने लिखा था, 'यह आपकी निजता पर हमला है और आपकी जिंदगी पर और अधिक सरकारी नियंत्रण करने का हथकंडा है.'

जीएसटी, जिसे 'गुड एंड सिंपल टैक्स' कहकर प्रचारित किया गया, उसे गैर-योजनाबद्ध तरीके से लागू किए जाने के आरोप लगे. कहा गया कि अर्थव्यवस्था के लिए यह दूसरा झटका साबित हुआ है. छोटे और मझोले कारोबारियों को जीएसटी वाली रसीद तैयार करने में भारी फजीहत हुई और उन्हें घाटे हुए. जीएसटी के अलग-अलग रेट ने उनकी तकलीफ को बढ़ाने का ही काम किया. इस सब बातों ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मनमोहन सिंह ने इतिहास के खुद प्रति उदार रहने की बात क्यों कही थी?

यह ठीक है कि वर्तमान एनडीए सरकार की अपनी सफलताएं रही हैं. विदेश नीति के मामले में और एनआरआई में विश्वास भरने के मामले में भारत ने बेहतरीन काम किया है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने पाकिस्तान पर लगाम कसनी भी शुरू कर दी है. स्वच्छता और लड़कियों की शिक्षा के मामले में भी सरकार सही दिशा में बढ़ती हुई नजर आ रही है.

आंकड़े खुद देते हैं गवाही

भारत की आर्थिक विकास दर तीन सालों के अपने सबसे निचले स्तर पर है. इसकी तुलना में यूपीए सरकार के दौरान अधिकतर समय विकास दर लगभग 8 प्रतिशत की रही. यहां याद रखिए कि सरकार ने विकास दर मापने का तरीका भी बदल दिया है जिसके कारण विकास दर ‘ज्यादा’ नज़र आती है. नए रोजगार का निर्माण भी गिरकर 1,35,000 पर पहुंच गया. इसके मुकाबले 2011 में यह आंकड़ा 9,30,000 का था. भूलिए मत कि उसी दौर को विपक्ष में रहने के दौरान बीजेपी ने जॉबलेस-ग्रोथ बताया था. और तो और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुने जाने से पहले 10 मिलियन जॉब्स का वादा किया था.

इसके अलावा मनमोहन सिंह ऐसे व्यक्ति थे जिनका दुनिया भर में देश के वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में बेहद सम्मान था. मिस्र के पूर्व उप-राष्ट्रपति के शब्दों में, ‘एक राजनेता को कैसा होना चाहिए, मनमोहन सिंह उसकी एक मिसाल हैं.’

इस बात में शक नहीं मनमोहन के हिस्से में कई असफलताएं आईं, खासतौर से ऊपरी स्तर के भ्रष्टाचार के मामले में. लेकिन 2008 की वैश्विक मंदी के बावजूद भारत को सही सलामत निकाल ले जाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है. कहा जाता है कि अमेरिका के साथ बेहद महत्वपूर्ण 123 डील भी मनमोहन सिंह के प्रयासों का ही नतीजा रही. 10 साल पीएम रहने के दौरान कभी उन पर व्यक्तिगत रूप से घपले या भ्रष्टाचार के कोई दाग नहीं लगे. लेकिन मंत्रिमंडल में मौजूद दूसरे साथियों के भ्रष्टाचार की छींटें उनके दामन पर भी आईं. मुखिया होने के नाते वो अपनी ईमानदारी साबित भी नहीं कर सकते लेकिन कम से वो इतना तो जानते ही थे भविष्य जब इतिहास की तरफ आंखें घुमाएगा तो उनका वर्तमान तब से कहीं बेहतर नज़र आएगा.