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योगी जी गन्ना किसानों का बकाया कैसे मिल पाएगा?

चीनी की पूरी बिक्री के बगैर किसानों को पैसा देना मुश्किल हो जाता है

Amitesh

यूपी की सत्ता में आने से पहले गन्ना किसानों के हालात को सुधारने का वादा किया गया था. अब वादा निभाने की तैयारी हो रही है. योगी राज में गन्ना किसानों को सौगात देने की तैयारी हो रही है. सरकार एक्शन मोड में दिख भी रही है. चीनी मिलों को निर्देश दिया गया है कि 15 दिन के भीतर बकाये का भुगतान करें.

सरकार किसानों को किए अपने वायदे के मुताबिक चीनी मिलों को अपना फरमान सुना चुकी है. लेकिन, इस पर किस हद तक अमल हो पाएगा, ये कहना मुश्किल है क्योंकि हालात तो कुछ ऐसे ही लग रहे हैं.


24 मार्च 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी के भीतर चीनी मिलों के उपर फिलहाल 4177 करोड़ रुपए का बकाया है. यूपी सुगर मिल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल दीपक गुप्तारा का कहना है कि यूपी केन सप्लाई एंड परचेज एक्ट के मुताबिक पहले से ही इस बात का प्रावधान है कि चीनी मिलों को किसानों से गन्ना लेने के 15 दिन के भीतर उनके पैसे का भुगतान किया जाए.

यह कोई नया फरमान नहीं है

एसोसिएशन के मुताबिक इसमें कुछ भी नया नहीं है, लेकिन, 15 दिन के भीतर भुगतान के फरमान को लागू करने में कुछ बुनियादी परेशानियां हैं जिसको लेकर ध्यान देने की जरूरत है.

मसलन, चीनी मिलों में पांच से छह महीने ही गन्ने की खरीददारी होती है और चीनी तैयार होती है. लेकिन, दूसरी तरफ तैयार की गई चीनी को पूरे बारह महीने यानी एक साल में बेचा जाता है. ऐसे में चीनी की पूरी बिक्री के बगैर किसानों को पैसा देना मुश्किल हो जाता है.

दीपक गुप्तारा का कहना है कि चीनी मिलों को चीनी के उचित दाम नहीं मिल पाने के कारण भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. गुप्तारा का कहना है कि पिछले 15 दिनों में चीनी के दाम गिर गए हैं. ऐसा इस अफवाह के चलते हो रहा है जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार चीनी का आयात करने वाली है.

इनकी शिकायत है कि ऐसा होने से लागत से भी कम दाम में चीनी बेचना पड़ जाता है, जिसकी भरपाई करना काफी मुश्किल हो जाता है. एसोसिएशन का मानना है कि अगर सरकार चीनी का आयात करती है तो इसका गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. जिससे पार पाना मुश्किल हो जाएगा.

बाकी जानकार भी योगी सरकार की तरफ से किए गए उस दावे पर सवाल खड़ा कर रहे हैं जिसमें 15 दिन के भीतर गन्ना किसानों को भुगतान करने का आदेश दिया था.

कहना आसान पर करना मुश्किल 

सुगर एक्सपर्ट अधीर झा भी सरकार के इन दावों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. अधीर झा का कहना है कि ऐसा कहना आसान है लेकिन कर पाना काफी मुश्किल है. अगर सरकार गन्ने के दाम में बढ़ोत्तरी करती है तो उसी अनुपात में चीनी के दाम में भी बढ़ोत्तरी करनी होगी वरना तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाएगा.

दरअसल, चीनी मिलों के सामने किसानों को पैसा चुकाने के लिए सीमित विकल्प हैं. मसलन, चीनी मिल चीनी की सप्लाई के बाद आने वाले पैसे से ही गन्ना किसानों का भुगतान करते हैं. लेकिन, ऐसा करने से चीनी मिल के सामने यह समस्या खड़ी होती है कि चीनी की सप्लाई 12 महीने में होती है, जबकि केवल छह महीने ही गन्ना की पेराई होती है.

दूसरा विकल्प है कि बैंक से लोन लेकर चीनी मिल किसानों के बकाए का तुरंत भुगतान करें. बैंक चीनी के दाम के हिसाब से वर्किंग कैपिटल तय करते हैं. अगर चीनी का बाजार भाव कम हो तो फिर बैंक भी चीनी मिलों को वर्किंग कैपिटल देने में आनाकानी करते हैं या फिर उसकी रकम कम कर देते हैं.

बैंक 85 फीसदी से ज्यादा वर्किंग कैपिटल देने में भी आना-कानी करते हैं, लिहाजा चीनी मिलों को गन्ना किसानों को पैसे का भुगतान करने में परेशानी होती है.

यूपी में योगी का फरमान है किसान परेशान है. किसानों की परेशानी दूर करने के लिए 4000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की रकम का भुगतान होना है, लेकिन चीनी मिल मालिकों के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं है.