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राम मंदिर मुद्दे पर चर्चा गर्म रखने का फॉर्मूला पेश करने में जुटे योगी

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का दीपावली के मौके पर 2 दिनों का अयोध्या प्रवास कई तरह के संकेत देता है.

Sanjay Singh

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ का दीपावली के मौके पर 2 दिनों का अयोध्या प्रवास कई तरह के संकेत देता है.  इस दौरान आयोजित कार्यक्रमों की पूरी श्रृंखला और सार्वजनिक बयान योगी आदित्यनाथ सरकार के कामकाज के अंदाज के बारे में काफी कुछ बयां करते हैं. इस तरह की तमाम गतिविधियां और घटनाक्रम इस बात का साफ संकेत हैं कि वह हिंदुत्व और विकास का बेहतर मिश्रण पेश कर रहे हैं. योगी आदित्यनाथ राज्य सरकार द्वारा आयोजित दीपोत्सव कार्यक्रम के लिए अयोध्या पहुंचे थे.

उन्होंने इस तरह की गतिविधियों और इसके जरिये सुर्खियां बनाने के लिए दिवाली का वक्त चुना और इस मौके पर उन्होंने उत्तर प्रदेश व अन्य जगहों के लोगों को संदेश दिया. दिवाली के मौके पर दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला किम जंग-सुक मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थीं और सरयू नदी के तट पर 3 लाख से ज्यादा दीयों को जलाते हुए विश्व रिकॉर्ड कायम किया गया. हालांकि, इस महत्वपूर्ण अवसर पर योगी आदित्यनाथ ने राम की प्रतिमा बनाने की अपनी योजना के बारे में किसी तरह का ऐलान नहीं किया और न ही राम मंदिर के बारे में एक शब्द बोला.


उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों का कहना था कि उन्होंने दो प्रमुख वजहों से इस तरह का रुख अख्तियार किया. पहला, वह ऐसा नहीं चाहते थे कि दीपोत्सव से लोगों का ध्यान इधर-उधर भटके और  दीपोत्सव की बजाय राम मंदिर और इस की तरह बातें खबरों की सुर्खियां बनें. बहरहाल, मामले चाहे जो भी हो, इस बात में कोई शक नहीं कि राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित त्योहारों की भव्यता ने अयोध्या को फिर से सार्वजनिक विमर्श के दायरे में ला दिया है.

दूसरी बात यह कि बेशक वह इस पवित्र नगरी में आयोजित हो रहे विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे, लेकिन अयोध्या और लखनऊ में बड़ी संख्या में अधिकारी प्रतिमा के निर्माण संबंधी योजना पर सक्रियता से काम कर रहे थे.

रामलला के दर्शन के बाद बदले योगी के सुर

दिवाली के दिन यानी बीते बुधवार को विवादास्पद राम जन्मभूमि स्थल पर रामलला का दर्शन करने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सुर बदल दिए. इस अवसर पर साधु-संतों की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार द्वारा अयोध्या के लिए किए गए विकास कार्यों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी. हालांकि, जिन दो बातों का जिक्र उन्होंने किया, वे जाहिर तौर पर उत्तर प्रदेश और इस राज्य के बाहर के कई लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ सकती हैं. उन्होंने सरयू नदी के तट पर राम की विशाल प्रतिमा बनाने की बात कही. साथ ही, उनका कहना था, 'मंदिर था, मंदिर है, मंदिर रहेगा.'

यह मुमकिन है कि वह मंदिर के बारे में इस तरह की घोषणा करने को लेकर एक तरह से सही हों. इसके अलावा, यह एक तथ्य है कि वहां पर सीमित दायरे में रामलला से संबधित धार्मिक क्रिया-कलाप तब से किया जा रहा है, जब 22 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के अहाते में मूर्ति को रखा गया था.

दरअसल, उस वक्त रामचरितमानस के अखंड पाठ का आयोजन चल रहा था और इस पाठ के नौवें दिन मूर्ति को वहां रखा गया था. उस वक्त इस अखंड पाठ का आयोजन गोरखनाथ पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने किया था. गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ भी इसी गोरखनाथ पीठ से ताल्लुक रखते हैं. साथ ही, 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद अयोध्या में मौजूद इस विवादित स्थल पर अस्थायी मंदिर मौजूद है. एक पुजारी द्वारा वहां पर रोजाना पूजा-अर्चना भी की जाती है. कई लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी आदेश आए, लेकिन किसी भी सरकार के लिए इस 'मंदिर' को तोड़ना और मौजूदा स्थान से रामलला की मूर्ति को हटाना संभव नहीं जान पड़ता है.

संबंधित स्थान पर 'भव्य मंदिर' के निर्माण के सवाल पर उन्होंने बेहद होशियारी के साथ इस सिलसिले में अपनी पार्टी के वादे को एक बार फिर से दोहराया. हालांकि, उनका यह भी कहना था कि इस मसले का हल मौजूदा संवैधानिक ढांचे के भीतर ही निकाला जाएगा.

योगी आदित्यनाथ ने अपनी इन बातों के माध्यम से मंदिर को लेकर सक्रिय लोगों व संगठनों और इस मुद्दे से सहानुभूति रखने वालों को एक हद तक संतुष्ट करने का प्रयास किया है.

दरअसल, मीडिया के एक सवाल के जवाब के जरिये योगी जिस सामाजिक वर्ग को संबोधित और संतुष्ट करने का प्रयास कर रहे थे, वह बीजेपी के सामाजिक जनाधार का प्रमुख तबका है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े टाइटिल सूट केस में जल्द सुनवाई के अनुरोध के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था.

प्रतिमा के निर्माण के लिए तीन स्थानों को शॉर्टलिस्ट किया गया

एक तरह से यह कहा जा सकता है किक राम मंदिर के निर्माण के सिलसिले में जब तक कोई ठोस कदम आगे नहीं बढ़ाया जाता है (जिसके निकट भविष्य में आसार नहीं हैं), तब तक के लिए योगी ने इससे जुड़ी जनभावनाओं को जिंदा करने का तरीका ढूंढ लिया है. साथ ही, उनका इरादा अन्य प्रशासनिक साधनों के जरिये अयोध्या के संबंध में चर्चा को गर्म रखने का है. योगी सरकार के एक फैसले के तहत फैजाबाद जिला अब अयोध्या हो चुका है और यहां नगर निगम भी है. इस जगह के लिए बड़ी संख्या में विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा पर्यटन  से संबंधित परियोजनाओं को भी शुरू किया गया है.

योगी आदित्यनाथ ने सरयू नदी के तट पर आधिकारिक तौर पर राम की मूर्ति बनाने के बारे में ऐलान किया. सरकार ने इसके लिए तीन स्थानों को शॉर्टलिस्ट किया है और वह इस सिलसिले में अंतिम निर्णय लेने की प्रक्रिया में है. हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मूर्ति की ऊंचाई के बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन राज्य प्रशासन के अहम सूत्रों ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि इस मूर्ति की ऊंचाई 108 मीटर होगी.

जाहिर तौर पर हिंदू धार्मिक मान्यताओं में 108 की संख्या का विशेष महत्व है. सूत्रों के मुताबिक, इस बात को भी लेकर विचार-विमर्श हो रहा था कि मूर्ति की ऊंचाई 101 मीटर रखी जाए या 108 मीटर. हालांकि, ऐसा लगता है कि सरकार ने इसकी ऊंचाई 108 मीटर रखने के बारे में अंतिम फैसला कर लिया है.

मूर्ति में भगवान राम की भंगिमा एक योद्धा की तरह होगी. उन्हें ठीक उसी अंदाज में पेश किया जाएगा, जिस तरह से लंका में रावण को मारने के दौरान उनके बारे में कल्पना की जाती है- उनकी प्रतिमा हमले के अंदाज में तीर-धनुष से लैस होगी और उसके सिर व आंखें निशाने पर होंगे. इस प्रतिमा का बेस 50 मीटर ऊंचा होगा.

अगले साल दिवाली दीपोत्सव पर अनावरण का प्लान

इस जगह पर एक म्यूजियम भी बनाया जाएगा, जिसमें अयोध्या के महत्व, भगवान राम से संबंधित इक्ष्वाकु वंश और रामायण की प्रमुख बातों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. राम की प्रतिमा की डिजाइन मोटे तौर पर वही होगी, जो हाल में गुजरात में बनी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की है. उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि निश्चित तौर यह राम की विशाल प्रतिमा अयोध्या और पर्यटन, धार्मिक व अन्य मामलों के लिहाज से ऐतिहासिक होगी.

इस प्रतिमा के निर्माण के सिलसिले में प्राइवेट खिलाड़ियों द्वारा अब तक राज्य सरकार के संबंधित अधिकारियों को 6 प्रेजेंटेशन पेश किए जा चुके हैं. सूत्रों ने यह भी बताया कि सदगुरु जग्गी वासुदेव ने भी राज्य सरकार को इस प्रतिमा को बनाने का प्रस्ताव दिया था. वह इस मकसद के लिए सभी तरह का खर्च वहन करने को भी इच्छुक थे. यहां तक कि सदगुरु जग्गी वासुदेव ने प्रतिमा की डिजाइन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को एक डिजाइन भी भेजा था. हालांकि, यह डिजाइन (योद्धा राम) योगी आदित्यनाथ की सरकार की अपेक्षाओं और कल्पना के मुताबिक नहीं थी.

इस वजह से प्रतिमा से संबंधित सदगुरु जग्गी वासुदेव की डिजाइन को योगी आदित्यनाथ की सरकार की तरफ से मंजूरी नहीं मिल पाई. यूपी मुख्यमंत्री कार्यालय को भरोसा है कि एक महीने के समय में इस प्रतिमा को लेकर सब कुछ फाइनल हो जाएगा और प्रोजेक्ट के आकार, उचित स्थान और इससे जुड़ी अन्य चीजों के बारे में औपचारिक तौर पर ऐलान कर दिया जाएगा. सूत्रों के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ चाहते हैं कि इस बड़े प्रोजेक्ट को एक साल की अवधि से कम में ही पूरा कर दिया जाए और अगले साल दिवाली दीपोत्सव के अवसर इसका अनावरण हो जाए.