view all

योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी से बेहतर रोल मॉडल दूसरा नहीं मिलेगा!

आदित्यनाथ को खुद के लिए कट्टर हिंदूवादी और बेबाक नेता की छवि से बड़ी इमेज बनानी होगी

Aakar Patel

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास सुनहरा मौका है. वो खुद को नए अवतार में दुनिया के सामने पेश कर सकते हैं. अपने बदले मिजाज की तस्वीर दुनिया को दिखा सकते हैं.

ये बदलाव सिर्फ हॉलीवुड कलाकार विन डीजल की तस्वीरों से मेल खाने वाली तस्वीरों जैसा नहीं होना चाहिए. ये दिल-दिमाग और सोच का बदलाव भी होना चाहिए.


योगी का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना जाना कोई मास्टरस्ट्रोक था या चौंकाने वाला फैसला या फिर पहले से तयशुदा कदम था ये तो पता नहीं. पर लोगों की जिंदगी में ऐसे मौके कम ही आते हैं.

चुनौती ये है कि योगी अपने गुजरे हुए कल को पीछे छोड़कर अपना नया अवतार दुनिया को दिखा सकते हैं. वो नई चुनौतियों का सामना करते हुए नए योगी नजर आ सकते हैं या नहीं?

वो खुद को एक कद्दावर और समझदार राजनेता के तौर पर ढाल सकते हैं. वो खुद को ऐसा नेता बना सकते हैं जिसका काम और जिसके शब्द लोगों में नया हौसला, नई उमंग भर दें जो लोगों को भड़काएं नहीं.

अब योगी आदित्यनाथ को हिंदूवाद का कट्टर नेता बनने के आगे का सफर तय करना है. ऐसा नेता जो सिर्फ अपने समर्थकों का ख्याल करता है वो तो योगी हैं ही. अब उन्हें अपना दायरा बढ़ाना होगा.

योगी के सामने जो मौका है और जो चुनौती है वो बहुत कुछ प्रधानमंत्री मोदी के सामने साल 2002-2003 जैसे हालात ही है. उस वक्त पीएम मोदी ने अकेले दम पर बीजेपी को गुजरात विधानसभा में जीत दिलाई थी.

मोदी ने बीजेपी को दो तिहाई बहुमत दिलाया था. पार्टी को पचास फीसदी से कुछ ही कम वोट मिले थे. फिर भी मोदी एक बड़े तबके की नजर में विलेन ही बने रहे.

आज आदित्यनाथ को भी ऐसी ही कसौटियों पर कसा जा रहा है. उनके पुराने बयानों, उनकी भड़काऊ राजनीति और उन पर चल रहे मुकदमों का हिसाब लगाया जा रहा है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ

योगी के बयान

आज मीडिया में इस बात की चर्चा हो रही है कि उन्होंने चुनावों के दौरान या फिर यूं ही कब-कब और कैसे-कैसे बयान दिए. इस बात का आंकड़ा निकाला जा रहा है कि उन्होंने कितने निजी बिल लोकसभा में पेश किए.

अब योगी को इन पैमानों के आधार पर मुख्यमंत्री पद के लिए गलत चुनाव बताया जा रहा है. वहीं उनके समर्थक, इन्हीं बुनियादों पर उन्हें मुख्यमंत्री पद का वाजिब हकदार बता रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ के सामने चुनौती है कि समर्थकों का ये उत्साह उनके प्रशासन पर भारी न पड़ने पाए. योगी को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके कट्टर समर्थक कानून को अपने हाथ में न लें. खुद उनके प्रशासन के लिए चुनौती न बनें.

ठीक उसी तरह जैसे मोदी ने कट्टरवादी संगठनों पर लगाम लगाई. आज कट्टरवादी लोगों के मांस की दुकानों पर हमले की घटनाएं हो रही हैं. नई सरकार को प्रभावित करने के लिए पुलिस भी हरकत में दिख रही है.

जितना बड़ा बहुमत मिला है उसमें शुरुआत में ऐसी घटनाएं आम होती हैं. मगर ये शुरूआती उबाल जल्द ही ठंडा होगा और लोग रोजी-रोटी की असल चुनौती से निपटने में सरकार से मदद की उम्मीद करेंगे.

साल 2002 में मोदी ने बहुत जल्द इस चुनौती को भांप लिया था. सेंटर फॉर स्टडीज इन डेवेलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने चुनाव के बाद एक सर्वे किया था. जिसमें उनसे पूछा गया था कि उन्हें नई सरकार से क्या उम्मीदें थीं.

बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ

सर्वे में शामिल हुए ज्यादातर लोग विकास पर जोर देने की बात कर रहे थे. वो चाहते थे कि 2002 के दंगों की यादें जल्द से जल्द उनका पीछा छोड़ दें.

इसीलिए मोदी ने कारोबारियों का हौसला बढ़ाने के लिए बड़ी तेजी से कदम उठाए.

मोदी ने अपनी सरकार का पूरा जोर विकास करने और लोगों को अच्छा प्रशासन देने पर लगाया. ऐसा करके मोदी ने अपनी छवि का भी मेकओवर करने की कोशिश की. अब ये काम रातों-रात तो होने वाला नहीं था.

ये भी पढ़ें: सरकार के खिलाफ ट्वीट करने पर आईपीएस हिमांशु सस्पेंड

लेकिन वक्त के साथ मोदी हिंदू हृदय सम्राट से ज्यादा विकास पुरुष के तौर पर पहचाने जाने लगे. विकास के गुजरात मॉडल की देश और दुनिया में चर्चा होने लगी. स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव, मोदी के कट्टर आलोचक रहे हैं.

यादव ने उस वक्त कहा था कि चुनाव में जीत के बाद मोदी ने अपनी आक्रामक छवि को बदलने में पूरा जोर लगाया. वो जानते थे कि अगर ऐसा नहीं किया तो उनके लिए आगे चलकर चुनौतियां बड़ी होती जाएंगी.

मोदी की रणनीति

आज आदित्यनाथ को मोदी की उसी रणनीति पर अमल करना होगा. मंगलवार को लोकसभा में बजट पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में योगी ने इसके संकेत भी दिए.

राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी के साथ पीएम नरेंद्र मोदी

आदित्यनाथ के लिए अच्छी बात ये है कि चुनाव से पहले वहां कोई दंगे नहीं हुए. चुनाव अभियान में ध्रुवीकरण हुआ मगर ये गुजरात के 2002 के माहौल से बिल्कुल अलग था. ऐसे में नए मुख्यमंत्री के पास इस बात का पूरा मौका है कि वो विकास पर अपनी पूरी ताकत लगाएं.

आज योगी का जो विरोध हो रहा है वो उनकी कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि से हो रहा है. कई बार योगी ने अपनी बेबाक बयानी से भी विरोधियों को निशाना साधने का मौका दिया है.

उन्होंने साल 2002 और साल 2007 में अपनी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ प्रत्याशी उतारे थे. इस बार भी शुरुआत में वो ऐसा करते दिखे थे. लेकिन कभी भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ पार्टी ने कार्रवाई नहीं की क्योंकि वो गोरखपुर और आस-पास के इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं.

ये भी पढ़ें: सीएम बनने के  बाद पहली बार गोरखपुर पहुंचेंगे योगी

फिर, वो जिस गोरखनाथ पीठ के महंत हैं उसका अयोध्या आंदोलन और हिंदू राष्ट्रवाद से गहरा ताल्लुक रहा है. मुख्यमंत्री बनने के बाद हालात बदल गए हैं. अब योगी को संघ परिवार के सहयोग की जरूरत होगी ताकि वो राज-काज आराम से चला सकें.

अपने समर्थकों का दायरा बढ़ाने के लिए भी योगी आदित्यनाथ को मोदी से सीख लेनी चाहिए. किस तरह मोदी ने तरक्कीपसंद तबके को अपना मुरीद बनाया. ये योगी के लिए सीखने वाली बात होगी.

मोदी आज हिंदूवादी के साथ-साथ विकासवादी नेता की पहचान भी रखते हैं. फिलहाल आदित्यनाथ की छवि सिर्फ हिंदूवादी नेता की है.

बीजेपी को जितना बड़ा बहुमत मिला है उसके बाद ये मानना आसान है कि हिंदू वोटों की गोलबंदी से ऐसा मुमकिन हुआ. योगी को मुख्यमंत्री बनाए जाने से हिंदुत्व समर्थक उत्साह में हैं. मगर उत्साह की ये लहर स्थायी नहीं.

योगी आदित्यनाथ के यूपी का सीएम बनने के बाद खुशियां मनाते बीजेपी कार्यकर्ता (फोटो: पीटीआई)

अब आदित्यनाथ को खुद के लिए कट्टर हिंदूवादी और बेबाक नेता की छवि से बड़ी इमेज बनानी होगी. क्योंकि बीजेपी को मिला बहुमत लोगों के मोदी में भरोसे की भी मिसाल है.

अब लोग चाहेंगे कि मोदी उनकी उम्मीदें पूरी करें. अगर योगी लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं तो इससे उन्हें भी फायदा होगा और बीजेपी को भी. इससे प्रदेश का भी भला होगा.