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योगी आदित्यनाथ की सादगी क्यों औरंगजेब की याद दिलाती है

औरंगजेब का नाम बुरा लग सकता है, लेकिन उसमें कुछ दुर्लभ गुण भी रहे हैं

Mridul Vaibhav

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तुलना औरंगजेब से की थी. योगी ने मैनपुरी की एक सभा में कहा था कि जिस तरह औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को किले में कैद कर राज हड़प लिया था, ठीक वैसे ही अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को घर में बंद करके उनके शासन पर कब्जा कर लिया है.

अखिलेश यादव औरंगजेब हों या न हों, लेकिन योगी आदित्यनाथ जिस तरह मुख्यमंत्री बनने के बाद शासन व्यवस्था संभाल रहे हैं, उसकी तुलना औरंगजेब से बहुत रोचक हो सकती है.


योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री आवास में बहुत साधारण ढंग से रहना शुरू कर रहे हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री आवास से महंगे सोफे, बेशकीमती कालीन, विदेशी क्रॉकरी और आलीशान फर्नीचर हटवा दिया है.

यह बिलकुल औरंगजेब जैसा ही काम है. औरंगजेब ने भी शासन व्यवस्था हाथ में लेते हुए ऐसे ही किया था. वह स्त्रियों की मर्यादा के प्रति बहुत कड़ा था और उनसे दुर्व्यवहार करने वालों को फांसी तक दे देता था.

औरंगजेब ने बादशाह रहते हुए टोपियां सिलकर और कुरान की कैलिग्राफी करके जो धन कमाया, उसी से वह अपना गुजर बसर करता था. यहां तक कि मरने से पहले उसने अपनी वसीयत की कि उसके निजी पैसे ही उसके अंतिम क्रिया कर्म किए जाएं. इसमें राजकोष का एक भी पैसा नहीं लिया जाए.

औरंगजेब का नाम आज के राजनेताओं को बुरा लग सकता है, लेकिन भारतीय इतिहास के इस शाश्वत खलनायक में कुछ गुण तो इतने दुर्लभ रहे हैं कि इन्हें आज के लोकतांत्रिक समाज का कोई राजनेता अपनाकर नहीं दिखा सकता. लेकिन इस दिशा में योगी ने कुछ अच्छी पहल की हैं.

अगर, हम औरंगजेब के बारे में लिखे गए इतिहास की पुस्तकों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि आज के योगी आदित्यनाथ की तरह वह भी बहुत रोचक किस्म का शासक था.

जदुनाथ सरकार की पुस्तक औरंगजेब, ऐनीमेरी शिमेल की द एंपायर ऑफ द ग्रेट मुगल्स और जहीरुद्दीन फारूकी की पुस्तक औरंगजेब और उसका समय देखें या पढ़ें तो औरंगजेब एक बहुत रोचक चरित्र वाले व्यक्ति के रूप में उभरता है.

आइए, देखें कि भारतीय इतिहास के सबसे बदनाम शासकों में एक खलनायक के कुछ खास गुण, जो शायद आज के महानायक राजनेता कभी सपने में भी नहीं सोच सकते.

- धार्मिक रूप से बेहद कट्‌टर औरंगजेब ने अपने 49 साल के शासनकाल में एक दिन भी राजकोष से वेतन या वैभव के लिए एक नया पैसा नहीं लिया.

- वह तख्तेताऊस का मालिक था, लेकिन पूरे शासनकाल में एक दिन भी उस पर नहीं बैठा. इस शासक ने कभी रेशमी वस्त्र नहीं पहने.

- वह महान कहलाने वाले अकबर का परपोता था. अकबर के 102 साल बाद उसने शासन किया. औरंगजेब का व्यापारियों में इतना खौफ था कि उसके शासन काल में रोजमर्रा की चीजों के भाव उससे भी कम थे, जो परदादा अकबर के समय थे.

- औरंगजेब हर रात को निकलकर अपने मुल्क के दीनहीन लोगों की फिक्र करता था. उनके हाल देखता था.

- औरंगजेब को फिजूलखर्ची बिलकुल पसंद नहीं थी और इसके लिए वह अपने पिता से भी बैर मोल ले चुका था. कहते हैं कि वह अपने पिता शाहजहां से इसलिए नाराज था कि शाहजहां ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद ताजमहल के नाम से मकबरा बनाया, जिस पर उस समय करोड़ों रुपए खर्च हो गए थे.

- औरंगजेब ने अपनी मां की याद में अपने पिता को यह मकबरा बनाते 14 साल की उम्र से 30 साल की उम्र तक होते देखा था. उसकी जवानी बीत रही थी, लेकिन पिता उसकी मां की याद में जनधन को पानी की तरह बहाए जा रहा था.

- सर यदुनाथ सरकार ने 'औरंगजेब' में लिखा है: महज 14 साल की उम्र की एक घटना ने ही औरंगजेब की ख्याति पूरे हिंदुस्तान में फैला दी थी. 28 मई 1633 का दिन था. शाहजहां ने यमुना के तट पर सुधाकर और सूरत-सुंदर नामके दो हाथियों की लड़ाई का आयोजन किया. तीनों पुत्र अलग-अलग घोड़ों पर दूर खड़े थे. लेकिन औरंगजेब उत्कंठा में बहुत निकट चला गया. सूरत-सुंदर हाथी सुधाकर के आक्रमण से भाग खड़ा हुआ तो सुधाकर ने पास ही खड़े औरंगजेब पर हमला बोल दिया.

-इस बहादुर बालक ने बजाय रोने-चीखने के, एक सिपाही का भाला लेकर हाथी पर फेंका. हाथी ने दांतों ने उस पर हमला किया और उसे घोड़े से बुरी तरह ज़मीन पर गिरा दिया. औरंगजेब ने फुर्ती से तलवार उठाई और हाथी पर टूट पड़ा. वह लड़ता रहा. इसी बीच बड़ा भाई शुजा आया और उसने जयसिंह की सहायता से हाथी को काबू किया.

इस घटना ने उसकी शोहरत पूरे हिंदुस्तान में फैला दी. शाहजहां ने उसे सीने से लगाया और "बहादुर" की पदवी दी और डांटा भी. औरंग़ज़ेब ने जवाब दिया : युद्ध में मैं मारा भी जाता तो क्या यह लज्जा की बात होती? मौत ही तो बादशाहों पर पर्दा डालती है.