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खुद भगवाधारी हो, अब सबको भगवा पहनाओगे क्या गुरु?

योगी ने स्कूल टीचरों के लिए ड्रेस कोड लागू कर जेहन में सवाल खड़ा कर दिया है

Amitesh

शरीर पर भगवा वस्त्र और कानों में कुंडल के साथ खड़े किसी व्यक्ति के बारे में जैसे आप आंखें मूंद कर सोंचेगे तो एक संन्यासी की तस्वीर सामने आ जाएगी. एक ऐसा संन्यासी जो घर-बार छोड़कर इस दुनिया की मोह-माया को त्यागकर परबह्म की उपासना में लीन हो जाता है.

इनके पास समाज को देने के लिए तो बहुत कुछ रहता है लेकिन समाज से पाने की न कोई लालसा रहती है, न ही कोई चाहत. राग और द्वेष के साथ-साथ मोह-माया के हर बंधन को तोड़कर जब कोई परमात्मा की साधना में लीन हो जाता है तो उसके सामने दुनिया की सारी खुशियां बौनी पड़ जाती हैं.


कोई उसे योगी कहकर बुलाता है तो कोई  उसे संन्यासी तो कोई उसे ऋषि की संज्ञा दे देता है. लेकिन, कभी-कभी ऋषि-मुनि भी राज-पाठ में दिलचस्पी लेने लगते हैं या फिर यूं कहें कि सत्ता के सिंहासन पर दूसरों के बैठने का आशीर्वाद देने वाले योगी खुद ही सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हो जाते हैं.

कुछ ऐसा ही इन दिनों देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है. जहां एक योगी आजकल सत्ता के शिखर पर पहुंच कर खुद राजा की भूमिका में आ गया है. लेकिन, अभी भी यह योगी एक शासक की तरह काम करने के बजाए एक संन्यासी के उसूलों को जनता के बीच थोपने की कवायद में है.

सभ्यता और संस्कृति के नाम पर योगी की सख्ती उन लोगों को फिलहाल रास नहीं आ रही है जो अबतक स्वच्छंदता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति के आगोश में धीरे-धीरे समाते चले गए थे. लेकिन, उन्हें इस बात का तनिक भी इल्म नहीं था कि कैसे आधुनिकता के ब्रह्मफांस में वो फंसते चले जा रहे हैं.

अगर ऐसा नहीं होता तो शायद वो योगी की तरफ से चलाए जा रहे चाबुक के दर्द से कराहते नहीं होते. अब योगी की सख्ती और समाज में खुलेपन की वकालत करने वालों के बीच ठन गई है. विचारों के टकराव ने यूपी के साथ-साथ पूरे देश के भीतर इस पूरी बहस को योगी केंद्रित कर दिया है.

पहले एंटी रोमियो दल के नाम पर चल रही पुलिसिया कारवाई से परेशान होने वाले कदम की आलोचना कर रहे थे. कोई कह रहा है कि ये योगी की ज्यादती है तो कोई इसे सही बताने में लगा है क्योंकि इस कदम से उन मनचलों की शामत आ गई है जो अबतक लड़कियों को परेशान किया करते थे.

तस्वीर: पीटीआई

इन तमाम आलोचनाओं से बेपरवाह योगी आदित्यनाथ अपनी धुन में मग्न हैं. सीधे अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने की कवायद में लगे योगी अपनी राह पर चल निकले हैं.

लेकिन, अब स्कूल के गुरूजी पर भी योगी के चाबुक ने ये कहने पर मजबूर कर दिया है कि गुरू अब तो बंद करो. योगी की तरफ से अब इन गुरूओं के लिए फरमान आया है, जींस और टी शर्ट पहनकर इनके स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई है. अब इन्हें फॉर्मल ड्रेस में ही आना होगा.

द्वापर और त्रेता युग में गुरूकुल में पढ़ने की परंपरा तो रही है. जहां गुरू से शिक्षा-दीक्षा लेने जाने वाले शिष्यों की वेश-भूषा रहन-सहन ठीक उसी तरह की रहती थी जो एक संन्यासी की. गुरू की भी वेश-भूषा भी ठीक वैसी ही जो कि एक साधु-संन्यासी की हो.

लेकिन, आज 21 वीं सदी में न वो गुरुकुल की परंपरा रही है और नही उस तरह की कोई पाठशाला. आज के इस हाईटेक युग में उस वेशभूषा की कल्पना बेमानी है.

बेहतर होता कि प्रदेश के भीतर शिक्षा-व्यवस्था को दुरूस्त करने पर ध्यान दिया जाए जो अब पटरी से उतर चुकी है.

लेकिन, शिक्षा पर ध्यान देने के बजाए शुरूआती दिनों में तो शिक्षकों पर ही नकेल कसी जा रही है. आज के गुरूओं को उस सांचे में ढालने की कोशिश हो रही है. अब शिक्षक जींस टीशर्ट में नहीं आएंगे. उन्हें मोबाइल का इस्तेमाल भी कम करना होगा.

हालांकि, स्कूल के भीतर पान, गुटखा का इस्तेमाल न करने पर जोर देकर योगी ने एक स्वस्थ परंपरा की शुरूआत भी की है.

लेकिन, योगी ने ड्रेस कोड लागू कर सबके जेहन में एक सवाल खड़ा कर दिया है. अब सभी यही पूछ रहे हैं गुरू कहीं ये भगवाधारी सबको भगवा पहनाने की फिराक में तो नहीं.