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योगी आदित्यनाथ: बीजेपी ने विकास के नाम पर थमाया हिंदुत्व का झुनझुना

इस फैसले से मोदी ने अपने विरोधियों और मीडिया को अटकलें लगाने का मौका दे दिया है.

Sreemoy Talukdar

योगी आदित्यनाथ वो भिक्षु नहीं हैं, जिसने अपनी फरारी कार बेच दी थी. उन्हें यूपी का मुख्यमंत्री बनाकर मोदी और अमित शाह ने हमें विकास के नाम पर हिंदुत्व का चेहरा पकड़ा दिया है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले, संवेदनशील सूबे में योगी जैसी विवादित शख्सियत को कमान सौंपना बहुत ही खराब फैसला है.


योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनाए जाने पर कई सवाल खड़े होते हैं. पहला सवाल तो यही कि क्या बीजेपी वाकई विकास के एजेंडे को लेकर गंभीर है? दूसरा सवाल प्रधानमंत्री मोदी के 'न्यू इंडिया' बनाने की नीयत पर भी सवाल खड़ा होता है.

यूपी में जीत के बाद 12 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी दफ्तर से बेहद भावुक भाषण दिया. इसमें उन्होंने बार-बार समाज के हर तबके को साथ लेकर चलने, 'न्यू इंडिया' बनाने की बात कही थी.

कैसे होगा सबका साथ सबका विकास

उन्होंने कहा कि भले ही किसी ने बीजेपी को वोट दिया हो या न दिया हो, उनकी पार्टी की सरकार 'सबका साथ-सबका विकास' के अपने वादे को पूरा करेगी. उन्होंने सबसे अपील की कि समाज के हर तबके के लोग उनके साथ मिलकर नए भारत को बनाने में सहयोग करें.

अब ये समझ में नहीं आता कि एक कट्टर हिंदूवादी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर मोदी कैसे नए भारत का निर्माण करेंगे? एक ऐसे शख्स को यूपी की कमान दी गई है, जिसका कैरियर विवादित, सांप्रदायिक, मुस्लिम विरोधी बयानों से बना हो. ऐसे में सबका साथ-सबका विकास कैसे होगा?

ये कदम सिर्फ कट्टर हिंदूवादियों को शह देने जैसा है, बल्कि यूपी की बीस फीसदी आबादी वाले मुसलमानों को भी ये संदेश देने जैसा है कि सूबे की सरकार में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं.

योगी को कमान देने का फैसला न सिर्फ बेशर्मी भरा है, बल्कि ये मोदी की कमजोर और बेअसर छवि को भी दिखाता है. ये फैसला बताता है कि मोदी हिंदूवादी और कट्टर एजेंडे पर चल रहे हैं.

हिंदुओं की गोलबंदी की कोशिश

उत्तर प्रदेश में 2017 का जनादेश बीजेपी के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक था. ये सिर्फ मोदी के काम-काज पर जनमत संग्रह जैसा था. बीजेपी की जबरदस्त जीत से साबित हुआ कि युवा वोटर उनकी तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है. बीजेपी की चौतरफा कामयाबी से ऐसा भी लगा कि बड़ी तादाद में मुस्लिम युवाओं और महिलाओं ने भी बीजेपी को वोट दिया. उन्हें लगा कि मोदी विकास और सामाजिक सुधार के एजेंडे पर चलेंगे. ट्रिपल तलाक जैसी परंपरा को खत्म करेंगे.

लेकिन यूपी की कमान गोरखनाथ पीठ के महंत को सौंपकर बीजेपी ने जाहिर कर दिया है कि 2019 में बीजेपी हिंदू वोटों की गोलबंदी करना चाहती है. बीजेपी का गणित ये है कि विरोधी दल अगर उसके खिलाफ एकजुट होंगे तो बीजेपी के पक्ष में हिंदू एकजुट होंगे. इससे पार्टी को जीत मिलेगी.

अगर योगी को सीएम बनाने के पीछे यही सोच है तो साफ है कि मोदी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. वो आज ऐसे नेता दिख रहे हैं जिसे अपने विकास के वादे पर खुद ही यकीन नहीं. शायद उन्हें नहीं लगता कि तरक्की के नाम पर उन्हें ज्यादा वोट मिलेंगे.

क्या योगी ने दबाव से हासिल की गद्दी?

ये भी हो सकता है कि मोदी ने मजबूरी में योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाया हो. शायद उन्हें ये डर रहा हो कि योगी के दावे को खारिज करेंगे तो पार्टी संगठन में फूट पड़ सकती है. योगी आदित्यनाथ की नाराजगी से पार्टी को नुकसान के डर की वजह से ही उन्हें उत्तर प्रदेश का सीएम चुना गया हो.

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ दंगे करने और हत्या की कोशिश जैसे कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि उनके पास समर्थकों की लंबी-चौड़ी फौज है. ये समर्थक, नाराजगी की सूरत में बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. ये नुकसान 2019 में बीजेपी पर भारी भी पड़ सकता था.

तो क्या इसी डर से बीजेपी उनके दावे के आगे नतमस्तक हो गई? कहा ये जा रहा है कि उनके पास कई विधायकों का समर्थन था. योगी के नाम के एलान के बाद जिस तरह जश्न मना, उससे जाहिर है कि अगर उनके नाम का एलान नहीं होता तो योगी के समर्थक किस हद तक जा सकते थे. तो क्या योगी के नाम पर हुई लामबंदी, मनोज सिन्हा जैसे दूसरे दावेदारों पर भारी पड़ी?

अगर ये सही है तो ये बात भी मोदी को कमजोर नेता के तौर पर जाहिर करती है. उनके पास जबरदस्त जनादेश था. वो फैसला लेने के नाम पर नया तजुर्बा कर सकते थे. कोई भी उन्हें ब्लैकमेल करने की स्थिति में नहीं था.

इसके मुकाबले योगी जैसे कट्टर हिंदूवादी को मुख्यमंत्री बनाकर मोदी ने बड़ा जोखिम लिया है. योगी का एक भी गलत फैसला मोदी की अपनी लोकप्रियता को नुकसान पहुंचा सकता है.

भारी जनादेश का अहंकार?

यूपी में पूरे प्रचार अभियान के दौरान एक बार भी योगी आदित्यनाथ का नाम भावी मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं लिया गया. शायद बीजेपी को ये एहसास था कि कट्टर छवि वाले योगी को आगे करने पर सबको साथ लेकर चलने के उसके दावे पर दाग लग सकता था.

अब अगर बीजेपी को योगी को ही सीएम बनाना था तो उन्हें सीएम पद के दावेदार के तौर पर पेश करना चाहिए था. मगर पार्टी ने ऐसा नहीं किया.

अब उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने जनादेश का अपमान किया है. ये वैसा ही अहंकार है जिससे मोदी ने नतीजे आने के अगले ही दिन बचने की सीख दी थी. तो क्या पीएम मोदी अपनी ही बात को लेकर गंभीर नहीं थे?

सबसे शरारती बच्चे को ही जिम्मेदारी देना?

योगी को सीएम बनाने के पीछे सबसे बड़ा तर्क यही हो सकता है कि सबसे शरारती बच्चे को ही क्लास का मॉनिटर बना दिया जाए. बयानबाजी के लिए विवादित रहे योगी पर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं है. वो भ्रष्टाचार के खिलाफ बेहद सख्त रुख के लिए जाने जाते हैं. उनके सरकार के अगुवा होने से जातीय समीकरण भी ठीक बैठ जाते हैं.

शायद इसीलिए मोदी ने योगी को सीएम बनाया तो दो उप मुख्यमंत्री भी बनाए, ताकि योगी विकास के एजेंडे पर कायम रहें. वेंकैया नायडू ने जब योगी के साथ प्रेस कांफ्रेंस की तो उन्होंने जोर देकर ये बात कई बार कही.

अब योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने की कोई भी वजह रही हो, मगर ये तय है कि ये विवादित फैसला टाला जा सकता था. किसी ऐसे उम्मीदवार को चुना जा सकता था जो सबको मंजूर हो.

बीजेपी में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है. लेकिन इस फैसले से मोदी ने अपने विरोधियों और मीडिया को अटकलें लगाने का मौका दे दिया है. जल्द ही इसके नतीजे सामने होंगे.