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योगी सरकार को अवैध बूचड़खानों पर रोक के साथ पशु चोरी भी रोकनी होगी

पशुधन की चोरी और बूचड़खानों तक तस्करी सूबे में काफी बढ़ गई थी

Sanjay Singh

सदियों से लखनऊ को अवधी और मुगलई जैसे मांसाहारी व्यंजन लोगों को परोसने की विशिष्टता हासिल रही है. अलग-अलग जायका पसंद करने वालों के लिए लखनऊ हमेशा से जन्नत रही है.


पीढ़ियों से यहां के व्यंजन का स्वाद अपनी खासियत के चलते मशहूर रहा है. लेकिन विडंबना इस बात को लेकर है कि लखनऊ के जायके ने देश की राजधानी दिल्ली तक का सफर अभी तक पूरा नहीं किया है.

उत्तर प्रदेश का अमूमन हर इलाका एक अलग तरह के मांसाहारी व्यंजनों को लेकर अपनी खास पहचान रखता है. और शायद यही वजह है कि खानसामों को लखनऊ या मुरादाबाद से उधार लिए गए रेसिपी के मुकाबले घरेलू रेसिपी पर ज्यादा यकीन है.

लेकिन अब लखनऊ के कबाबी और दस्तरखानों को एक बुनियादी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें बीफ, मटन और चिकन जैसे मुंह में पानी ला देने वाले लाजवाब डिश के लिए कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है. जबकि दशकों या फिर सदियों से ये लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं.

बूचड़खानों पर बीजेपी ने अपना रुख साफ कर दिया है

इनमें से कई ऑउटलेट और उनके सप्लायरों ने मीट की खरीददारी और सप्लाई की वैधता को लेकर कभी चिंता नहीं जताई. जब तक मीट की सप्लाई रेगुलर थी और कीमतें तय दायरे के अंदर इसकी कीमतें थी, कारोबारियों ने कभी इस बात को लेकर गंभीरता नहीं जताई कि मीट कहां और कैसे खरीदा जा रहा है? कौन इसे सप्लाई कर रहा है?

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हालांकि लाइसेंस को लेकर मामला तब भी था जैसा कि किसी भी सभ्य समाज में हुआ करता है. लेकिन तब कारोबार चल रहा था. कोई इसे लेकर ध्यान नहीं दे रहा था. अगर तब सवाल पूछे जाते थे तो संबंधित अधिकारियों के जेब भरने के लिए ऐसा किया जाता था. ज्यादा स्पष्ट तौर पर कहें तो घूस की रकम को बढ़ाने के लिए सवाल पूछे जाते थे.

पशुचोरी सूबे काफी बढ़ गई थी

पशुधन की चोरी और बूचड़खानों तक उनकी तस्करी सूबे में काफी बढ़ गई थी. चूंकि चोरी हुए पशु के बारे में कोई सबूत या अवशेष नहीं मिलते थे. लिहाजा ये समस्या काफी गंभीर होती जा रही थी. इस वजह से राज्य सरकार को प्रशासनिक इच्छा की बदौलत मौजूदा कानून को सख्त बनाना था.

चुनाव पूर्व इसे बड़ा मुद्दा बनाकर बीजेपी ने भी इस बात को साफ कर दिया था कि बूचड़खानों को लेकर जैसा पहले सूबे में चल रहा था वो और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

बीजेपी को मिले प्रचंड जनादेश और योगी आदित्यनाथ को यूपी की सत्ता का कमान मिलते ही इस तरह की व्यवस्थाएं बदलने लगीं. एक मैसेज में कहा गया कि 'इतने दिनों से जो पेटा कानून नहीं कर सका (बूचड़खानों को बंद करने को लेकर) उसे एक सप्ताह के अंदर ही योगी आदित्यनाथ ने कर दिखाया.'

लेकिन अवैध बूचड़खानों को लेकर यूपी पुलिस और अधिकारियों का अति उत्साह अब यूपी सरकार को अखर रहा है. क्योंकि ये मुद्दा सिर्फ कानूनी ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी है.

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बूचड़खानों पर कार्रवाई और कुछ निजी सदस्यों की अति जागरुकता के बाद राजनीतिक नेतृत्व उसी लहजे में प्रतिक्रिया दे रहा है जिसकी उम्मीद सरकार से थी. या फिर जिस तरह प्रजातांत्रिक समाज में प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए कि कानून का राज स्थापित करना सरकार की प्राथमिकता है.

अवैध बूचड़खानों और व्यापार को हर हाल में रोका जाएगा. लेकिन जिनके पास वैध लाइसेंस है उन्हें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है. यहां तक कि जिन लोगों पर कानून को अमल में लाने की जिम्मेदारी है वो भी उस सीमा को नहीं लांघे जिसकी इजाजत उन्हें नहीं दी गई है.

यूपी सरकार ने साफ कर दिया है कि कार्रवाई सिर्फ अवैध बूचड़खानों पर होगी

 अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई का दिया है आदेश

स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह जो कि यूपी सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता भी हैं उनके बयानों पर ध्यान दीजिए. उन्होंने कहा कि अवैध शब्द ज्यादा महत्वपूर्ण है. सरकार ने सिर्फ अवैध बूचड़खानों को बंद करने का निर्देश दिया है. जिनके पास वैध लाइसेंस है उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने पुलिस और दूसरे विभाग में कुछ अति उत्साही अधिकारियों को भी नसीहत दी है कि वो सरकार के निर्देश को गलत तरीके से नहीं अमल में लाएं. क्योंकि ऐसी मंशा सरकार की भी नहीं है.

सिद्धार्थनाथ सिंह ने साफ कहा है कि मटन, चिकन और अंडे की दुकानें बंद नहीं की जाएंगी. सरकार की तरफ से भी इन्हें बंद करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है. वैध रूप से चल रहे बूचड़खानों में महज सीसीटीवी कैमरे नहीं लगने जैसी वजहों के चलते अधिकारी उनपर कार्रवाई करने से बचें.

ऐसे स्थिति में अधिकारी मनमानी करने के बजाए अपने विवेक का इस्तेमाल करें. उन्होंने बहुत ही साफ शब्दों में पुलिसवालों को कड़ी चेतावनी भी दी है कि वे सच्चे मीट कारोबारियों को किसी तरह से परेशान नहीं करें. उन्होंने साफ कहा कि 'पुलिस के विजिलैनटिज्म को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा.'

अब जबकि सिद्धार्थ नाथ सिंह यूपी सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता भी हैं. और वो ऐसे मुद्दे पर बात कर रहे हैं. तो कहा जा सकता है कि सरकार में नेतृत्व से पूरी तरह विचार विमर्श करने के बाद ही उन्होंने ऐसा बयान दिया होगा.

संसद में इस मामले पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इताहुदल मुसलमीन पार्टी (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी के लगाए आरोप के जवाब में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस मामले की कानूनी वैधता पर जोर दिया. उन्होंने भी इस बात को दुहराया कि केवल अवैध बूचड़खानों को ही बंद किया जाएगा.

हालांकि ये मामला बीजेपी के लिए चुनाव पूर्व मुद्दा रहा है. यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी कई जनसभाओं में इस मुद्दे पर बढ़चढ़ कर बोला था. लेकिन अब ये मुद्दा राजनीतिक और धार्मिक रंग लेता जा रहा है.

खास कर तब जबकि भगवा चोला धारण किए योगी आदित्यनाथ सरकार की कमान संभाल रहे हैं. तो जैसी पहले आशंका जाहिर की जा रही थी उसी तरह ये मुद्दा अब सेक्युलर-कम्युनल बहस के दायरे में उलझता जा रहा है. जबकि कोई भी इस मुद्दे की हकीकत में नहीं जाना चाहता.

ये सच है कि बूचड़खानों के संचालन और मीट कारोबार से ज्यादातर मुस्लिम संप्रदाय के लोग जुड़े हैं. लेकिन ये अधूरा सच है. कई हिंदू भी इस कारोबार में हैं.

शाकाहार से धर्म में अंतर पैदा नहीं होता

ये कहना कि यूपी की जनता पर शाकाहार थोपने की ये यूपी सरकार की शुरुआत है, बिल्कुल कोरी बकवास है. शाकाहार धर्म में अंतर पैदा नहीं करता. सिर्फ इस बात को लेकर अंतर है कि कई हिंदू गाय का मांस नहीं खाते हैं.

ये तय है कि थोड़े समय के लिए भले मीट सप्लाई बाधित हो लेकिन रेग्युलेटेड बूचड़खानों के रहने से मांस ज्यादा स्वस्थ मिलेंगे. आधुनिक समाज में सड़क के किनारे जानवरों को काट कर उसका मांस बिना किसी स्वास्थ्य मानकों को ध्यान में रख कर बेचा बेहतर नहीं माना जा सकता.

लिहाजा योगी आदित्यनाथ सरकार की सबसे बड़ी चुनौती पशुधन की चोरी, तस्करी को रोकने के साथ साथ मीट कारोबार में हाइजीन के स्तर को सुधारने की होगी.

लेकिन इतना जरूर है कि इस कदम से कई तरह की बातें होने लगी हैं. एक दिलचस्प मैसेज तो ये भी है कि 'कोई योगी आए बेवफाओं के शहर में भी, ख्वाहिशों के कत्लखाने वहां भी बंद करवाने हैं.'