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योगी आदित्यनाथ: 'सबका साथ सबका विकास' एक क्रूर मजाक में बदल गया

शायद ही किसी को भरोसा होगा कि यूपी चुनाव में बीजेपी ‘देश में मोदी, प्रदेश में योगी’ नारे के साथ चुनाव लड़ी रही है

Sanjay Singh

भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले, राजनीतिक और सामाजिक रूप से सबसे अहम हिंदी पट्टी के राज्य उत्तर प्रदेश की कमान अब गोरखनाथ मंदिर के मौजूदा महंत आदित्यनाथ के हाथ में है.

आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाने के बीजेपी  के फैसले से जहां समूचा देश हैरान है. वहीं कई बीजेपी समर्थक ऐसे सियासी बदलाव को परिभाषित करने के लिए उचित शब्द नहीं ढूंढ पा रहे हैं.


एक महंत जो हमेशा शरीर पर भगवा चादर लपेटे रहते हैं. उनके हाथ में उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य की जिम्मेदारी आने के बाद से कई आशंकाएं भी जाहिर की जा रहीं हैं. ये आशंका खास तौर पर सूबे में धर्म और राज्य के बीच खींची हुई पतली रेखा के मिट जाने की है.

क्या होगा 'सबका साथ सबका विकास' के नारे का?

इसका अर्थ ये भी है कि सबका साथ सबका विकास के जिस नारे को बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले गढ़ा. जिस नारे को हर संभावित मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पार्टी के कई बड़े नेता बार बार दोहराते रहे हैं, वो नारा एक क्रूर मजाक में तब्दील हो जाएगा.

आशंका सिर्फ नारे के क्रूर मजाक में बदलने भर का ही नहीं है. खतरा तो इस बात का भी है कि ऐसा सियासी बदलाव सुस्त पड़ी विरोधी पार्टियों को बैठे बिठाए मौका दे सकती है, जिससे वो मोदी और बीजेपी के खिलाफ अपनी ताकत को फिर से एकजुट कर सकें. हो सकता है कि इससे एक बार फिर देश में सेक्युलर-कम्युनल डिबेट को हवा दी जाए, जो अब तक उस स्तर पर नहीं हो पाई है.

आखिरकार, महंत सिर्फ उग्र हिंदुत्व के चेहरे के तौर पर ही जाने जाते हैं. वो अब तक गोरखनाथ मंदिर से अपनी गतिविधियां चलाते रहे हैं. तो उनकी संगठनात्मक क्षमता का सबूत बस इतना भर है कि वो अपने संगठन हिंदू युवा वाहिनी का संचालन करते हैं.

हिंदू युवा वाहिनी (तस्वीर फेसबुक)

हिंदू युवा वाहिनी की आधिकारिक वेबसाइट कहती है कि इस संगठन के संरक्षक परम पूज्य योगी आदित्यनाथ हैं. तो इस वेबसाइट में षडयंत्र नाम से कॉलम में कई लेख छपे हुए हैं. इसमें अखंड भारत, फिर अखंड होगा भारत, अल्पसंख्यकों को लुभाना और इसका असर, इस्लाम का सफर – जेहाद से लव जेहाद तक, जैसे मुद्दों पर लेख शामिल हैं. तो हिंदुओं पर हुए अत्याचार, लव जेहाद, ईसाइयों द्वारा धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर वीडियो है.

बतौर बीजेपी विधायक दल के सेंट्रल ऑबजर्वर जब शहरी विकास मंत्री, एम वैंकेया नायडू मीडिया से मुखातिब हुए तब उन्होंने महंत को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुने जाने का जो मकसद बताया वो काफी विरोधाभासी था. उन्होंने कहा कि आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री सिर्फ एक एजेंडा को पूरा करने के लिए बनाया गया है. और वो है 'विकास, विकास और विकास.'

उत्तर प्रदेश की जनता के लिए नायडू का ये बयान काफी विरोधाभासी है. तो दिलचस्प बात ये भी है कि वैंकेया नायडू ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया.

आरएसएस के एजेंडे के साथ विकास की राह 

महंत के विवादित बयान को खोजना कोई मुश्किल नहीं है. तो इन बयानों की गूंज अब किसी भी गलती पर बीजेपी विरोधी दल के नेता, आलोचकों और उदारवादियों की जुंबा से सुनने को मिल सकते हैं. और ऐसे वक्त में वो गलत नहीं होंगे.

योगी आदित्यनाथ को पांच साल के लिए उत्तर प्रदेश की कमान सौंप कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दुनिया को ये संदेश दिया है उनकी राय में प्रचंड बहुमत का मतलब यूपी और राज्य से बाहर रहने वाले आम लोगों की समझ से एकदम अलग है.

योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान दिलवाने में आरएसएस का भी योगदान हो सकता है. और ये भी हो सकता है कि आरएसएस ने इस बहुमत को हिंदू बनाम मुस्लिम समुदाय के चुनावी मुकाबले में हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण के तौर पर परिभाषित किया होगा.

जुलाई 2013 में जब से नरेंद्र मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर चुना गया था. और मई 2014 में जब पूरे देश ने उन्हें प्रचंड बहुमत सौंपा. तब से उन्होंने विकास को अपना मुख्य एजेंडा बनाया था. यहां तक कि उन्होंने खुद को हमेशा से प्रधान सेवक कहा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी की छवि भी हिंदुत्ववादी की रही है. बावजूद इसके लोगों ने उनके विकास के एजेंडे का समर्थन किया. लोगों ने एक उभरते और मजबूत भारत के लिए उन्हें वोट दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी:

बतौर प्रधानमंत्री ढाई वर्ष और गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर बारह वर्षों के दौरान मोदी की छवि विकासपरस्त नेता की बनी. लेकिन सांप्रदायिक तौर पर बेहद संवेदनशील राज्य उत्तर प्रदेश में महंत आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री के तौर पर चुनाव इस आशंका को प्रबल बनाता है कि मोदी हर वक्त आरएसएस और संघ परिवार के दबाव को सहने में सक्षम नहीं हैं.

उनका एजेंडा मोदी के विकास के एजेंडे पर भी हावी हो सकता है. क्योंकि सुबह तक बतौर मुख्यमंत्री आईआईटी बीएचयू के पूर्व छात्र और संचार मंत्री उनके लिए नंबर वन उम्मीदवार थे. लेकिन फिर अचानक सारी स्थितियां बदल गईं.

मार्च, 2017 में जनता ने जो जनादेश दिया वो अलग नहीं था. मोदी ने बड़ी ही कामयाबी से केंद्र सरकार के कामकाज और राज्य को उन्नति के रास्ते पर ले चलने के सपने को आपस में जोड़ा था. उन्होंने अपने नेतृत्व में राज्य में किसानों की बेहतरी, रोजगार सृजन और नई उम्मीद और आकंक्षाओं को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया है.

आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री: देश को हैरान करने वाला फैसला है 

शनिवार को जब समूचा देश टीवी के सामने टकटकी लगाए यूपी में अगले मुख्यमंत्री के नाम का इंतजार कर रहा था तब एक घोषणा ने उग्र हिंदुत्व के सबसे दमदार चेहरे को सामने ला दिया. जो हैरानी पैदा करने वाला था.

योगी आदित्यनाथ:

शायद ही किसी को भरोसा रहा होगा कि यूपी चुनाव में बीजेपी देश में मोदी, प्रदेश में योगी नारे के साथ चुनाव लड़ी हो और इस तरह के नतीजे लाई हो. बल्कि जो बात पूरे यकीन के साथ कही जा सकती है वो ये है कि 11 मार्च को जो चुनाव नतीजे सामने आए वो ईवीएम मशीन से बाहर निकले.

इससे पहले महंत आदित्यनाथ तब चर्चा में आए थे जबकि राज्य में हुए सितंबर 2014 के उपचुनाव में उन्होंने लव जेहाद जैसे विवादास्पद मुद्दे पर बीजेपी की चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी. नतीजा ये हुआ कि जिन 11 सीटों पर उपचुनाव हुए थे वहां की सिर्फ तीन सीटों पर बीजेपी जीत हासिल कर पाई थी.

दिलचस्प बात तो ये थी कि इन सभी सीटों पर उपचुनाव इसलिए हुए थे क्योंकि इन सीटों से जो भी बीजेपी विधायक थे वो बीजेपी सांसद बन गए.

दो उपमुख्यमंत्री: जातिगत संतुलन की कोशिश हो सकती है

चुनाव की दूसरी अहम बात ये है कि प्रचंड जनादेश के बावजूद आदित्यनाथ के साथ दो उपमुख्यमंत्री का चुनाव किया गया है. हो सकता है ऐसा जातिगत संतुलन बनाने के लिए किया गया हो.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा:

महंत आदित्यनाथ राजपूत जाति के हैं. जबकि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ी जाति से आते हैं. दूसरे उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ब्राह्मण जाति के हैं. मौर्य विश्व हिंदू परिषद से ताल्लुक रखते हैं तो शर्मा आरएसएस से जुड़े हुए हैं. जबकि महंत आदित्यनाथ और उनके पिता तुल्य महंत अवैद्यनाथ का ताल्लुक बीजेपी में आने से पहले हिंदू महासभा से रहा है.

ये बेहद दिलचस्प था कि केंद्रीय मंत्री कालराज मिश्र को खास तौर पर विधायक दल की बैठक में आमंत्रित किया गया था ताकि वो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री उम्मीदवार को आशीर्वाद दे सकें.

भले ऐसे वक्त में वो खुद खोए-खोए से ना दिखे हों. ये पहला मौका रहा होगा जब नेता जिन्हें मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया उनके समर्थकों ने पार्टी हेडक्वार्टर में प्रदर्शन किया हो. और पार्टी नेतृत्व को अपनी मांग मानने पर मजबूर किया हो.

जाहिर है उत्तर प्रदेश में वक्त 'केसरिया होली का है.' क्योंकि मोदी शाह की जोड़ी ने होली के बाद पूरे सूबे को केसरिया रंग में रंग दिया है.