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यशवंत सिन्हा को बुढ़ापे में 'ज्ञानबाई' रोग हो गया है!

पूर्व वित मंत्री यशवंत सिंहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक हैं और सरकार के आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना कर रहे हैं

Kanhaiya Bhelari

भोजपुरी में कहावत है कि कभी-कभी बुढ़ापे में 'ज्ञानबाई' रोग हो जाता है. जिंदगी भर ठाठ की जिंदगी जीने वाले पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा संभवतः इसी के शिकार हो गए हैं, तभी तो अचानक आम जनता की परेशानी याद आ गई है. जब अफसर थे तो जनता के साथ इनका क्या बर्ताव रहा है उसकी बानगी पाठकों के लिए.

बात 1967 की है. तब यशवंत सिन्हा अविभाजित बिहार में दुमका जिला के प्रशासनिक हेड यानि उपायुक्त हुआ करते थे. उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा के सामने ही एक ईमानदार मंत्री को छठी का दूध याद दिला दिया था.


उस अप्रिय घटना का विवरण कद्दावर सीपीआई नेता इंद्रदीप सिन्हा ने अपनी पुस्तक ‘संघर्ष के पथ पर’ में विस्तार से किया है. इंद्रदीप सिन्हा भी महामाया प्रसाद सिन्हा की संयुक्त मोर्चा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. किताब को नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के मौखिक इतिहास विभाग ने तैयार किया है.

आईएएस रहते जब मंत्री को हड़का दिया था यशवंत सिन्हा ने 

किताब में इंद्रदीप सिन्हा लिखते हैं कि सीएम महामाया प्रसाद सिन्हा और सिंचाई मंत्री चन्द्रशेखर सिंह दुमका दौरे पर थे. चंद्रशेखर सिंह सीपीआई के प्रमुख नेता भी थे. चार-पांच सौ लड़के प्रखंड कार्यालय को घेरे हुए हैं और पुलिस हथियार लेकर खड़ी है. चन्द्रशेखर सिंह ने प्रखंड विकास पदाधिकारी से कहा कि पुलिस को वापस भेज दीजिए. उस समय यशवंत सिन्हा भी मौजूद थे.

इंद्रदीप सिन्हा आगे लिखते हैं कि चंद्रशेखर सिंह ने उपायुक्त यशवंत सिन्हा से कहा कि देखिए हम लोग मंत्री हैं और आपसे कह रहे हैं कि आप आक्रोशित आंदोलनकारियों के दल से मिलकर उनकी समस्याओं को सुनिए और उसका समाधान निकालिए. इसके जवाब में यशवंत सिन्हा ने कहा कि ‘मैं ऐसे ऐरे-गैरे से नहीं मिलता हूं. मैने बहुत मिनिस्टर देखें हैं’.

महामाया प्रसाद सिन्हा और चंद्रशेखर सिंह मुंह लटकाकर पटना लौट आए. तत्कालीन चीफ सेक्रेट्री को सीएम आवास बुलाया गया. सीएम ने सीएस से कहा कि आप दुमका उपायुक्त को आदेश दीजिए कि वो किसी वरीय पदाधिकारी को इसी वक्त प्रभार देकर पटना सचिवालय आकर रिपोर्ट करें. इस पर मुख्य सचिव कहने लगे कि यह बहुत कड़ी सजा होगी. इस पर इंद्रदीप सिन्हा ने कहा कि वह इसी के काबिल हैं.

किताब में सिन्हा ने लिखा है कि हमने सीएस से पूछा कि क्या एक अफसर एक मंत्री के साथ ऐसे ही व्यवहार करता है? हम लोगों को मालूम है कि कांग्रेस के राज में उपायुक्त लोग मंत्रियों के जूते पोंछते थे और जूतों का फीता खोलते थे. सरकार के आदेश को सीएस ने माना.

सरकार के आदेश को दिखाते रहे ठेंगा 

लेकिन यशवंत सिन्हा आदेश को ठेंगा दिखाकर दिल्ली भाग गए. उनके ससुर एनसी श्रीवास्तव केन्दग में सप्लाई सेकेट्री थे. वे आईसीएस अफसर थे. सिन्हा तब तक दिल्ली में बैठे रहे जब तक उन्होंने पैरवी से अपना ट्रांसफर केन्द्र में नहीं करवा लिया.

हमने मुख्य सचिव से कहा कि देखिए आपका एक अफसर इस तरह से बदतमीजी करेगा, कहना नहीं मानेगा तो सरकार को उसे ठीक करना ही पड़ेगा. रामायण का हवाला देकर सीएस को सिन्हा समझाते हैं कि ‘जो दंड करो नहीं तोरा, भ्रष्ट होहि श्रुति मार्ग मोरा'. प्रशासन ऐसे ही नहीं दुरुस्त होगा. कुछ दिनों बाद जब संयुक्त मोर्चा की सरकार गिर गई तो यशवंत सिन्हा फिर पटना आ गए.

पर इस घटना ने पूरे बिहार के आइएएस अफसरों में यह संदेश पहुंचाने का काम किया कि सबको अनुशासन मानना पड़ेगा. उसके बाद सभी अफसर ठीक से व्यवहार करने लगे.

यशवंत सिन्हा बिना कुर्सी के ज्यादा दिन नहीं रह सकते

बहरहाल, आज की तारीख में पूर्व वित मंत्री यशवंत सिंहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक हैं. भारत सरकार के आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना कर रहे हैं. इसी कारण चर्चा में हैं. वो दावा कर रहे हैं कि उनके मुंह खोलने के बाद ही जीएसटी में बदलाव किया गया है.

लेकिन लोग-बाग मानते हैं कि यशवंत सिन्हा इसलिए नाराज हैं कि नरेंद्र मोदी ने मिलने का समय नहीं दिया है. बेचारे पिछले एक साल से मिलने के लिए अर्जी लगाए हैं. दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो कहते हैं कि सिन्हा बिना कुर्सी के नहीं रह सकते हैं. उन्हीं जमात में से एक हैं रांची के गुलशन लाल आजमानी, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक, जिन्होंने 1995 विधानसभा चुनाव में सिन्हा के लिए रांची की सीट छोड़ दी थी.

बकौल आजमानी ‘मुझे आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी और हमारे राजनीतिक गुरु अश्विनी कुमार ने बारी-बारी से दिल्ली बुलाकर समझाया कि यशवंत सिन्हा के लिए सीट छोड़ दो. पार्टी की तरफ से सीएम के उम्मीदवार हैं. हमने छोड़ दिया और चुनाव में अथक परिश्रम करके जिताया. लेकिन मतलब निकल गया तो जनाब पहचानना भी बंद कर दिए’.