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कैबिनेट में फेरबदल करके नए सहयोगियों को इनाम देगी बीजेपी

हाल में जुड़े नए सहयोगियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर गठबंधन को और प्रगाढ़ कर सकती है बीजेपी

Sanjay Singh

तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके के दो प्रतिस्पर्धी धड़ों का आपसी विलय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के लिए अच्छी खबर है. आपस में विलय करने वाले इन दो धड़ों में एक के अगुआ मुख्यमंत्री ईडाप्पडी के. पलानीस्वामी हैं और दूसरे की अगुवाई पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम के हाथ में है जिन्होंने एआईएडीएमके के नेतृत्व को चुनौती दी थी.

अब बस कुछ देर के इंतजार की बात है जब एआईएडीएमके का शीर्ष नेतृत्व पीएम मोदी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने के अपने फैसले का ऐलान करेगा.


दो दिन पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने पटना में अपनी पार्टी का सम्मेलन बुलाया और सर्व-सम्मति से एनडीए में शामिल होने का फैसला किया. देश के उत्तर और दक्षिणी हिस्से के ये दो घटनाक्रम बड़े बड़े मायने वाले हैं और बीजेपी के पक्ष में हैं. सो, नई दिल्ली के सत्ता के गलियारे में इन पर चर्चा सरगर्म है. बिहार और तमिलनाडु दोनों ही बड़े राज्य हैं और इन राज्यों का एनडीए की झोली में आना मोदी-शाह की जोड़ी के लिए बड़ी सियासी कामयाबी है.

इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि जब संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होगा तो राज्यसभा में एनडीए का बहुमत होगा क्योंकि जदयू के 10 और एआईएडीएमके के 13 सांसद एनडीए के खेमे में होंगे.

देश के संसदीय इतिहास में पहली बार होगा जब किसी गैर-कांग्रेसी गठबंधन को दोनों सदनों में बहुमत हासिल हो. राज्यसभा में बहुमत का ना होना मोदी सरकार के लिए कई अहम विधेयकों के मामले में गहरी चिंता का सबब साबित हुआ है. अब बीजेपी के लिए ऐसी बाधा नहीं रहेगी बशर्ते वह जरूरत के दिन सदन में साथी दलों के बीच अच्छी तरह से तालमेल कायम कर ले.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'बीजेपी के इतिहास में अमित शाह इस लिहाज से अनूठे अध्यक्ष कहे जायेंगे जिन्होंने राज्यसभा में अपने प्रवेश के समय पार्टी के पक्ष में बहुमत का अतिरिक्त आंकड़ा जोड़ा.'

लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं तथा मंत्रियों समेत पार्टी-संगठन के ऊपर और निचले स्तर के पदाधिकारियों के बीच गुपचुप और गहराई से पूछा जाने वाला सवाल यह है कि इन दोनों घटनाक्रम को आकार देने में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से मंत्रिमंडल में फेर-बदल और विस्तार के मद्देनजर कहीं जल्दबाजी तो नहीं की गई.

यह सच है कि सरकार में कुछ पद साफ-साफ खाली नजर आ रहे हैं- अरुण जेटली के पास वित्त-मंत्रालय के साथ रक्षा-मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार है. (मनोहर पर्रिकर के इस्तीफे तथा गोवा के मुख्यमंत्री बनने के कारण). अनिल दवे की मृत्यु के बाद डॉ. हर्षवर्धन वन और पर्यावरण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं, उनके पास विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय पहले से है.

नरेंद्र सिंह तोमर

वैंकैया नायडू के उप-राष्ट्रपति बनने के बाद शहरी मामलों के मंत्रालय का प्रभार नरेंद्र तोमर संभाल रहे हैं. उनके पास ग्रामीण विकास, पंचायती राज, स्वच्छ पेयजल तथा साफ-सफाई का मंत्रालय पहले से है. स्मृति ईरानी के पास कपड़ा मंत्रालय के साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार है, ( वैंकैया नायडू के इस्तीफे तथा उप-राष्ट्रपति बनने के कारण.)

लिहाजा मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार की जरूरत एक वक्त से बनी चली आ रही है और कुछ वरिष्ठ मंत्रियों का सुझाव था कि यह काम संसद के मॉनसून सत्र के समापन पर किया जाय. मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार 18 अगस्त को हो, इस विचार से बीजेपी के एक हलके में चर्चा भी हुई. लेकिन नीतीश कुमार ने मोदी नीत एनडीए में शामिल होने के बारे में औपचारिक फैसला लेने के लिए 19 अगस्त को जदयू के सम्मेलन की घोषणा कर दी और एआईएडीएमके के धड़ों के विलय की तारीख 18 अगस्त से आगे खिसककर 21 अगस्त हो गई.

पार्टी में अब अटकल यह लगाई जा रही है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार का काम आगे के दिनों, संभवतया 25 अगस्त तक होगा.

सत्ता के गलियारों में गुपचुप चलने वाली चर्चा में सबसे ज्यादा जोर इस बात को लेकर है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार किस हद तक होने जा रहा है. ऐसी बातचीत के चलने की वजह भी है. अगले कुछ दिनों में मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार होने जा रहा है, ऐसा मानकर नीचे लिखी स्थिति पर विचार कीजिए.

पहली बात यह कि 2019 के चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार के पास अपनी कामयाबियों को सबके सामने रखने के लिए केवल 18 महीने बचे होंगे. साथ ही यह भी संभव है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार का यह आखिरी मौका साबित हो. प्रधानमंत्री मोदी के लिए जरूरी है कि वे कामकाज में फिसड्डी साबित हुए मंत्रियों की या तो छुट्टी करें या उनका विभाग बदलें तथा नए चेहरों को मौका दें.

मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार प्रधानमंत्री मोदी के लिए देश को यह बताने का मौका साबित हो सकता है कि काबिलियत और कामयाबियों की उन्हें फिक्र है. याद रहे कि बीते हफ्ते उन्होंने अपने मंत्रियों को खरी-खरी सुनाई, कहा कि मंत्रियों में आधिकारिक दौरे के क्रम में पांचसितारा होटलों में ठहरने और अपने मंत्रालय से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम से मिलने वाली सुख-सुविधा के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है.

दूसरी बात यह कि मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार उस घड़ी हो रहा होगा जब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह देश भर का अपना 100 दिनी दौरा तकरीबन पूरा कर चुके होंगे. इस दौरे में उनकी सूबों के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले पार्टी के साधारण कार्यकर्ताओं से भी भेंट हुई है. ऐसे में उन्हें ठीक-ठीक अंदाजा लग गया होगा कि मतदाता किस मुख्यमंत्री या सूबे से आने वाले किस केंद्रीय मंत्री के खिलाफ जा सकते हैं.

उन्होंने पार्टी के तमाम मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक भी की है ताकि सूबों में विकास-कार्य को गति देने तथा वहां मौजूद पार्टी के ढांचे को पार्टी के केंद्रीय ढाचें से तालमेल में रखने के लिहाज से आने वाले 18 महीनों के लिए स्पष्ट रणनीति तथा दिशा-निर्देश तय किए जा सकें. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कुछ मुख्यमंत्रियों को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है?

पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से शाह ने अपनी टीम में कोई फेरबदल नहीं किया है. इस सिलसिले में सवाल पूछने पर उन्होंने यही कहा है कि हर सूरत में आखिर यह मेरी टीम है.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि हालात अब बदल गए हैं. अब अमित शाह ने पार्टी के लिए 350 सीटों के जीतने का लक्ष्य तय कर दिया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी अनुभव और ऊर्जा के ख्याल से पार्टी को नया कलेवर देना होगा. ऐसे में बहुत संभव है कि कुछ केंद्रीय मंत्रियों को पार्टी के कार्य पर लगाया जाय जबकि पार्टी का काम देख रहे कुछ व्यक्तियों को सरकार में जगह दी जाय.

मोदी और शाह को अपने फैसलों से चकित करने में महारत हासिल है. ‘कहीं खुशी कहीं गम’ की मनोदशा पार्टी के प्रभावकारी दायरे में तनाव के हालात पैदा कर रही है.