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राहुल की जयपुर यात्रा: आपसी कलह से जूझती कांग्रेस में आएगा उत्साह ?

अभी पिछले हफ्ते तक राजस्थान की मीडिया में ये चर्चा जोरों पर थी कि चुनाव प्रचार का बिगुल फूंकने में कांग्रेस पीछे रह गई है.

Mahendra Saini

अभी पिछले हफ्ते तक राजस्थान की मीडिया में ये चर्चा जोरों पर थी कि चुनाव प्रचार का बिगुल फूंकने में कांग्रेस पीछे रह गई है. ये चर्चाएं इसलिए जोर मार रही थीं क्योंकि बीजेपी ने पिछले महीने 7 जुलाई को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जयपुर में रैली करवाकर इसकी औपचारिक शुरुआत कर दी थी. इसके बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी 4 अगस्त से अपनी राजस्थान गौरव यात्रा शुरू कर चुकी हैं. अमित शाह के दौरे भी नियमित अंतराल पर हो रहे हैं.

लेकिन कांग्रेस की ओर देखने पर नजारा कुछ और ही दिखता था. यहां इस बात की लड़ाई ही खत्म होने में नहीं आ रही थी कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा. राष्ट्रीय संगठन महासचिव अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बीच उस पद पर बैठने की रस्साकशी काफी तेज थी, जिस तक पहुंचने के लिए पहले चुनाव जीतना जरूरी है.


बहरहाल, अब लग रहा है कि कांग्रेस मुख्यमंत्री कौन बनेगा की बहस से बाहर आने की कोशिश शुरू कर चुकी है. 11 अगस्त को राहुल गांधी खुद जयपुर आ रहे हैं. कांग्रेस की कोशिश है कि राहुल के इस दौरे से कांग्रेसियों के बीच मुख्यमंत्री का मुद्दा खत्म हो और कार्यकर्ताओं में जोश आए. अब जबकि चुनाव में 3 महीने से भी कम वक्त बचा है. तब कांग्रेस बीजेपी से पिछड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकती.

राहुल करेंगे चुनावी रणनीति का शंखनाद

इसी समय मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजस्थान गौरव यात्रा का पहला चरण भी चल रहा है. मीडिया में इस वक्त ये यात्रा ही छाई हुई है. हालांकि कांग्रेस ने इसमें 'प्रायोजित भीड़' के आरोप लगाए हैं. लेकिन ऐसे समय में अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यक्रम करवाना महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

इस कार्यक्रम में राहुल गांधी आम लोगों से मिलने के लिए रोड शो करेंगे. लेकिन उनका पूरा फोकस संगठन की मजबूती पर रहने वाला है. संगठन में सचिन पायलट के उदय के बाद गुटबाजी ज्यादा मुखर तौर पर देखने को मिली है. ऐसे में इस पर अंकुश लगाना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत नजर आ रही है. इसी के मद्देनजर राहुल प्रदेश कांग्रेस के सदस्यों, जिला कांग्रेस कमेटियों के पदाधिकारियों, सेवादल जैसे अग्रिम संगठनों के पदाधिकारियों और सीनियर नेताओं के साथ मुलाकात कर फीडबैक लेंगे.

इस यात्रा में 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का मैसेज देने की भी पूरी कोशिश की गई है. राहुल का कार्यक्रम रामलीला मैदान में रखा गया है और इसके बाद वे गोविंद देव जी मंदिर के दर्शन करने जाएंगे. जयपुर की स्थापना के समय से ही यहां के शासकों ने खुद को गोविंद देव जी का दीवान कह कर ही शासन किया है. जयपुर वासी गोविंद देवजी को अपना आराध्य मानते हैं. यही वजह है कि जयपुर में खोया जनाधार पाने के लिए कांग्रेस ने गोविंद देवजी का सहारा लिया है.

वैसे, कांग्रेस की योजना राहुल को मोती डूंगरी गणेश मंदिर और चांदपोल के हनुमान मंदिर ले जाने की भी थी. लेकिन लगता है कि सुरक्षा कारणों से इसकी मंजूरी नहीं मिली. राजस्थान में मुस्लिम जनसंख्या 10 फीसदी से भी कम है. अधिकतर हिंदू जनसंख्या भी धर्म में गहरी आस्था रखती है. शायद इसीलिए बीजेपी का आधार सबसे पहले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान में बन पाया था. लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस ने बीजेपी को उसी के तीर से निशाना बनाने की योजना बना ली है. अशोक गहलोत इसका सफल प्रयोग गुजरात में कर ही चुके हैं.

कांग्रेस को राजस्थान में सबसे बड़ी उम्मीद

राजस्थान इस साल चुनाव होने वाले उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं. राजस्थान कांग्रेस की उम्मीदें तो इतनी ज्यादा हैं कि सचिन पायलट ने बीएसपी से गठबंधन तक से इनकार कर दिया है. पिछले कई चुनाव से बीएसपी यहां लगातार 4 से 6 फीसदी वोट हासिल कर रही है. 2008 में तो बीएसपी ने 6 सीटें भी जीती थी. इसके बावजूद पायलट उसके साथ गठबंधन नहीं चाहते.

असल में पायलट को आशंका है कि कम से कम राजस्थान में कांग्रेस को गठबंधन से फायदा होने के बजाय नुकसान ही ज्यादा होगा. अब तक जो भी सर्वे सामने आ रहे हैं, उनमें कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाती नजर आ रही है. ऐसे में पायलट नहीं चाहते कि कांग्रेस के हिस्से की सीटों में कटौती कर बीएसपी को दी जाएं. इससे बीएसपी को तीसरी ताकत बन कर उभरने का सुनहरा मौका मिलेगा. भविष्य में ये कांग्रेस के लिए उसी तरह घातक हो सकता है जैसे उत्तर प्रदेश में. यूपी में बीएसपी ने बीजेपी के साथ कुछएक मौकों पर गठबंधन किया था और इससे बीजेपी को नुकसान ही झेलना पड़ा था.

इस बात को मायावती भी अच्छे से समझती हैं. इसीलिए वे कांग्रेस के साथ उत्तर प्रदेश के बदले राजस्थान और मध्य प्रदेश में गठबंधन चाहती हैं. मायावती की पार्टी के साथ परेशानी ये भी है कि अभी तक बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले ज्यादातर उम्मीदवार कांग्रेस या बीजेपी के बागी ही रहे हैं. ये बागी भी जीत के बाद अक्सर अपने फायदे के लिए पार्टी तोड़ देते हैं. 2008 में बीएसपी के टिकट पर जीते उम्मीदवारों ने मायावती के आदेश को दरकिनार कर कांग्रेस को समर्थन देकर मंत्री पद हासिल कर लिया था.

राहुल के रूट पर तकरार कम नहीं

राहुल गांधी के इस कार्यक्रम को कांग्रेस अपने चुनावी अभियान की शुरुआत बता रही है. लेकिन बीते 2 दिन में रोड शो के रूट को लेकर कांग्रेस, एसपीजी और राजस्थान पुलिस के बीच टकराव भी कम नहीं हुआ. कांग्रेस ने जो रूट मैप पुलिस और एसपीजी को सौंपा था, उसपर थोड़ा ऐतराज जताया गया था. पुलिस के ऐतराज के बाद कांग्रेस भी अपने बनाए रूट को न बदलने को लेकर अड़ गई. पूरे 2 दिन तक इसपर गतिरोध बना रहा और बैठकों का दौर चलता रहा.

दरअसल, कांग्रेस चाहती थी कि सांगानेर एयरपोर्ट से राहुल गांधी को टोंक रोड होते हुए रामलीला मैदान तक लाया जाए. रास्ते में पड़ने वाले मोती डूंगरी गणेश मंदिर में भी राहुल के दर्शन का कार्यक्रम बनाया गया था. लेकिन एसपीजी ने टोंक रोड को कम सुरक्षित बताते हुए ऐतराज जताया. एसपीजी का तर्क था कि टोंक रोड के बजाय राहुल गांधी जवाहर लाल नेहरू मार्ग होते हुए रामलीला मैदान पहुंचें. एसपीजी ने इस रूट को ज्यादा सुरक्षित माना.

लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर ही एसपीजी ये सब कर रही है. प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का कहना है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकारी धन से अपनी चुनावी यात्रा निकाल रही हैं और राहुल गांधी को सुरक्षा के नाम पर रोका जा रहा है. जयपुर जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी दावा किया कि बीजेपी सरकार राहुल गांधी की लोकप्रियता से डर गई है. वो नहीं चाहती कि राहुल ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलें.

9 अगस्त की शाम को जाकर ये रूट गतिरोध टूट पाया. राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडेय, सचिन पायलट और खाचरियावास ने पुलिस-एसपीजी अधिकारियों के साथ बैठक की. इसके बाद कुछ फेरबदल के साथ पुलिस और एसपीजी ने रूट को मंजूरी दे दी. अब एयरपोर्ट से रोड शो करते हुए राहुल गांधी रामनिवास बाग के सामने रामलीला मैदान में रैली करेंगे. इसके बाद वे गोविंद देव जी मंदिर जाएंगे.

बहरहाल, कांग्रेस अब पूरी तरह चुनावी मोड में आने का प्रयास कर रही है. मुख्यमत्री पद को लेकर बयानबाजियों का दौर भी राहुल गांधी के दखल के बाद खत्म हो गया है. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने अशोक गहलोत, अविनाश पांडेय और सचिन पायलट के साथ एक बैठक की है. इसके बाद कांग्रेस ने साफ किया है कि मुख्यमंत्री का मुद्दा चुनाव बाद सुलझा लिया जाएगा और फिलहाल चुनाव बिना किसी चेहरे के ही लड़ा जाएगा. इस पूरी कवायद में फिलहाल तो गहलोत पर पायलट भारी पड़ते नजर आए हैं. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या कांग्रेस वास्तव में अपनी कलह खत्म कर बीजेपी को पटखनी देने में कामयाब हो पाएगी.