view all

पारिवारिक उत्तराधिकार के संकट को क्या देवी लाल की तरह हल कर पाएंगे ओमप्रकाश चौटाला?

देवी लाल बोफोर्स विवाद और वी.पी सिंह के उदय के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में अधिक समय देने लगे तो हरियाणा सरकार के कामकाज पर उसका विपरीत असर पड़ने लगा. फिर उन्होंने चौटाला को अपना उत्तराधिकारी बनाने की दिशा में सोचना और विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया

Surendra Kishore

तीस वर्षों के बाद एक बार फिर देवी लाल परिवार में आंतरिक कलह चरम पर है. वर्ष 1988 में ओमप्रकाश चौटाला और रणजीत सिंह यानी भाई-भाई के बीच के झगड़े को खुद देवी लाल ने खत्म किया था. इस बार यह जिम्मेदारी ओमप्रकाश चैटाला की है. देवी लाल की दूसरी पीढ़ी में तो आसानी से उत्तराधिकार का मामला तय हो गया था.

देवी लाल ने 1989 में खुद अपनी जगह ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया था. इस बार देखना है कि देवी लाल की चौथी पीढ़ी, देवी लाल परिवार की दूसरी पीढ़ी यानी ओम प्रकाश की बात सुनती है या फिर परिवार बिखरता है. पहले परिवार की खेतीबाड़ी का काम देख रहे रणजीत सिंह 1982 में राजनीति में आए. ओमप्रकाश चौटाला काफी पहले से राजनीति में थे.


1987 में विधानसभा का टिकट देते समय देवीलाल ने रणजीत से कहा था कि ‘यह टिकट मैं तुम्हें बेटे की हैसियत से नहीं बल्कि एक मजबूत प्रत्याशी के नाते दे रहा हूं.’

हालांकि देवी लाल ने रणजीत के क्षेत्र में प्रचार तक नहीं किया. फिर भी रणजीत जीत गए थे. उधर खुद देवी लाल ने यह घोषित कर रखा था कि ‘ओमप्रकाश से बेहतर संगठनकर्ता पूरे भारत में नहीं.’ जब देवी लाल मुख्यमंत्री थे तो इन दोनों बेटों में राजनीति और प्रशासन पर प्रभाव जमाने की होड़ सी मच गई. भला ऐसा क्यों न हो! इनमें से ही किसी एक को ‘ताऊ जी’ का उत्तराधिकारी बनना था.

पर जब इन दोनों का आपसी झगड़ा तेज हो गया तो देवी लाल ने ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा लोक दल (एचएलडी) के अध्यक्ष पद से हटा दिया और खुद अध्यक्ष बन गए. ऐसा करने को वो विवश हो गए थे.

ताऊ के नाम से मशहूर देवी लाल हरियाणा की राजनीति के सबसे कद्दावर नेताओं में से थे (फोटो: फेसबुक से साभार)

हरियाणा सरकार के कामकाज पर उसका विपरीत असर पड़ने लगा

चौटाला के गांव में देवी लाल के परिवार और उनकी बिरादरी के लोगों ने रणजीत से कहा था कि आप अपनी गतिविधियां धीमी करें. इसका असर भी कम ही दिनों तक रहा. इस बीच जब देवी लाल बोफोर्स विवाद और वी.पी सिंह के उदय के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में अधिक समय देने लगे तो हरियाणा सरकार के कामकाज पर उसका विपरीत असर पड़ने लगा. फिर उन्होंने चौटाला को अपना उत्तराधिकारी बनाने की दिशा में सोचना और विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया.

यह खबर फैलने के बाद कई मंत्रियों और विधायकों ने चौटाला को मुख्यमंत्री बनाये जाने का विरोध किया. दरअसल कई विधायकों और मंत्रियों को यह लगता था कि रणजीत सिंह मृदुभाषी और शालीन हैं जबकि चौटाला का व्यवहार मंत्रियों और विधायकों के साथ भी शालीनता का नहीं होता है. इसलिए चौटाला का मुख्यमंत्री बनना सही नहीं होगा. शक्ति प्रदर्शन के लिए रणजीत सिंह और ओमप्रकाश चौटाला की अलग-अलग जन सभाएं होने लगीं. दोनों की सभाओं में दोनों के गुटों से जुड़े मंत्री और विधायक शामिल होने लगे.

पर इस पर हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवी लाल ने हस्तक्षेप किया.

उन्होंने रणजीत की जनसभाओं में शामिल हो रहे मंत्रियों और विधायकों से कहा कि आप लोग ओमप्रकाश के नेतृत्व को जमाने में मदद करें. पर जब चौटाला को मुख्यमंत्री बनाने का अवसर आया तो देवी लाल के आशीर्वाद के बावजूद चौटाला निर्विरोघ नहीं बन सके. वैसे कोई बड़ा संकट भी खड़ा नहीं हुआ. यह सब देवी लाल के प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण संभव हुआ.

देवी लाल की पार्टी के 56 में 44 विधायकों ने ही चौटाला का साथ दिया था.

2 दिसंबर, 1989 को ओम प्रकाश चौटाला के हरियाणा का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद देवी लाल परिवार के उत्तराधिकार का संकट हमेशा के लिए हल हो गया. दरअसल जिस नेता के नाम पर वोट मिलते हैं, उनके वोटर

उसी को उत्ताधिकारी मान लेते हैं जिनको सुप्रीम नेता का आशीर्वाद मिल जाता है. डायनेस्टिक डेमाक्रेसी के इस दौर में आम तौर पर ऐसा ही पूरे देश में भी हो रहा है.

अभय चौटाला-अजय चौटाला

अभय सिंह चौटाला और उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच ठनी  

इन दिनों अभय सिंह चौटाला और उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला के बीच ठनी हुई है. दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय पार्टी के छात्र संगठन के प्रमुख थे. अब नहीं हैं.

दुष्यंत के साथ-साथ दिग्विजय को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है. ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र अभय हरियाणा विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं. उनके दूसरे बेटे अजय चैटाला ओम प्रकाश चौटाला के साथ जेल में हैं. दुष्यंत अजय के बेटे हैं. दुष्यंत कहते हैं कि मेरे पिता ने 40 साल तक पार्टी की सेवा की है.

खुद दुष्यंत सांसद हैं. पिछले 7 अक्टूबर को दुष्यंत के समर्थकों ने पार्टी रैली में अभय के भाषण के दौरान उपद्रव किया. अनुशासन समिति 25 अक्टूबर को दुष्यंत चैटाला के बारे में निर्णय करेगी. पहली बार लोगों को मालूम हुआ कि पार्टी में अनुशासन समिति भी है. उस समिति की कभी जरूरत ही नहीं पड़ती थी.

पार्टी के अन्य सदस्यों के लिए तो पार्टी प्रमुख की बातें ही काफी होती है. पर मामला परिवार का है, इसलिए समिति काम करेगी.