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‘पूर्वांचल महाकुंभ’ के जरिए क्या मनोज तिवारी दिल्ली बीजेपी में दबदबा बरकरार रख पाएंगे?

दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाली इस रैली को पूर्वांचल महाकुंभ का नाम दिया गया है, इसके जरिए दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी अपनी ताकत दिखाना चाह रहे हैं

Ravishankar Singh

दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को प्रदेश बीजेपी एक रैली आयोजित करने जा रही है. इस रैली को ‘पूर्वांचल महाकुंभ’ नाम दिया गया है. इस रैली के जरिए दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी अपनी ताकत दिखाना चाह रहे हैं. दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि इस रैली के जरिए बीजेपी दिल्ली में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बिगुल फूकेगी.

बीजेपी नेताओं के मुताबिक इस रैली में एक लाख लोगों के आने की संभावना है. इस रैली को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह संबोधित भी करेंगे. ऐसा माना जा रहा है कि दिल्ली के सभी बीजेपी सांसदों के साथ केंद्र में यूपी-बिहार से आने वाले कई केंद्रीय मंत्री और सांसद भी शिरकत करेंगे.


मनोज तिवारी ने रविवार को रैली के आयोजन को लेकर मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने पूर्वांचल के लोगों का शोषण करने के अलावा आजतक कुछ नहीं किया है. सीलिंग के नाम पर लाखों पूर्वांचलियों की रोजी-रोटी छिनी जा रही है. ज्यादातर पूर्वांचली दिल्ली के अनाधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं, जहां पर न सड़क है और न ही पीने के लए शुद्ध पानी है.

पिछले दिनों ही दिल्ली के गोकुलपुरी में सीलिंग का ताला तोड़ कर सुर्खियों में आए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी अब दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में हैं. तिवारी 23 सितंबर को रामलीला मैदान में पूर्वांचल महाकुंभ नाम से एक रैली करने जा रहे हैं. इस रैली को तिवारी के लिए भी काफी अहम माना जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि यह रैली दिल्ली बीजेपी में मनोज तिवारी के भविष्य को भी तय करेगी.

बेशक इस रैली को सफल बनाने की जिम्मेदारी पूर्वांचल मोर्चा के पास है, लेकिन मनोज तिवारी ने खुद इसे सफल बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है. मनोज तिवारी ने दिल्ली के कोने-कोने से लोगों को लाने के लिए पदाधिकारियों की जिम्मेदारी तय कर दी है. दिल्ली बीजेपी के सभी जिला प्रमुख से लेकर मंडल प्रमुख तक इस काम में पिछले कई दिनों से लगे हुए हैं. हर जिले से 30 से 40 बसों से लोगों को रामलीला मैदान लाने की जिम्मेदारी तय कर दी गई है.

पुराने नेताओं के सामने दबदबा दिखाने की चाहत

मनोज तिवारी इस रैली के जरिए अपने आपको दिल्ली में पूर्वांचलियों का एकमात्र नेता साबित करना चाह रहे हैं. इस रैली के जरिए मनोज तिवारी दिल्ली में बीजेपी के पुराने नेताओं के सामने अपना दबदबा दिखाना चाह रहे हैं. इसलिए माना जा रहा है कि इस रैली में गैरपूर्वांचलियों की भी बड़ी संख्या में पहुंचने की संभावना है.

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बीजेपी सूत्रों का कहना है कि रामलीला मैदान में एक लाख लोगों की भीड़ जुटाना बड़ी चुनौती है. अगर मनोज तिवारी ऐसा कर देते हैं तो वाकई में दिल्ली बीजेपी में उनका कद काफी बढ़ जाएगा. लेकिन, अगर रामलीला मैदान में अपेक्षा के अनुसार भीड़ नहीं जुटती है तो फिर उनके भविष्य को लेकर अटकलें लगनी भी शुरू हो जाएंगी.

पिछले कई दिनों से इस रैली को सफल बनाने के लिए दिल्ली बीजेपी कार्यालय में एक कॉल सेंटर भी बनाया गया है. दिल्ली में तकरीबन 1500 से भी ज्यादा बस प्रमुख नियुक्त किए गए हैं. दिल्ली की तीनों एमसीडी के चेयरमैन और पार्षदों की जिम्मेदारी तय कर दी गई है.

प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक से मनोज तिवारी को लगा धक्का

हालांकि, इससे उलट शनिवार को खत्म हुई बीजेपी की दो दिवसीय प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में मनोज तिवारी को काफी धक्का लगा. कार्यकारिणी के पहले दिन सीलिंग का मुद्दा छाया रहा. पहले दिन कार्यकारिणी की बैठक से दिल्ली के सात बीजेपी सांसदों में से चार सांसद नदारत रहे. मनोज तिवारी के अलावा सिर्फ मीनाक्षी लेखी और उदित राज ही इस बैठक में शामिल हुए.

हालांकि दिल्ली बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल मीटिंग में मौजूद जरूर हए, लेकिन वो सीलिंग को लेकर पार्टी नेताओं के रवैये से नाराज दिखे. विजय गोयल ने सीलिंग पर बीजेपी नेताओं की खिंचाई करते हुए कहा कि यहां बैठे तमाम नेता चर्चा और बहस तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन सीलिंग रुकवाने के लिए ठोस सुझाव या उपाय सामने लेकर नहीं आए हैं.

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कुलमिलाकर पार्टी के अंदर चल रहे गुटबाजी के बावजूद मनोज तिवारी रविवार को होने वाली रैली को लेकर काफी उत्सुक और आश्वस्त नजर आ रहे हैं. पिछले कई महीनों से मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने को लेकर मीडिया में अटकलें लगाई जा रहीं हैं. इसके बावजूद मनोज तिवारी का प्रदेश अध्यक्ष पद बरकरार है. हां, रविवार को होने वाली रैली में अगर उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली तो एक बार फिर से पार्टी के अंदर उनके विरोधियों को मोर्चा खोलने का मौका मिल जाएगा.