धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी- आपद काल परिखिअहिं चारी.'
रामचरित मानस की इस पंक्ति में कहा गया है कि धीरज, धर्म (कर्म या कर्तव्य), मित्र और स्त्री (पत्नी/ सहचरी) की परख विपदा की घड़ी में होती है.
बात सही है. शायद यही वजह रही जो इस चौपाई ने आम आदमी पार्टी की राजनीति में भी अपनी जगह बनायी है. आपको याद होगा साल 2014 में शाजिया इल्मी ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया तो उनपर तंज कसने के ख्याल से पहली बार कुमार विश्वास ने गोस्वामी तुलसीदास की इसी चौपाई को ट्वीट किया था.
आज मौका शाजिया को मिला है. उन्होंने तीन साल पुराने इस ट्वीट को फाइल से खोज निकाला और बिना वक्त गंवाये कुमार विश्वास के मुंह पर दे मारा. इसे कहते हैं कविता का जवाब कविता से.
कुमार विश्वास ने शाजिया इल्मी की हाजिरजवाबी की काट में कुछ नहीं कहा तो इसकी तीन वजहें हो सकती हैं:
पहला ये कि जाने-माने कवि कुमार विश्वास नहीं चाहते होंगे कि एक ऐसे वक्त में जब 'केजरीवाल से उनकी दोस्ती कमजोर' पड़ रही है तो लोग दोस्ती में पड़ती दरार को दिखाने के लिए रामचरित मानस की इस चौपाई का सहारा लें.
दूसरे, कुमार विश्वास को पक्का यकीन है कि अमानतुल्लाह खान के खिलाफ केजरीवाल कड़ी कार्रवाई करेंगे क्योंकि फिलहाल झुकने की जरूरत केजरीवाल को है.
तीसरी वजह है कुमार विश्वास का यह यकीन कि 'पार्टी के संयोजक को घेरे रहने वाले चमचों की फौज' के कुछ लोग 'भले ही मेरे खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं लेकिन पार्टी के संस्थापक सदस्य होने की मेरी छवि बदस्तूर कायम रहेगी.'
दरअसल हुआ भी कुछ ऐसा ही. बुधवार की शाम तक यह साफ हो गया कि कुमार विश्वास और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच मामला हाल-फिलहाल के लिए सुलझ गया है.
ओखला के विधायक अमानतुल्लाह को पार्टी से निलंबित कर दिया गया और कुमार विश्वास को जिम्मेदारी दी गई कि वे राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों को नजर में रखते हुए पार्टी के लिए कैडर तैयार करने का काम करें.
कुमार विश्वास ने इस नुक्ते पर खास जोर देते हुए कि पार्टी तो मैने कभी छोड़ी ही नहीं है. ये भी कहा कि, 'मैं अपनी पार्टी और अपने समर्थकों के साथ खड़ा हूं.' अब सच चाहे जो हो लेकिन मान-मनौवल और सुलह की इस सतही कोशिश के बावजूद आम आदमी पार्टी के भितरखाने माहौल शांत-सहज कतई नहीं है.
मुश्किल यह है कि केजरीवाल की शख्सियत ही परेशानी का सबब बन बैठी है. अचरज नहीं कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन का तकरीबन हर समर्थक दबी जबान से यही पूछता नजर आता है कि नेतृत्व में बदलाव किए बगैर समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?
इस सवाल का उत्तर किसी को नहीं पता. पल भर को भूल जाइए कि पार्टी में हाल-फिलहाल ताने-उलाहने का माहौल बना. इसकी जगह बस वह याद करें जो अन्ना हजारे ने पिछले हफ्ते कहा: 'केजरीवाल की कथनी और करनी में अन्तर है- इसी कारण लोगों का भरोसा खत्म हो रहा है. पार्टी के नेता आत्म-परीक्षण की बात कह रहे हैं लेकिन यह उन्हें पहले ही करना चाहिए था. अब इसका क्या मतलब रह गया है?
लोगों की नजरों से गिरे
आम आदमी पार्टी लोगों की नजरों से गिरती जा रही है तो इसके कारणों को खोजते हुए अन्ना हजारे ने यह भी याद दिलाया कि, 'दिल्ली के लिए काम करना था लेकिन उसने पंजाब और गोवा (में सत्ता पाने) के बारे में सोचा. उसे हड़बड़ी दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी. लेकिन उसने हड़बड़ी दिखायी और लोग समझ गये कि उसके दिमाग में देश या समाज नहीं बल्कि सत्ता हासिल करने की बात चल रही है.'
अकेले अन्ना की बात क्यों करें, केजरीवाल की तरफ अंगुली उठाने वाले और भी हैं. केजरीवाल के करीबी दोस्तों में से कुछ ने तकरीबन अन्ना जैसी ही बातें कही हैं. फर्स्टपोस्ट पर पिछले हफ्ते केजरीवाल के नाम मयंक गांधी की एक खुली चिट्ठी प्रकाशित हुई.
उस चिट्ठी में मयंक गांधी ने लिखा: 'प्रिय अरविन्द, मैंने देखा है कि तुम जो थे उसके एकदम ही उलट बन बैठे हो. क्या मैं यह उम्मीद करूं कि पंजाब, गोवा और अब दिल्ली में पूरी तरह नकार दिए जाने के बाद तुम आत्म-परीक्षण करोगे और एक बार फिर से पलटी मारते हुए वही पुराने अरविन्द केजरीवाल बनकर दिखाओगे?'
उन्होंने आगे लिखा- 'तुम बीजेपी या कांग्रेस बनने की अपनी चाहत से बाज आओ. हमलोग इनसे लड़ने आये थे उन जैसा बनना हमारा मकसद नहीं था. अपने असली एजेंडे पर अमल करो. वोट-बैंक जुटाने के ख्याल से कही गई अपनी बेवकूफाना बातों की वजह से जो साख और भरोसा तुमने गंवा दिया है हो सकता है वह अपने असली एजेंडे पर अमल करने से वापिस मिल जाए.'
'अपनी टीम के भरोसेमंद और आजाद-ख्याल लोगों के पास लौट चलो. फिलहाल अपनी राष्ट्रीय महत्वकांक्षाओं को भूलकर सिर्फ दिल्ली में राजकाज चलाने पर गौर करो क्योंकि प्रासंगिक बने रहने का अब बस यही एक मौका है. ड्रामेबाजी और दोषारोपण बंद करो. हमें अब भी सिद्धांतों की जरूरत है, अब भी भ्रष्टाचारियों से लड़ने की जरुरत है.'
अंत में उन्होंने कहा, 'राजनीति के अपराधीकरण से लड़ने की जरूरत अब भी बनी हुई है. जिन पार्टियों ने इन हथकंडों का सहारा लिया वे अब भी हमारे सामने खड़ी हैं. लेकिन इस लड़ाई के लिए आम आदमी पार्टी को अपने भीतर बदलाव करने की जरुरत है.'
हालांकि, केजरीवाल के ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वे अन्ना हजारे या मयंक गाधी की बातों पर कोई ध्यान देंगे. खैर, वे चाहें तो मिर्जा गालिब के नाम से दोहराये जाने वाले इस शेर से कुछ सबक ले सकते हैं:
'उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा..
धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा'
सवाल यही है कि क्या केजरीवाल कोई सबक लेंगे?