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यूपी चुनाव 2017: रुहेलखंड में पिछड़ी जातियों को लुभा पाएगी बीजेपी!

मुस्लिम बहुल रुहेलखंड इलाके में बीजेपी की कोशिश ध्रुवीकरण की रही है

Amitesh

बरेली जिले के नवाबगंज विधानसभा का अहमदाबाद गांव आजकल काफी चर्चा में है.

लखनऊ में किसी की भी सरकार बने लेकिन इस गांव में जश्न जरूर देखने को मिलेगा.  इस गांव में गंगवार यानी कुर्मी जाति के लोग ज्यादा रहते हैं.


दरअसल, कुर्मी बहुल नवाबगंज विधानसभा सीट से इस बार समाजवादी पार्टी, बीएसपी और बीजेपी तीनों ने कुर्मी जाति के उम्मीदवार को टिकट  दिया है. दिलचस्प है कि ये तीनों उम्मीदवार अहमदाबाद गांव के ही रहने वाले हैं.

भागवतजीशरण गंगवार 2002 से ही सपा के विधायक हैं. जबकि उसी गांव के वीरेंद्र सिंह गंगवार बीएसपी के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं. बीएसपी से हाल ही में बीजेपी में शामिल केशर सिंह गंगवार भी मैदान में हैं.

त्रिकोणीय मुकाबला 

पिछड़ी जाति के ही उम्मीदवार को तीनों बड़ी पार्टियों की तरफ से मैदान में उतारना इस बात का इशारा है कि बरेली के अलावा शाहजहांपुर, बदांयू और पीलीभीत समेत आस-पास के इलाकों में गंगवार समुदाय का कितना प्रभाव है.

बीजेपी ने बरेली की कुल 9 सीटों में से 2 कुर्मी, 2 लोध, एक मौर्य और एक दलित समेत पांच पिछड़ी जातियों को मैदान में उतारा है.

बरेली में 35 फीसदी मुस्लिम हैं जबकि, पिछड़ी जातियों की तादाद 50 फीसदी से ज्यादा है.

इन पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा तादाद गंगवार यानी कुर्मी जाति की है. इसके अलावा, मौर्या, लोध राजपूत, सैनी और कश्यप, जातियों का प्रभाव भी है.

बीजेपी की कोशिश इन पिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की है. इसके अलावा गैर-जाटव दलितों को अपने साथ लाकर बीजेपी इस पूरे इलाके में बेहतर परिणाम की आस लगाए बैठी है.

वोटों का बंटवारा तय 

नवाबगंज मे जितेन्द्र गंगवार तो खुलकर बीजेपी के समर्थन में बोल रहे हैं. हालांकि, उनका मानना है कि तीनों बड़ी पार्टियों की तरफ से गंगवार समुदाय के उम्मीदवार होने से वोटों का बंटवारा तय है.

बरेली में चाय की दुकान चलाने वाले कश्यप समाज के पूरन लाल कहते हैं कि यहां अखिलेश यादव की लड़ाई बीजेपी से ही है.

पूरनलाल कहते हैं कि एक तो मुस्लिम का अखिलेश को समर्थन, यादव का कुछ वोट और उम्मीदवार की जाति का कुछ वोट मिलकर एक बेहतर समीकरण बन जाता है. फिर भी बीजेपी के समर्थन की बात को वो खुलकर कहते हैं.

जातियों में बंटे वोटरों की बात तो खुलकर थोड़ी देर में सामने आ गई. अभी पूरनलाल से बात हो ही रही थी कि कश्यप समाज के ही किशनलाल ने मोदी-मोदी कहना शुरू कर दिया.

लेकिन,  इसी बीच बरेली शहर में ही डेयरी का कारोबार करने वाले रजिस्टर सिंह यादव और परमवीर सिंह यादव ने अखिलेश के विकास के काम को गिनाना शुरू कर दिया.

सबकी अपनी-अपनी पसंद 

अब ऐसी सूरत में बीजेपी के लिए मुश्किलें कम नहीं हो रहीं. बेहतर प्रदर्शन की कोशिश में बैठी बीजेपी इन गैर-यादव और गैर-जाटव जातियों की गोलबंदी में लगी है.

दिल्ली के मंत्रालय के बजाए बरेली में अपने घर पर ही जरूरी फाइल निपटा रहे हैं संतोष गंगवार

रुहेलखंड इलाके में बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभाला है बरेली से सांसद और मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार.

संतोष गंगवार आजकल दिल्ली के मंत्रालय के बजाए बरेली में अपने घर पर ही सुबह-सुबह कुछ जरूरी फाइल निपटाने में लगे हैं.

चाय की चुस्की लेते हुए गंगवार कहते हैं बरेली, शाहजहांपुर, बदांयू और पीलीभीत में अभी कुल 25 विधानसभा की सीटों में से बीजेपी के पास 5 सीटें हैं. लेकिन, इस बार यह आंकड़ा दोगुना होगा. उनका दावा है कि इस बार बीजेपी 25 में से आधी से ज्यादा सीटें जीतेगी.

इस बार तो अच्छा ही होगा  

मुस्कुराते हुए संतोष गंगवार कहते हैं कि जब पिछली बार इतनी खराब स्थिति में भी बरेली में बीजेपी की 3 सीटें मिली थी तो इस बार तो अच्छा ही होगा.

संतोष गंगवार 1989 से लगातार 2009 तक सांसद रहे. 2009 में एक बार हारने के बाद फिर इस बार लोकसभा पहुंचने में सफल रहे हैं. अब उनके उपर जिम्मेदारी है विधानसभा में इस प्रदर्शन को दोहराने की.

ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी बीजेपी 

मुस्लिम बहुल रुहेलखंड इलाके में बीजेपी की कोशिश भी ध्रुवीकरण की रही है.

बीजेपी भले ही विकास की बात कर रही है लेकिन, उसके रणनीतिकारों को लगता है कि हिंदू जातियों को साध कर केवल ध्रुवीकरण के जरिए ही रुहेलखंड इलाके में अपनी जमीन मजबूत की जा सकती है.

फिलहाल जाति और संप्रदाय की सियासत में विकास का दिखावे का पहिया फंसता नजर आ रहा है.