पंजाब का युवा मन कुछ नया चाहने की तलाश में क्या वोटों की परंपरा को दरकिनार करेगा? पंजाब चुनाव को लेकर इस बार राजनीति के गणितज्ञ आकलन में जुटे हुए हैं क्योंकि आम आदमी पार्टी के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो चुका है.
ये मुकाबला सिर्फ मैदान पर ही नहीं बल्कि लोगों की सोच में और लोगों की जुबान पर भी दिखाई दे रहा है. युवा वोटर बदलाव के लिये जाना जाता है और इसकी बानगी एक छात्रा के बेबाक बयान से बरस पड़ी.
उसकी उर्जा देखते ही बनती थी. बिना किसी झिझक और लाग लपेट के कह दिया- ‘इस बार झाड़ू ! इस बार चेंज (बदलाव) चाहिए. अकाली और कांग्रेस तो काफी समय से सरकार में रहे है, अब किसी नए को मौका मिलना चहिये.’
वो बीएड अंतिम वर्ष की छात्रा है और 4 फरवरी को पहली बार अपना वोट डालेगी. मोदी जी का भाषण उसे काफी प्रभावित करता है. वो ये भी मानती है कि मोदी जी काफी प्रभावशाली वक्ता हैं. लेकिन इसके बावजूद उसे अरविंद केजरीवाल में एक भरोसा दिखता है.
हालांकि आज तक उसने कभी अरविंद केजरीवाल का कोई भाषण नहीं सुना है. लेकिन वो अरविंद की अप्रोच से प्रभावित है. यही वजह है कि उसे भगवंत मान अच्छे नेता लगते हैं. लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं कि अगर पंजाब में आप की सरकार बने तो भगवंत मान उसके पसंदीदा सीएम होंगे. मान को वो सीएम पद के लिये काबिल नहीं मानती.
पंजाब के युवाओं में है 'आप' का क्रेज
दरअसल ये उलझन या सोच सिर्फ इस युवती की ही नहीं है. पंजाब के कई युवाओं से हम पिछले कुछ दिनों में चमकौर साहिब, आनंदपुर साहिब, नवांशहर और लुधियाना, पटियाला, अमृतसर आदि जिलों में मिले.
पंजाब के युवा वर्ग से आ रही ये बदलाव की ये आवाज क्या संकेत देने की कोशिश कर रही है? क्या वो पंजाब की सत्तारूढ़ पार्टी को बदलना चाहते है? या फिर उन्हें अब कांग्रेस-अकाली की नीतियों पर उतना भरोसा नहीं रहा जो उनकी उम्मीदों को एक उड़ान दे पाए?
जब कभी पंजाब आने का मौका मिले तो आप यहां के हरे-भरे खेत, चारों और पक्की सड़कें, गांव में ज्यादातर पक्के मकान और लोगों का दोस्ताना व्यवहार देखकर एक सुखद अनुभूति पाएंगे. साथ ही बचपन के उस सामान्य ज्ञान के सवाल की भी याद आएगी जिसमे कभी पंजाब संपन्नता के मामले में भारत के टॉप राज्यों में से एक गिना जाता था.
लेकिन अब फिजा और हालात बदल चुके हैं. कृषि दर और रोजगार में कमी तो साथ ही ड्रग्स की वजह से बॉलीवुड की बहुचर्चित फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ही अब पंजाब का चेहरा बनता जा रही है.
पंजाब पर बढ़ा है कर्ज
रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब का वित्तीय कर्ज बड़े राज्यों की श्रेणी में दूसरे नंबर पर है. माना जा रहा है कि इस साल ये पहले नंबर पर पहुंच जाएगा. कर्ज में बढ़ोतरी से विकास कार्यों पर होने वाले खर्चो में सीधा प्रभाव पड़ता है.
पिछले कुछ साल में विकास कार्यो पर कम खर्च का सीधा असर पंजाब की घटती मानव पूंजी और बिगड़ती श्रमिक उत्पादकता में साफ दिखती है.
‘सारी नौकरियां तो बाहर हैं. पंजाब में कोई नहीं रहना चाहता’ बिस्कुट का एक छोटा कारखाना चलाने वालें अधेढ़ उम्र के व्यक्ति नें हमें बताया. कुछ दूर खेत से निकलते हुए लड़कों पर हमारी नजर गई तो उसी कारखाने में मौजूद दूसरे आदमी ने तपाक से कहा ‘नौकरी नहीं होगी, तो लड़के नशा ही करेंगे!’
ड्रग्स के लिए ज्यादातर लोग बादल सरकार को दोषी मानते है. उनका कहना था की अगर सरकार चाहे तो ड्रग्स को रोक सकती है. लेकिन वो ऐसा नहीं चाहते, पुलिस वाले भी कुछ नहीं करते है.
ऐसा नहीं है कि अकाली सरकार में रोड या अस्पताल नहीं बने. समस्या इन्हीं रोड और अस्पतालों के ‘ठेकेदारी-करण’ यानी सरकारी सुविधाओं को बादल परिवार और सहयोगियों की जागीर बना देने से पैदा हुई है.
शायद इसीलिए कुछ अन्य राज्यों से बेहतर होने के बावजूद पंजाब में बदलाव की आवाज उठ रही है. सवाल अब यह है की इस बदलाव की आवाज से किस पार्टी को सफलता मिलेगी?
‘2014 के लोकसभा चुनाव में 4 लोक सभा सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने लिए उम्मीदें लगा रखी है. वहीं कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह 10 साल की एंटी इंकंबेंसी पर वोट पर यह चुनाव जीतना चाहते हैं. लेकिन यह बदलाव की आवाज कांग्रेस और आप में बंट जाने की वजह से एक बार फिर अकालियों को सत्ता दिला सकती है.’ ये संदेह आनंदपुर साहब में एक युवा के मन में था.
निराधार नहीं है संदेह
उस युवा का ये संदेह निराधार भी नहीं है क्योंकि आंकड़ो के मुताबिक अकाली दल ने 2012 में 35% और 2014 में 26% वोट बटोरे. अकाली दल का एक निश्चित वोट बेस है (ग्रामीण इलाकों में रहने वाले, किसान जिनको खेती के लिए मुफ्त बिजली और पानी दी जा रही है और पंथ के नाम पर) जो उन्हें हारने वाले चुनाव में भी लगभग मिल जाता है.
वहीं कांग्रेस नें 2012 में 40% और 2014 में 33% वोट पाए ओर आप का वोट शेयर 2014 में 24% था. लेकिन क्या अकाली इतनी अच्छी स्थिति में है कि वो फिर से सत्ता में आ सकते है? माना जा रहा है कि अकाली दल के लिए ये लड़ाई काफी मुश्किल हो चुकी है.
अब मामला कांग्रेस और आप के बीच का है. इनमे से कौन? ये इस बात पर निर्भर है की कौन अपने चुनाव प्रचार से लोगों के बीच उम्मीद जगा सकेगा. इन दोनों पार्टियों की अपनी मजबूती और कमजोरियां हैं.
आम आदमी पार्टी के साथ सकारात्मक बात ये है की वो सिर्फ युवाओं की ही नहीं बल्कि पंजाब के एक बड़े वर्ग के बीच बदलाव की उम्मीद बन बैठी है लेकिन उनकी कमजोरी ये है की उनके पास मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं है.
अरविंद केजरीवाल लोगों के बीच बहुत पॉपुलर हैं. लेकिन ज्यादातर लोग पंजाब के ही किसी को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. इसके ठीक विपरीत कांग्रेस के पास प्रभावशाली चेहरा है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस एक 74 वर्षीय नेता की छवि के भरोसे पंजाब के लोगों खासकर युवाओं के बीच नया भरोसा जगा पाएगी?