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चुनाव आयोग की फटकार से केजरीवाल सबक सीखेंगे?

केजरीवाल की राजनीति आरोपों से शुरु होकर आरोपों पर ही खत्म होती है

Suresh Bafna

देश में भ्रष्टाचार से मुक्त नई राजनीति का दावा करनेवाले आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अब चुनाव आयोग ने ही कटघरे में खड़ा कर दिया है.

चुनाव आयोग के अनुसार केजरीवाल ने निर्धारित चुनाव आचरण संहिता का उल्लंघन किया है. गोवा में एक जनसभा में केजरीवाल ने लोगों से कहा था कि कांग्रेस और भाजपा वाले यदि पैसा दे तो ले लेना, लेकिन वोट आम आदमी पार्टी को ही देना.


केजरीवाल ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान इस तरह की बात कही थी. केजरीवाल ने इस तरह की टिप्पणी करके लोगों को इस बात के लिए सीधे-सीधे प्रेरित किया है कि वे चुनावी रिश्वत स्वीकार करें.

केजरीवाल ने चुनाव आयोग को चुनौती देने की हिमाकत की है

चुनाव आयोग ने इस संदर्भ में केजरीवाल द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया. केजरीवाल का कहना है कि चुनाव आयोग का फैसला सही नहीं है और वे अदालत में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देंगे.

चुनाव आयोग के फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात करके केजरीवाल इस संवैधानिक संस्था की प्रतिष्ठा और गरिमा को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. केजरीवाल को यह पता होना चाहिए कि जब चुनाव की प्रक्रिया शुरु हो जाती है तब चुनाव आयोग के फैसले पर न्यायिक हस्तक्षेप संभव नहीं है.

संविधान में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव करवाने की पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग को दी गई है और इस संस्‍था को अर्ध-न्यायिक अधिकार भी दिए गए हैं. यदि चुनाव आयोग चाहें तो केजरीवाल पर लगे आरोप के संदर्भ में उन्हें चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने से भी रोक सकता है.

दुखद बात यह है कि केजरीवाल की राजनीति आरोपों से शुरु होकर आरोपों पर ही खत्म होती है. वे चुनाव आयोग को भी भाजपा या कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल समझने की गलती कर रहे हैं.

केजरीवाल आचार संहिता का खुला उल्लंघन कर रहे हैं 

गोवा में केजरीवाल द्वारा की गई टिप्पणी का अर्थ यह है कि कांग्रेस व भाजपा मतदाताअों को धन देकर वोट पाने की कोशिश कर रहे हैं. बिना किसी प्रमाण के केजरीवाल अपने विरोधी दल पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं.

दूसरी तरफ जनता को पैसा लेने का सुझाव देकर चुनाव आचरण संहिता का सीधे-सीधे उल्लंघन कर रहे हैं. वे यह मानकर भी चल रहे हैं कि जनता भी भ्रष्ट है.

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आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की दिक्कत यह है कि वे खुद को ईमानदारी का बादशाह मानते हैं और सभी विपक्षी दलों के नेताअों को बेईमानों की श्रेणी में रखते हैं. किसी पर भी ऊल-जुलूल आरोप लगाना उनके स्वभाव का हिस्सा बन गया है.

उनका स्थायी भाव यह बन गया है कि मैं ईमानदार हूं और शेष सभी भ्रष्ट है. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी के वे सदस्य भी भ्रष्ट हैं, जो उनकी राजनीति को अब चुनौती दे रहे हैं.

लोकतंत्र का रेफरी है चुनाव आयोग

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने पार्कों में लगे हाथियों को ढंकने के निर्देश दिए थे, जिसका मायावती सरकार ने पालन किया था. (तस्वीर: रायटर्स)

चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का रेफरी हैं. केजरीवाल को किक्रेट के खेल से सबक लेना चाहिए कि जब कोई खिलाड़ी रेफरी के साथ बदतमीजी करता है तो उसे अगले कुछ खेलों से बाहर कर दिया जाता है.

रेफरी को चुनौती देना गंभीर अपराध माना जाता है. रेफरी ने केजरीवाल को जब रेड कार्ड दिखाया तो वे जवाब में चुनाव आयोग को ही रेड कार्ड दिखाने की भद्दी कोशिश कर रहे हैं.

चुनाव आयोग की निष्पक्षता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि जब उसने केंद्र सरकार को हाल ही में निर्देश दिया था कि जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, वहां लगे विज्ञापनों व होर्डिंग पर से प्रधानंमंत्री की तस्वीर हटा दी जाए.

उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने पार्कों में लगे हाथियों को ढंकने के निर्देश दिए थे, जिसका मायावती सरकार ने पालन किया था.

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