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देश के 13वें नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू आखिर क्यों हैं सबके खास?

उपराष्ट्रपति चुनाव में वेंकैया नायडू ने यूपीए के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी को भारी मतों के अंतर से हराया है

Kinshuk Praval

उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में जीत हासिल करने वाले वेंकैया नायडू से बीते मई में जब पत्रकारों ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा था कि 'न मैं राष्ट्रपति बनना चाहता हूं और न उपराष्ट्रपति बनना चाहता हूं...मैं 'उषापति' बनकर खुश हूं.' वेंकैया ने तब फिर सबसे सामने दोहराया था कि उन्हें किसी भी पद की महत्वाकांक्षा नहीं है.

सत्ता के केंद्र में पार्टी रहे या न रहे लेकिन वेंकैया हर दौर में पार्टी के केंद्र में जरूर रहे हैं. वेंकैया के सियासी सफर को देखें तो पाएंगे कि पद और प्रतिष्ठा उनके पास अनायास ही पहुंचते आए हैं. वाजपेयी की सरकार हो या फिर केंद्र की मोदी सरकार हो वेंकैया अपनी योग्यता से हमेशा ही सत्ता के शिखर पर रहे.


वेंकैया की वाकपटुता और रिश्तों में सामंजस्य बिठाने की विलक्षण प्रतिभा ही उन्हें वाजपेयी-आडवाणी के दौर में शीर्ष नेताओं के करीब रखा करती थी. वेंकैया मौजूदा मोदी सरकार में भी सबके पसंदीदा थे. एनडीए ने राष्ट्रपति के उम्मीदवार के लिये अगर उत्तर से रामनाथ कोविंद का नाम चुना तो दक्षिण से सिर्फ एक ही नाम सुना. वो नाम वेंकैया नायडू का रहा जिस पर सभी ने सर्वसम्मति से अपनी मुहर लगाई.

वेंकैया नायडू को राज्यसभा का लंबा अनुभव है. वो 1998 से लगातार राज्यसभा के सदस्य है. उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और सदन की कार्रवाई में अहम भूमिका निभाते हैं. उपराष्ट्रपति के पास ही राज्यसभा के संचालन की भी जिम्मेदारी होती है. ऐसे में वेंकैया नायडू को बीजेपी की तरफ से इस पद के लिए सबसे सही पसंद माना गया.

वेंकैया नायडू ने अब तक के अपने सियासी सफर में कई बड़ी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया है. साल 2004 में एनडीए की हार के बाद एकबारगी लगा कि वेंकैया का सितारा डूबने वाला है लेकिन उनकी राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा. पहले वो बीजेपी अध्यक्ष बने तो साल 2005 में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने. ये वेंकैया नायडू के सियासी उत्थान का छोटा सा उदाहरण भर है कि वो कभी वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे तो वर्तमान के मोदी सरकार में भी उन्होंने शहरी विकास मंत्री के तौर पर काम किया. इसके अलावा कई दूसरे मंत्रालयों का भी भार उनके पास रहा.

वेंकैया नायडू ने राजनीति की शुरूआत में अपनी पहचान आंदोलनकारी नेता के रूप में बनाई थी. नेल्लोर के आंदोलन में हिस्सा लिया और विजयवाड़ा के आंदोलन का नेतृत्व किया. 1974 में वे आंध्र विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए. सत्तर के दशक में जेपी आंदोलन से जुड़े. आपातकाल के बाद ही उनका जुड़ाव जनता जनता पार्टी से हो गया. 1977 से 1980 तक जनता पार्टी की युवा शाखा के अध्यक्ष रहे. बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. 1993 से 2000 तक वेंकैया बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे. पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए साल 2002 में उन्हें बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई.

वेंकैया बीजेपी के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक माने जाते हैं. तभी कभी वो वाजपेयी-आडवाणी के बेहद करीबी रहे तो वर्तमान में वो मोदी-शाह की पसंद हैं. उनकी कार्यशैली की ऊर्जा के चलते ही उन्हें केंद्र सरकार ने कई संसदीय समितियों का सदस्य भी बनाया था.

बीजेपी ने वेंकैया के लंबे संसदीय अनुभवों और राजनीतिक दूरदर्शिता को देखते हुए उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था. इसकी एक दूसरी राजनीतिक वजह भी है. दक्षिण भारत में वेंकैया की पहचान कद्दावर नेता के रूप में है. बीजेपी की कोशिश दक्षिण भारत में अपना आधार बढ़ाने की है. अब जबकि, वेंकैया नायडू उपराष्ट्रपति चुन लिए गए हैं बीजेपी को लगता है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में उसकी पैठ बढ़ेगी.

वेंकैया नायडू बीजेपी के लिये हर लिहाज से सबसे मुफीद नाम और उम्मीदवार साबित हुए. जिनके नाम पर सहमति बनाने के लिये पार्टी को ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ी थी.