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CM रेस: टीएस बाबा की साफ-सुथरी छवि और सरल स्वभाव कितना काम आएगा

कुलमिलाकर टीएस सिंह देव की साफ सुथरी छवि और अनुभव पर सबकी नजर है.

Ravishankar Singh

देश के तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की जीत का जश्न अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि मुख्यमंत्रियों के नामों पर महाभारत शुरू हो गई है. बृहस्पतिवार शाम तक कांग्रेस आलाकमान राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्रियों के नामों पर सहमति नहीं बना सका. राजस्थान में जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट में कोई भी मुख्यमंत्री पद से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं तो वहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ को लेकर स्थिति साफ नजर नहीं आ रही है. कमलनाथ गांधी परिवार की पसंद और नापसंद के फेर में फंसते नजर आ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी चाहती हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया एमपी के सीएम बनें. इसी का नतीजा है कि राहुल गांधी के द्वारा कमलनाथ का नाम फाइनल कर देने के बावजूद उनके नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं हो सकी.

अमूमन यही हाल छत्तीसगढ़ में भी है. छत्तीसगढ़ की स्थिति भी अभी तक पूरी तरह से साफ होती नजर नहीं आ रही है. एक तरफ कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टी एस सिंह देव राज्य के 42 विधायकों के पसंद बताए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी का वह एलान याद आ रहा है, जिसमें चुनाव पूर्व कहा गया था कि अगर राज्य में कांग्रेस जीतती है तो किसी पिछड़े को ही राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा.


वाकई में तीनों राज्यों में कांग्रेस के अंदर सीएम के नामों को लेकर जिस तरह से बवाल मचा हुआ है उसमें विपक्षी पार्टियों को कमेंट का मौका मिल गया है. कांग्रेस पार्टी अभी तक अनुभव और युवा जोश में किसको तरजीह दे इस पर फैसला नहीं कर पाई है.

जानकारों का मानना है कि सीएम पदों के नामों की घोषणा में देरी के लिए कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी आलाकमान जिम्मेदार है. कांग्रेस पार्टी साल 2019 लोकसभा चुनाव को देखते हुए तीनों राज्यों में अनुभवी मुख्यमंत्री की जरूरत है. अगर बात छत्तीसगढ़ की करें तो इसमें टी एस सिंह देव सबसे ज्यादा फिट बैठते हैं.

लेकिन, कांग्रेस पार्टी की मजबूरी यह है कि टीएस सिंह देव अगड़ी जाति से आते हैं. जानकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में टी एस सिंह देव कांग्रेस पार्टी को कई नजरिए से फायदा पहुंचा सकते हैं. पहला, राज्य की राजनीति में अनुभवी रमन सिंह के मुकाबले टी एस सिंह देव वजनदार आवाज बन कर उभरे हैं. दूसरा, सरगुजा स्टेट के पूर्व राजा के पूत्र की हैसियत से आदिवासियों में भी अच्छी पैठ बना सकते हैं. इस लिहाज से नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का अभियान चला कर नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ सकते हैं. तीसरा, टी एस सिंह देव एक नौकरशाह रहे हैं इसलिए विकास के मॉडल को भी अच्छी तरह से समझ कर सुदूर आदिवासी इलाकों में पहुंचा सकते हैं.

साथ ही कांग्रेस पार्टी के लिए जो सबसे अहम चीज है फंड मैनेजमेंट का वह भी टी एस सिंह देव कर सकते हैं. कांग्रेस को राज्य में एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए बेहतर फंड मैनेजमेंट भी कर सके. इस लिहाज से टी एस सिंह देव पार्टी के दूसरे नेता भूपेश बघेल और ताम्र ध्वज साहू से ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं.

बता दें कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी को 90 सीटों में से 68 सीटों पर जीत मिली है. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि टी एस सिंह देव के पक्ष में 42 विधायक खुलकर सामने आ गए हैं. लेकिन कांग्रेस पार्टी अगड़ों-पिछड़ों के बीच में फंस गई है. छत्तीसगढ़ एक आदिवासी राज्य है. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी का 9 प्रतिशत पिछड़ा वोट अपने पाले में किया है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी को डर है कि एक अगड़ी जाति के व्यक्ति को अगर सीएम बनाते हैं तो पिछड़ा वोट साल 2019 लोकसभा चुनाव में फिर से छिटक कर बीजेपी के पाले में न चला जाए.

बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने चुनाव पूर्व किसी को भी मुख्यमंत्री चेहरा नहीं बनाया था. ऐसे में बार-बार सवाल उठ रहा है कि रमन सिंह के बाद छत्तीसगढ़ का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? वैसे तो सीएम की रेस में तीन नाम चल रहे हैं. भूपेश बघेल, टी एस सिंह देव और ताम्रध्वज साहु.

अगर बात भूपेश बघेल की करें तो वर्तमान में वह कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इसी साल सीडी कांड के बाद बघेल का नाम सुर्खियों में आया था. लेकिन, पार्टी के लिए परेशानी यह है कि बघेल पर सीडी कांड की जांच चल रही है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगी जिससे बाद में उसको परेशानी झेलनी पड़े.

ताम्रध्वज साहु की बात करें तो वह साहू समाज से आते हैं. राज्य में साहू समाज की लगभग 16 प्रतिशत वोट है. साहू समाज के बारे में कहा जाता रहा है कि यह बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक रहा है. ऐसे में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने अंदरखाने कहा था कि अगर इस बार राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो साहू समाज का ही कोई व्यक्ति सीएम की कुर्सी पर बैठेगा. इस बार भी राज्य के 40 विधानसभा सीटों पर साहू समाज ने निर्णयाक भूमिका अदा की है. ऐसे में कहा जा रहा है कि ताम्रध्वज साहू की दावेदारी भी काफी मजबूत है.

लेकिन, अगर बघेल सीएम नहीं बनते हैं तो कांग्रेस पार्टी साहू समाज के किसी व्यक्ति को भी सीएम बनाने का खतरा मोल नहीं ले सकता है. राज्य में बघेल जिस जाति से आते हैं उस जाति के 40 प्रतिशत वोटर हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी बीच का रास्ता निकाल सकती है. इस नजरिए से टी एस सिंह देव की दावेदारी काफी मजबूत दिखाई पड़ रही है.

टीएस सिंह देव अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार चुन कर आ रहे हैं. राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पिछले पांच सालों से रमन सिंह को लगातार कठघरे में खड़ा करते नजर आ रहे हैं. सरगुजा के शाही परिवार से आने के कारण बस्तर संभाग के कई विधानसभा सीटों पर उनका ठीकठाक दबदबा है.

पूरे राज्य में घूम-घूम कर खासकर किसानों की मांगों को कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में डाला. कांग्रेस पार्टी के कई जीते विधायकों का भी मानना है कि किसानों के लिए उन्होंने जो वादे किए थे उसी के कारण जीत मिली है. इसी का परिणाम है कि कांग्रेस के 42 से भी ज्यादा नवनिर्वाचित विधायकों ने खुल कर टीएस सिंह देव के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया है.

टीएस सिंह देव के बारे में एक और जो महत्वपूर्ण पक्ष सामने आ रहा है वह है उनका सरल स्वभाव. सरल स्वभाव के कारण भी वह सबकी पसंद हैं. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि सिंह देव कांग्रेसियों को एकजुट रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

कुलमिलाकर टीएस सिंह देव की साफ सुथरी छवि और अनुभव पर सबकी नजर है. महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल और नंद कुमार पटेल जैसे बड़े नेताओं के नक्सली हमले में मारे जाने के बाद सिंहदेव ने राज्य में कांग्रेस को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. ऐसे में माना जा रहा है कि टीएस सिंह देव को अगर पार्टी सीएम के तौर पर भेजती है तो राज्य की राजनीति के साथ कांग्रेस की राजनीति के लिए भी यह फैसला सही साबित होगा.