view all

पार्टी लाइन से क्यों दूर जा रहे हैं शिवराज सिंह चौहान?

लगभग डेढ़ दशक तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान लगातार पार्टी लाइन से बाहर जाकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगे हैं

Dinesh Gupta

13 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान लगातार पार्टी लाइन से बाहर जाकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगे हुए हैं. शिवराज सिंह चौहान की गतिविधियां कई बीजेपी नेताओं को रास नहीं आ रहीं हैं. पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान अपनी गतिविधियों से यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि राज्य में बीजेपी का नेतृत्व अभी भी उनके ही हाथ में है.

शिवराज को उनकी मर्जी के खिलाफ बनाया है राष्ट्रीय उपाध्यक्ष


विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 109 सीटें मिलीं हैं. कांग्रेस के खाते में 114 सीटें आईं. दो तिहाई बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. कांग्रेस को बीजेपी से सिर्फ पांच सीटें ही ज्यादा मिलीं. इतने कम अंतर की हार को शिवराज सिंह चौहान अपनी लोकप्रियता की हार नहीं मानते हैं. वे अपनी लोकप्रियता पार्टी को मिले वोटों के प्रतिशत के आधार पर जताने से भी पीछे नहीं हटते हैं.

चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं. बीजेपी को कुल 41.02 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट मिले हैं. शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि बीजेपी को मिले वोट यह बताने के लिए काफी हैं कि जनता उनकी सरकार की नीतियों से नाराज नहीं थी.

शिवराज सिंह चौहान चुनाव में मिली हार को हजम नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें अभी भी लगता है कि कांग्रेसी नेताओं के अंतर्विरोध के चलते कभी भी सरकार गिर सकती है. इसी आस में चुनाव परिणाम के कुछ दिन बाद ही चौहान ने साफ तौर पर कह दिया कि उनका मूड केंद्र की राजनीति में जाने का नहीं है. राज्य की राजनीति में ही रहने की इच्छा भी उन्होंने जताई थी. उनकी इस इच्छा के विपरीत पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया

चौहान के अलावा राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया. पार्टी ने इन नियुक्तियों के जरिए तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की अगली भूमिका का स्पष्ट संकेत दे दिया. हालांकि अब तक केंद्रीय नेतृत्व ने इन तीनों उपाध्यक्षों को कोई काम नहीं सौंपा है. संभावना प्रकट की जा रही है कि अगले कुछ दिनों में अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी इन तीनों नेताओं को सौंपी जाएगी.

मध्यप्रदेश में नए नेतृत्व को मौका देने की कवायद

शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लगातार चुनाव में मिलीं सफलताओं के बाद मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पूरी तरह से उनके ही ईदगिर्द सिमटती चली गई. पार्टी के कई दिग्गज नेता पिछले 13 साल में हासिए पर डाल दिए गए थे. फैसले सामूहिक राय के बजाए शिवराज सिंह चौहान की पसंद-नापसंद के आधार पर लिए जाने लगे थे. संगठन भी पूरी तरह से शिवराज सिंह चौहान पर ही निर्भर नजर आता था.

जबकि मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी का संगठन देश में सबसे मजबूत संगठन माना जाता रहा है. विधानसभा चुनाव में इस बार संगठन कहीं भी सक्रिय दिखाई नहीं दिया. पार्टी अध्यक्ष राकेश सिंह भी अपनी भूमिका को स्वतंत्र रूप से निर्वहन करने में असहज महसूस करते देखे गए. उनकी असहजता अभी भी दिखाई दे रही है.

राकेश सिंह को चुनाव से ठीक पहले नंद कुमार चौहान के स्थान पर अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. राकेश सिंह जबलपुर से सांसद हैं. चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद राकेश सिंह ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश भी की थी. उनकी इस पेशकश को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अस्वीकार कर दिया. दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान यह कोशिश करते नजर आए कि उनके करीबी नरोत्तम मिश्रा को प्रतिपक्ष का नेता बना दिया जाए.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नरोत्तम मिश्रा

केंद्रीय नेतृत्व को भरोसे में लिए बगैर नेता चुनने के लिए विधायक दल की बैठक बुलाने की कोशिश भी शिवराज सिंह चौहान ने की थी. सूत्रों ने बताया कि उनकी इस कोशिश को राकेश सिंह ने केंद्रीय नेतृत्व की मदद से नाकाम कर दिया. शिवराज सिंह चौहान ने एक कोशिश यात्रा निकालने की भी की. उन्होंने संगठन को भरोसे में लिए बगैर आभार यात्रा निकालने की सार्वजनिक घोषणा भी कर दी. पार्टी ने उनकी इस यात्रा को भी मंजूरी नहीं दी.

बारी जब विधायक दल का नेता चुनने की आई तो पार्टी ने सबसे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव के नाम का फैसला सुना दिया. गोपाल भार्गव को शिवराज सिंह चौहान पसंद नहीं करते हैं. विधानसभा सत्र के दौरान भी नेतृत्व को लेकर शिवराज सिंह चौहान की बैचेनी साफ देखी गई. एक मौका तो ऐसा भी आया कि पूर्व मुख्यमंत्री चौहान प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी पर बैठ गए.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यदि चौहान के समर्थक कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का ठीक से अध्ययन करते तो बीजेपी को परंपरा के अनुसार विधानसभा उपाध्यक्ष का पद मिल सकता था. विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी का उम्मीदवार उतारे जाने के फैसले के कारण ही बीजेपी को उपाध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा.

आडवाणी के फोटो के जरिए जाहिर की नाराजगी

पिछले चार साल में ऐसे कई मौके आए जब शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के लिए भगवान का वरदान बताया. राज्य की राजनीति से केंद्र की राजनीति में शिफ्ट करने के फैसले पर शिवराज सिंह चौहान ने अपनी नाराजगी का इजहार पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के फोटो के जरिए किया.

मकर संक्रांति के मौके पर राज्य की जनता को ट्वीटर पर एक वीडियो के जरिए शुभकामना संदेश शिवराज सिंह चौहान ने जारी किया. इस वीडियो संदेश में शिवराज सिंह चौहान के पीछे पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का फोटो रखा हुआ खास तौर पर दिखाया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो इस वीडियो में कहीं नजर नहीं आ रहा था.

आडवाणी के मार्गदर्शक मंडल में रखे जाने के बाद से ही शिवराज सिंह चौहान ने भी उनसे दूरी बनाकर रखी हुई थी. जबकि आडवाणी अकेले वो नेता थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के विकल्प के तौर पर शिवराज सिंह चौहान के नाम को आगे बढ़ाया था.

किसानों के जरिए अपनी लोकप्रियता का भी प्रदर्शन

राज्य बीजेपी की इकाई में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोई भूमिका अभी नहीं है. इस सच को जानने के बाद भी उन्होंने एलान कर दिया कि वे नियमित तौर पर बीजेपी कार्यालय में जाकर बैठेंगे और वहीं आमजन और कार्यकर्ताओं से मिलेंगे. पार्टी ने उनके इस प्रयास को भी महत्व नहीं दिया. शिवराज सिंह चौहान अपनी इस कोशिश के जरिए यह संदेश देना चाहते थे कि वे चुनाव हारने के बाद भी राज्य में लोकप्रिय हैं और लोग उनसे मिलने ही पार्टी कार्यालय आ रहे हैं.

पार्टी मुख्यालय का रुख भांपकर अब शिवराज सिंह चौहान जनता के बीच जाकर अपनी लोकप्रियता का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले दिनों वो राजगढ़ जिले में दौरे पर गए. रात डेढ़ बजे तक कार्यक्रम करते रहे. किसानों के बीच भी गए. उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि राजगढ़ जिले में पाले के कारण किसानों की फसल खराब हो गई है लेकिन, किसी सरकारी अफसर को सुध लेने की फुर्सत नहीं है.

इसी तरह मंदसौर में नगर पालिका अध्यक्ष की हत्या की खबर लगते ही शिवराज सिंह चौहान ने आनन-फानन में वहां जाने की घोषणा कर दी. मुख्यमंत्री कमलनाथ को मामले की जांच के लिए पत्र भी लिख दिया. जबकि हत्या करने वाला बीजेपी का ही कार्यकर्ता निकला.