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शिवराज की मदद के लिए संघ को मैदान में क्यों उतरना पड़ रहा है?

विधानसभा के चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को कमजोर पड़ता देख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता अगले कुछ दिनों में मैदान संभाल लेंगे.

Dinesh Gupta

विधानसभा के चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को कमजोर पड़ता देख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता अगले कुछ दिनों में मैदान संभाल लेंगे. संघ के यह कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र की सरकार और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रहीं जन कल्याणकारी योजनाओं की ब्रांडिंग करने के लिए घर-घर जाएंगे.

पहली बार ऐसा हो रहा है कि संघ के कार्यकर्ता खुले तौर पर भारतीय जनता पार्टी सरकार के कार्यक्रमों का प्रचार करने उतर रहे हैं. राज्य में नवंबर में विधानसभा के आम चुनाव हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पास चुनाव को लेकर जो फीड बैक है, उसमें स्थितियां बीजेपी के लिए चुनौती भरी बताई जा रही हैं. संघ और बीजेपी के नेताओं की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हुई बैठक में संघ के कार्यकर्ताओं को भी योजनाओं के प्रचार के लिए उतारने की रणनीति बनाई गई.


संघ नहीं मानता कि बीजेपी के लिए चुनाव आसान है

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार पंद्रह साल पूरे करने जा रही है. ऐसा पहली बार है कि राज्य में बीजेपी को इतने लंबे समय तक सरकार में रहने का मौका मिला है. इससे पहले तीन बार राज्य में गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं लेकिन वे अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाई थीं. बीजेपी ने पिछले दो चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़े थे.

2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक सफलता मिली थी. चौहान, लगातार तेरह साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं. चौहान ने चौथी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने के लिए पिछले तीन माह में कई नई जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया है.

सबसे ज्यादा चर्चित योजना 200 रुपए प्रतिमाह पर बिजली देने की है. यह योजना एक जुलाई से क्रियान्वित की गई है. इस योजना के जरिए चालीस लाख से अधिक बिजली उपभोक्ताओं को सीधे लाभ देने की कोशिश की गई है. बिजली बकाया बिलों को भी माफ किया गया है. इसके बाद भी संघ परिवार को चुनाव आसान दिखाई नहीं दे रहा है. संघ के फीड बैक में दर्जन भर ऐसे मुद्दे उभर कर सामने आए हैं, जिनके कारण एंटी इनकंबेन्सी नजर आ रही है.

इनमें प्रमुख कानून एवं व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी क्षेत्र में जयस संगठन की सक्रियता प्रमुख है. इस फीड बैक के साथ संघ और बीजेपी के नेताओं की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ लंबी बैठक हुई. इस बैठक में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल भी मौजूद थे. संघ की ओर से अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अरुण जैन, क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते के साथ तीनों प्रांत प्रचारक मध्यभारत के अशोक पोरवाल, मालवा के बलिराम पटेल और महाकौशल के रंग राजे भी उपस्थित थे.

अति विश्वास में है बीजेपी का कार्यकर्ता

संघ के फीड बैक में यह तथ्य भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के सामने रखा गया कि पार्टी का कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को लेकर अति विश्वास में हैं. कार्यकर्ता इन दोनों चेहरों के सहारे अपनी जीत पक्की मानकर टिकट की दावेदारी में लगे हुए हैं. इस दावेदारी के कारण कई जिलों में गुटबाजी गंभीर स्थिति में पहुंच गई है. संघ ने पार्टी के खांटी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होने की जानकारी भी बैठक में दी. कार्यकर्ता पार्टी का कांग्रेसीकरण होने का आरोप भी लगा रहे हैं. कटनी और देवास जिले की कुछ घटनाओं का जिक्र भी संघ के पदाधिकारियों ने किया.

कटनी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा को पूरी तरह से सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री संजय पाठक ने अपने हाथ में ले रखा था. संजय पाठक चार साल पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं. कटनी जिले के भाजपाईओं से उनकी दूरी अभी भी बनी हुई है. चुनाव में मॉब लिचिंग और एनआरसी के मुद्दे का असर भी संघ, राज्य में महसूस कर रहा है. संघ पदाधिकारियों का मानना था कि जन कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार के बीच कांग्रेस इन मुद्दों को चुनाव में भुना सकती है. किसानों की नाराजगी को लेकर भी संघ ने चिंता जाहिर की है.

सवर्णों की आरक्षण को लेकर नाराजगी भी है चिंता की वजह

मध्यप्रदेश के चुनाव लेकर संघ की चिंता की एक बड़ी वजह सवर्ण वर्ग की नाराजगी भी है. खासकर पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को लेकर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को निरस्त कर दिया है. सरकार अपील में सुप्रीम कोर्ट गई है. इस पर सुनवाई चल रही है. फैसला अगले माह आने की संभावना प्रकट की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के पक्ष में दलील दी है. इससे सामान्य वर्ग का सरकारी कर्मचारी बीजेपी से नाराज है. सपाक्स के नाम से कर्मचारियों ने अलग संगठन बनाया है. संगठन की राजनीतिक इकाई ने भी चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है.

दूसरी और अनुसूचित जाति वर्ग भी बीजेपी से नाराज चल रहा है. अनुसूचित वर्ग यह मान रहा है कि सरकार मदद का सिर्फ दिखावा कर रही है. संघ ने मुख्यमंत्री को सलाह दी है कि सामान्य वर्ग के वोटों का विभाजन रोका जाए. संघ ने आदिवासी सीटों के लिए भी नई रणनीति बनाने की सलाह दी है. आदिवासी सीटों पर जयस संगठन के कारण नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है.

नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर जयस संगठन ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन के बाद ही संघ पदाधिकारियों की बैठक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ हुई. राज्य में आदिवासी वर्ग के लिए कुल 47 सीटें आरक्षित हैं. इसमें से 32 बीजेपी के पास हैं. संघ इन सीटों को लेकर ज्यादा चिंतित है. संघ के कार्यकर्ता अब इन आदिवासी सीटों पर ही सरकारी योजनाओं की ब्रांडिंग करेंगे.

बीजेपी को बदलनी पड़ी बूथ की रणनीति

संघ के फीड बैक के बाद भारतीय जनता पार्टी को अपनी बूथ स्तर की रणनीति में भी बड़ा बदलाव करना पड़ा है. पार्टी ने सभी 65 हजार से अधिक बूथों की तीन अलग-अलग श्रेणी बनाई हैं. यह श्रेणी वर्ष 2008 और 2013 के विधानसभा तथा 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत के आधार पर बनाई गई हैं. बूथ स्तर पर उन लोगों को पार्टी से जोड़ने के काम में लग गई है, जिन्हें किसी न किसी योजना का लाभ सरकार से मिला है.

संघ के कार्यकर्ताओं को भी बूथ स्तर पर पर लगाया जा रहा है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 54 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे. पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए अभी पचास प्रतिशत वोटों का लक्ष्य तय किया है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 45 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे.

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. हमारी वेबसाइट पर उनके अन्य लेख यहां क्लिक कर पढ़े जा सकते हैं.)