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नसीमुद्दीन जैसे वफादार नेता ने बगावत क्यों की?

34-35 साल की वफादारी के बावजूद उन्हें पार्टी से क्यों निकाला गया

Pramod Joshi

यह भारतीय राजनीति के सिद्धांतों, विचारों और आदर्शों की कलई खुलने की घड़ी है. जितने बड़े मूल्यों के नाम पर इस राजनीति को खड़ा किया गया है, उसकी बुनियाद कितनी कमजोर है, यह बहुजन समाज पार्टी के प्रसंग में दिखाई पड़ रहा है. बसपा का बिखराव एक ‘अजब-गजब’ राजनीति के समापन का संकेत कर रहा है.

यह भी नजर आता है कि पार्टी के भीतर का लौह-अनुशासन कितना कमजोर था. और नसीमुद्दीन जैसे बड़े नेता के मन में कोई भय था, जिसके कारण वे ‘बहनजी’ के साथ अपनी बातों को रिकॉर्ड करते रहे.


इस घटनाक्रम से बीजेपी के नेताओं के चेहरों पर मुस्कान जरूर होगी. पर बसपा के लिए यह संकट की घड़ी है. पराजित पार्टियों की यह आम कहानी है. बीजेपी-विरोधी संभावित महागठबंधन की एक प्रत्याशी बसपा भी है. मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के खिलाफ सबसे पहले विरोध के स्वर मायावती ने ही मुखर किए थे.

पराजय से बसपा की कमर टूटी

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की पराजय ने बसपा की कमर तोड़ दी है. उसके पीछे सामाजिक ताकत जरूर है, पर यह ‘एक नेता’ वाली पार्टी है. अभी तक इसमें दूसरे नंबर का कोई नेता नहीं है. हाल में मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने की घोषणा की है. इससे यह भी जाहिर होता है कि उन्हें अपने सहयोगियों पर पूरा भरोसा नहीं है.

बहरहाल जब तक पद और रसूख था, तबतक संगठन का अनुशासन और पार्टी की एकता थी. एक बार यह खत्म हुआ तो बिखराव शुरू हो गया. बहुजन समाज पार्टी पहले भी टूट की शिकार हुई है. हाल में हुए चुनाव के पहले ही उसके कई प्रमुख नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए थे. यह क्रम अभी जारी है.

पार्टी के इस आंतरिक संघर्ष में कहीं न कहीं नोटबंदी की भी भूमिका है. अभी सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है कि पैसों का विवाद कितना बड़ा है. पर मामला रुपयों का है. विस्मय रुपयों पर नहीं. इस बात पर है कि नसीमुद्दीन जैसे वफादार नेता को पार्टी से हटाया गया है.

पर शायद नसीमुद्दीन को इस बात पर विस्मय नहीं हुआ. शायद उन्हें इस बात का अंदेशा था. तभी तो वे टेलीफोन पर होने वाली अपनी इन बातों को रिकॉर्ड करते रहे. आंतरिक लोकतंत्र से विहीन अपारदर्शी राजनीतिक दलों के नेताओं के मन में किस कदर असुरक्षा की भावना है, वह यहां दिखाई पड़ती है. राजनीति के अंधेरे कोनों में जो कुछ छिपा है, वह रोशनी में आ रहा है.

क्षेत्रीय क्षत्रपों की सामंती तानाशाही किसी से छिपी नहीं है. पर स्टिंग ऑपरेशनों, फोन टेपिंग और अब नसीमुद्दीन शैली की रिकॉर्डिंगों ने नया रास्ता खोल दिया है. इससे यह भी समझ में आता है कि धर्म, संप्रदाय, जाति और सामाजिक न्याय का किस तरीके से राजनीतिक इस्तेमाल होता है.

सामान्य कार्यकर्ता और वोटर जिन बातों के लिए न्योछावर हुए जाते हैं, वे बातें नेताओं के दरबार में पैसे के मुकाबले कितनी तुच्छ होती हैं, यह कोई भी देख और समझ सकता है.

कई पार्टियां जूझ रही हैं ऐसी मुश्किलों से 

अन्नाद्रमुक भी जयललिता के जाने के बाद बुरी तरह अंतरकलह से जूझ रही है

इस कलई-खोल खेल में बसपा अकेली पार्टी नहीं है. तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के भीतर के भेद बाहर आ रहे हैं. अम्मा की संभावित वारिस जेल में बैठी हैं. अलबत्ता इस घटनाक्रम से राजनीति में पैसे के मायावी इंद्रजाल पर कुछ रोशनी जरूर पड़ी है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी तक के भीतर से ऐसी आवाजें आ रहीं हैं. ओम प्रकाश चौटाला जेल में हैं और लालू प्रसाद यादव कानूनी घेरे में हैं.

माया-बनाम नसीमुद्दीन प्रकरण के कई सत्य अभी अंधेरे में हैं. सबसे बड़ा सवाल है कि नसीमुद्दीन और उनके बेटे को 34-35 साल की वफादारी के बावजूद क्यों हटाया गया? और नसीमुद्दीन ने इस फैसले को स्वीकार करने के बजाय लड़ने का फैसला क्यों किया? वे किस आधार पर कह रहे हैं कि पिक्चर अभी बाकी है?

उनका रुख आक्रामक है. उन्होंने एक दिन पहले ही घोषणा कर दी थी कि मैं प्रमाण के साथ मायावती एंड कंपनी के ऊपर आरोप साबित करूंगा. उनके निशाने पर मायावती के भाई आनंद कुमार के अलावा सतीश चंद्र मिश्रा हैं.

नसीमुद्दीन की बातों पर यकीन करें या न करें, पर लगता है कि इसके पीछे उससे ज्यादा बड़ी रकम का मामला है, जिसका जिक्र हो रहा है. विधानसभा चुनाव की पराजय ने इस झगड़े के ट्रिगर का काम किया है. पर कड़वाहट हाल की बात नहीं है. इतने वफादार नेता का एक झटके में हट जाना मामूली बात नहीं है.

नसीमुद्दीन की वफादारी एक तरफ इस हद तक थी कि वे पार्टी की खातिर अपनी बेटी को दफनाने तक नहीं जा पाए. पर दूसरी ओर वे टेलीफोन कॉल को रिकॉर्ड करते रहे. वफादारी की पराकाष्ठा और अविश्वास दोनों बातें एक साथ नजर आ रहीं हैं.

नसीमुद्दीन का कहना है कि मेरे पास ढेरों रिकॉर्डिंग हैं. यानी अभी वही बातें सामने आईं हैं, जिन्हें निकालना मुनासिब समझा गया है. बाकी बातें सामने आने पर अनुमान लगाया जा सकेगा कि मन-मुटाव की वजह क्या थी. जाहिर है कि उनमें कई तरह के रहस्य छिपे होंगे.