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फेल हुए मुलायम ! क्या होगी आगे की राह

मुलायम यह अहसास कराना चाहते हैं कि उनके पास समाजवादी पार्टी का कैडर है.

Amitesh

मुलायम सिंह यादव ने 24 अक्टूबर को जब लखनऊ के पार्टी दफ्तर में बेटे अखिलेश को चाचा शिवपाल के गले लगने को कहा तो अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के पैर छूए, बदले में चाचा ने भतीजे को गले लगा लिया.

लेकिन, यह प्रेम ज्यादा देर तक नहीं चला.


अखिलेश ने ‘अंकल’ अमर सिंह पर उनके खिलाफ साजिश करने के लिए कोसा तो अमर सिंह के बचाव में उतरे शिवपाल ने कहा, झूठ मत बोलो.

कुनबे में कलह और बिखराव के बीच समाजवादी पार्टी आज इस मुकाम पर खड़ी है जहां से वापस आना मुश्किल लग रहा है.

समझौता नामुमकिन

कुनबे के भीतर समझौता नामुमकिन सा दिखता है.

मुलायम सिंह की सख्ती बेअसर है. अब लाचार दिखते हैं. ये लाचारगी है परिवारिक कलह नहीं रोक पाने की.

परिवार पार्टी दो फाड़ हैं. एक तरफ बेटा जिसे मुलायम सिंह ने मुख्यमंत्री बनाया. दूसरी तरफ शिवपाल हैं जिनका वजूद भी मुलायम सिंह से ही है.

अबतक के घटनाक्रम से साफ है कि मुलायम सिंह यादव, अखिलेश– शिवपाल की इस लड़ाई में शिवपाल के साथ खुल कर खड़े हैं.

शिवपाल और अमर सिंह के खिलाफ नेता जी अब कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं. जबकि, अखिलेश अमर सिंह को झगड़े की जड़ बता रहे हैं.

अपने राजनीतिक जीवन में विरोधियों को पस्त कर आगे बढ़ने वाले मुलायम सिंह यादव आखिरकार परिवार के इस झगड़े को क्यों नहीं संभाल पाए? सबको साथ लेने में वो विफल क्यों हो गए.

क्या मुलायम का अखिलेश से मोह-भंग हो गया है. या फिर वो अपनी दूसरी पत्नी, भाई शिवपाल और दोस्त अमर सिंह की तिकड़ी में इस कदर घिर गए हैं कि आगे निकल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है.

लोहिया और चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने वाले मुलायम 1987 में चौधरी चरण सिंह की मौत तक उनके साथ रहे.

चौधरी चरण सिंह के बाद उनकी राजनीतिक विरासत हथियाने में मुलायम उनके बेटे चौधरी अजित सिंह से काफी आगे निकल गए.

यह मुलायम का पहला मास्टर स्ट्रोक था. इसके बाद 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चली. विवाद बढ़ा और मुलायम ने खुद को एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया.

मुलायम सिंह यादव ने बीएसपी से हाथ मिलाया और यूपी में फिर अपनी सरकार बनाई. लेकिन, बीएसपी ने सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया.

लेकिन, इस दौरान जो कुछ हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता.

लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती के साथ 2 जून 1995 की वो घटना आज भी मुलायम सिंह के समर्थकों की दबंगई की याद दिलाती है.

हालांकि, इसके बाद बीएसपी ने बीजेपी से हाथ मिलाकर मायावती के नेतृत्व में सरकार बना ली.

मुलायम ने इसके बावजूद खुद को संभाला और यूपी में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे.

लेकिन, उनकी राजनीतिक सूझ-बूझ और दांव-पेंच परिवार के झगड़े में उलझ गई है. अब आर-पार की इस लड़ाई में एक बार फिर से मुलायम कमर कसने को तैयार हैं.

बेटे अखिलेश ने अगर अलग पार्टी बना कर मुलायम को सीधे मैदान में चुनौती दे दी तो उस हालात को लेकर मुलायम तैयार हैं.

समाजवादी मंच से मुलायम ने अखिलेश समर्थकों को चेतावनी देते हुए कहा कि ये तो एक लाठी भी नहीं बर्दाश्त कर सकते.

दरअसल मुलायम यह अहसास कराना चाहते हैं कि उनके पास समाजवादी पार्टी का कैडर है.

जिस कैडर के सहारे वो अभी भी ताल ठोंकने को तैयार हैं. जबकि, अखिलेश के पास कोई कैडर नहीं बल्कि, कुछ उत्साही युवाओं की टोली है.

जिसे इतने बड़े प्रदेश में पैर जमाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी.

लेकिन, अखिलेश इस पूरे घटनाक्रम को अपने लिए सहानुभूति के रूप में देख रहे हैं.

अखिलेश अगर इस सहानुभूति को एक बड़े जनआंदोलन के रुप में उभारने में कामयाब रहे तो वो शायद अपने लिए एक बेहतर मुकाम हासिल कर सकते हैं.

जाति-सांप्रदाय से उपर अखिलेश की छवि

यूपी की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय कहते हैं ‘अगर अखिलेश यादव अलग पार्टी बनाकर अपने दम पर चुनाव के मैदान में उतरते हैं तो उनको करीब 125 सीटें मिलेंगी.'

'ये सब अखिलेश की छवि के आधार पर मिलेगा जो कि जाति-सांप्रदाय से उपर उठकर है.’

‘अगर अखिलेश यादव के नेतृत्व में नई पार्टी कांग्रेस, आरएलडी, जेडीयू और दूसरे छोटे दलों के साथ एक महागठबंधन बना कर चुनाव मैदान में उतरती है तो फिर बिहार की तरह यहां भी चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिल सकते हैं.'

'यूपी में समाजवादी पार्टी की फूट का फायदा उठाने में जुटी बीजेपी या बीएसपी के लिए ये महागठबंधन भारी पड़ सकता है, मुलायम की समाजवादी पार्टी का तो खैर और भी बुरा हश्र हो.’

पहलवानी से राजनीति के शिखर तक पहुंचने का मुलायम का सफर अब उम्र के इस पड़ाव पर जाकर लड़खड़ाने लगा है. स्वास्थ्य और उम्र दोनों अब पहले की तरह उनका साथ नहीं दे रहा है.

इन सबके बावजूद यूपी की राजनीति को समझने वाले कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मुलायम के असर को उम्र के इस पड़ाव पर भी कमतर नहीं आंक रहे.

अपने राजनीतक जीवन में कई मास्टर स्ट्रोक लगाकर सबको चौंकाने वाले मुलायम सिंह यादव के मास्टर स्ट्रोक का सबको इंतजार रहेगा.