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सुप्रीम कोर्ट जाने के फैसले से आखिर ममता बनर्जी ने क्यों मारी पलटी?

ममता बनर्जी के हर कदम पर अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नरमी और सूबे के बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को लेकर सख्ती का आरोप लगता रहा है

Amitesh

बंगाल की सियासत इन दिनों मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से लिए जा रहे फैसले के ईर्द गिर्द ही घूम रही है. ममता के हर फैसले में इस वक्त तुष्टीकरण की कोशिश की एक झलक दिखती है. ममता बनर्जी के हर कदम पर अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नरमी और सूबे के बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को लेकर सख्ती का आरोप लगता रहा है.

लेकिन, इन आरोपों के लिए ममता खुद ही जिम्मेदार हैं. उनके कई फैसले उनकी मंशा पर सवाल खड़े करते हैं. जिससे मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप उन पर लग जाता है. बीजेपी और संघ परिवार के साथ उनकी तनातनी अब खुलकर सामने आ रही है. बीजेपी को लगता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तुष्टीकरण की कोशिश ही उन्हें बंगाल में पैर जमाने का मौका दे रही है.


ममता बनर्जी यहीं गलती कर रही हैं. ममता की रणनीति बीजेपी का भय दिखाकर बंगाल में अल्पसंख्यक समुदाय को अपने साथ जोड़े रखने की है. लेकिन, इस दौरान वो तुष्टीकरण की पराकाष्ठा के पायदान पर कैसे चढ़ जाती हैं, किसी को पता तक नहीं चलता.

कभी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के प्रोग्राम को लेकर तो कभी संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम के लिए हॉल की बुकिंग को रद्द किया जाता है. अब बंगाल में विधि-विधान से होने वाले नवरात्र के मौके पर भी उन्हें पूजा के माहौल को भी सियासी माहौल मे बदल दिया है.

हाईकोर्ट बनाम ममता

माहौल खराब होने के नाम पर दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को एक दिन टालने के उनके फैसले से उसी तुष्टीकरण की कोशिश की झलक दिखती है. एक अक्टूबर को मुहर्रम का जुलूस निकलने वाला है जिसके साथ ममता सरकार ने प्रतिमा विसर्जन पर एक दिन के लिए रोक लगा दी थी. लेकिन, हद तो तब हो गई जब हाईकोर्ट के आदेश के पालन करने के बजाए बंगाल सरकार अपने तरीके से फिर से बच निकलने की कोशिश करती दिख रही है.

हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि आप चूंकि सरकार चला रहे हैं तो इसका मतलब कतई नहीं कि आप मनमाना फैसला करें.

ममता सरकार की दलील थी कि एक ही दिन मोहर्रम और विसर्जन कराए जाने से कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है. हाईकोर्ट ने ये दलील नहीं मानी. अलबत्ता कोर्ट ने ये जरूर कहा कि ‘सरकार मोहर्रम और दुर्गा विसर्जन के अलग रुट तय करे.’ हालांकि हाईकोर्ट ने अभी विसर्जन पर सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द नहीं किया है. बल्कि राज्य सरकार के नोटिफिकेशन की भर्त्सना जरूर की है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ‘कोई मेरा गला काट सकता है लेकिन, यह नहीं बता सकता कि मुझे क्या करना है.’

क्या है ममता की रणनीति?

लेकिन, अब कोर्ट के फैसले से बच निकलने का बहाना ढूंढ़ने की कोशिश हो रही है. न्यूज 18 से बातचीत करते हुए टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि ‘मीडिया में गलत तरीके से तथ्य पेश किया गया.’ बकौल कल्याण बनर्जी ‘हाईकोर्ट का कहना है कि विसर्जन की अनुमति तभी दी जाएगी जबकि उस लायक माहौल होगा. इसे तय करने का अधिकार राज्य सरकार का होगा.’

कल्याण बनर्जी का कहना है कि ‘हालात को देखकर राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन इस बाबत फैसला करेगा.’

टीएमसी सांसद का बयान उस वक्त आया है जब कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी, कोलकाता पुलिस कमिश्नर और दूसर अधिकारियों के साथ बैठक कर हालात का जायजा लिया है.

पहले मुहर्रम के दिन विसर्जन पर रोक, फिर हाईकोर्ट के फैसले पर तल्खी और अब हाईकोर्ट के फैसले को अपने मन मुताबिक ढालने की कवायद, ये सबकुछ ममता बनर्जी की रणनीति का हिस्सा लग रहा है जिसमें वो किसी भी सूरत में अपने एजेंडे से पीछे नहीं हटना चाहती. वो नहीं चाहती कि इस तरह का संदेश जाए कि ममता बनर्जी इस मुद्दे पर झुक गईं और उन्हें अपने फैसले से पलटना पड़ा.

अब सुप्रीम कोर्ट ना जाने की बात करने के पीछे तर्क यही लग रहा है कि हाईकोर्ट के फैसले को ही अपने पक्ष में ढालकर उस पर आगे बढ़ने की कोशिश हो रही है. लेकिन, ममता बनर्जी की इन कोशिशों ने उनके उपर तुष्टीकरण करने का ऐसा चस्पा लगा दिया है जिससे पार पाना उनके लिए काफी मुश्किल होगा. बीजेपी को तो एक बार फिर से ममता के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिल गया है, लेकिन, यह मौका कोई और नहीं खुद ममता बनर्जी ही दे रही हैं.