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जब हार्दिक मेट राहुल : चुप-चुप क्यों हो जरूर कोई बात है?  ये पहली मुलाकात है ये कैसी मुलाकात है?

बड़ा सवाल ये है कि हार्दिक पटेल ने पाटीदारों के समर्थन के बदले राहुल से क्या मांगें रखी हैं?

Kinshuk Praval

गुजरात में पाटीदार आंदोलन से किसी नायक की तरह उभरे युवा हार्दिक पटेल राहुल गांधी से मुलाकात पर चुप क्यों हैं? आखिर क्या वजह है कि वो राहुल गांधी से मुलाकात को सार्वजनिक नहीं करना चाहते और छिपा रहे हैं ?  दरअसल ये सवाल इसलिये उठ रहा है क्यों कि कभी वो कैमरे में मुंह छुपाते दिखते हैं तो कभी राहुल से मुलाकात को कोरी अफवाह बताते हैं. जबकि कैमरा झूठ नहीं बोलता. आजकल तो मीडिया के कैमरे से ज्यादा काम सीसीटीवी और लोगों के मोबाइल कैमरे कर जाते हैं. हार्दिक और राहुल की मुलाकात को भी सीसीटीवी ने ही पलीता लगाया है.

होटल उमेद के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज में हार्दिक पटेल अपना चेहरा छिपाकर कार में बैठते नज़र आ रहे थे. हालांकि हार्दिक ने इस फुटेज़ को ही फर्जी करार दिया है. उन्होंने कहा कि जब वो राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे तो पूरी दुनिया को पता चल जाएगा. हार्दिक ने तो पूरी दुनिया को नहीं बताया लेकिन होटल की लॉबी से एक और सीसीटीवी फुटेज सामने आकर नई गवाही दे रहा है. इस फुटेज में हार्दिक पटेल और राहुल गांधी एक ही कमरे में अंदर जाते दिख रहे हैं. करीब एक घंटे की बैठक के बाद देर रात हार्दिक कमरे से बाहर निकलते नज़र आ रहे हैं.


ये वीडियो 23 अक्टूबर की रात 12 बजकर 6 मिनट का है. फुटेज में दिखाई दे रहा है कि हार्दिक पटेल होटल की लॉबी में पहुंच कर कमरा नंबर 224 में दाखिल होते हैं. करीब 1 घंटे बाद एक बजकर 2 मिनट पर राहुल गांधी भी लॉबी में आते हैं और कमरे में दाखिल होते हैं. कमरे में हार्दिक पटेल पहले से मौजूद रहते हैं. दोनों के बीच करीब 54 मिनट की बातचीत होती है जिसके बाद हार्दिक बाहर निकल जाते हैं.

इसके बावजूद हार्दिक पटेल मुलाकात से इनकार कर रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल बरकरार है कि आखिर हार्दिक पटेल अपनी गुपचुप मुलाकात पर चुप क्यों हैं? ऐसी क्या सियासी रणनीति है जिसकी वजह से वो चोरी-छिपे राहुल से मिल रहे हैं? राहुल के साथ वो कौन सी 'डील' करना चाह रहे हैं जिसकी भनक पाटीदार कम्यूनिटी को नहीं लगने देना चाहते हैं? वैसे भी राहुल गांधी खुले मंच से हार्दिक का ‘हार्दिक’ अभिनंदन इशारों में कर चुके हैं.

सवाल कई हैं और मुलाकात का सबूत सीसीटीवी है लेकिन हार्दिक पटेल अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं.

ऐसे में एक अनुमान ये भी लगाया जा सकता है कि हार्दिक पटेल पर्दे के पीछे से कांग्रेस से बड़ी डील करना चाह रहे हैं. वो चाहते हैं कि पहले डील पक्की हो जाए तो फिर वो खुलकर सामने आएं. तभी उन्होंने रात के अंधेरे में अपनी मांगों को लेकर राहुल से मुलाकात की. अब मौका सौदेबाज़ी का है. जबतक उनकी मांगों पर राहुल कोई फैसला नहीं लेते तबतक हार्दिक पटेल खुलकर कांग्रेस का हाथ थामने की बात नहीं करेंगे.

कांग्रेस के साथ भी फिलहाल ‘डूबते को तिनके का सहारा’ वाली हालत है. ऐसे में हार्दिक पटेल कांग्रेस के लिये तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं. पाटीदार आंदोलन के जरिये हार्दिक पाटीदार समुदाय के बड़े नेता बन कर उभरे हैं. खास बात ये भी है कि पाटीदार आंदोलन के बाद गुजरात में पहला विधानसभा चुनाव है. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि भले ही अब उसके साथ ‘खाम’ का पूरा हिस्सा नहीं है लेकिन हार्दिक पटेल में दम-खम है. गुजरात में 20 प्रतिशत पाटीदार हैं. पाटीदारों का वर्चस्व न सिर्फ वर्तमान विधानसभा में है बल्कि कैबिनेट में भी है. गुजरात के कुल 44 विधायक और 7 कैबिनेट मंत्री इसी कम्यूनिटी से हैं.  ऐसे में पाटीदारों के समर्थन से कांग्रेस की हालत में सुधार हो सकता है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हार्दिक पटेल ने पाटीदारों के समर्थन के एवज़ में राहुल से क्या मांगें रखी हैं?

जाहिर तौर पर हार्दिक पटेल की पहली मांग या शर्त पाटीदार आरक्षण को लेकर ही होगी. ऐसे में क्या कांग्रेस के लिये ये मुमकिन होगा कि वो दस फीसदी पाटीदार आरक्षण पर सत्ता में आने के बाद मुहर लगा सके? गुजरात में इस वक्त 49.5 फीसदी आरक्षण है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया नहीं जा सकता. ऐसे में कांग्रेस के लिये हार्दिक की मांगें गले की फांस से कम नहीं होंगी.  इसके अलावा उन्होंने सत्ता में भागेदारी की भी मांग रखी होगी. सीट बंटवारे को लेकर हार्दिक पटेल लंबी चौड़ी लिस्ट राहुल के हाथ में थमा सकते हैं. माना जा रहा है कि हार्दिक दो दर्जन सीटों की मांग कर रहे हैं और चाहते हैं कि पटेल बाहुल्य सीटों पर पाटीदारों को कांग्रेस टिकट दे. अबजबकि एक तरफ कांग्रेस गुजरात में युवा तिकड़ी को साथ लाने की जुगत में जुटी हुई है तो वहीं दूसरी तरफ उसे अपने वोटबैंक को भी समझना होगा. गुजरात में कांग्रेस के पास ओबीसी का वोट बैंक है और पाटीदारों को ओबीसी में डालने की जल्दबाज़ी से ओबीसी टूटकर बीजेपी के पास जा सकता है. वैसे भी बीजेपी यूपी की ही तरह गुजरात में भी हर वर्ग को साथ लेकर चलने की रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी को सत्ता के 22 सालों का अनुभव और केंद्र में होने का एडवांटेज जरूर मिल सकता है. ओपिनियन पोल भी बीजेपी के पक्ष में लहर बता रहे हैं. ऐसे में राहुल और हार्दिक की मुलाकात पर संशय बरकरार ही रह सकता है ताकि बात न बनने की सूरत में दोनों ही नेता बात खुलने से बात बिगड़ने की नौबत से बचे रहें और नेता भी बने रहें.