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मध्यप्रदेश में कांग्रेस को ‘दिग्गी राजा’ से क्यों लगने लगा है डर?

ऐसा पहली बार हो रहा है कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी में किनारे किए जा रहे हैं

Kinshuk Praval

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार में पोस्टर, होर्डिंग और चुनावी रैलियों-रोड शो में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं के चेहरे नजर आ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ प्रचार में कमलनाथ और सिंधिया की जोड़ी जुटी हुई है. बड़े बड़े होर्डिंग-पोस्टरों में राहुल के साथ सिंधिया-कमलनाथ और राज्य के दूसरे कांग्रेसी नेता भी यदकदा नजर आ रहे हैं. लेकिन एक चेहरा गायब है. वो नाम जिसे कभी कांग्रेस का चाणक्य तो कभी राहुल गांधी का राजनीतिक गुरू तक कहा गया.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान में दिग्गजों के साथ दिग्विजय सिंह नजर नहीं आ रहे हैं. दरअसल, इस गैरमौजूदगी की वजह कोई और नहीं बल्कि खुद दिग्विजय सिंह हैं. दिग्विजय सिंह का कहना है कि वो रैलियों में इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि उनके भाषण से कांग्रेस के वोट कटते हैं.


ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दिग्वजिय सिंह ‘वोट कटवा’ हैं? दिग्विजय सिंह के बोलने पर पाबंदी क्यों है? दिग्विजय सिंह ऐसा क्या बोल जाएंगे जिससे कांग्रेस का नुकसान होगा? अगर ऐसा है तो जो अभी दिग्विजय सिंह ने बोला क्या उससे कांग्रेस का नुकसान कम होगा? अगर ऐसा ही है तो फिर शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर को लेकर कांग्रेस का रुख क्या है?

सवाल ये भी उठता है कि सत्ता साधना के लिए कांग्रेस इतनी सतर्क हो गई है कि वो दिग्विजय सिंह से कन्नी काटने में भी गुरेज नहीं कर रही है.

राहुल गांधी मध्य प्रदेश के एक मंदिर में पूजा-अर्चना करते हुए

आखिर दिग्विजय सिंह के ग्रह-नक्षत्रों में ऐसा कौन सा दोष आ गया है कि उनका हर काम उल्टा पड़ रहा है. मध्यप्रदेश में बीएसपी का कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होता है तो मायावती इसका ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फोड़ती हैं. गोवा में अगर कांग्रेस की सरकार नहीं बनती है तो दिग्विजय सिंह को ही इसका जिम्मेदार माना जाता है.

मध्यप्रदेश में अगर कांग्रेस पंद्रह साल से सत्ता का वनवास झेल रही है तो क्या इसकी वजह दिग्विजय सिंह के दस साल का कार्यकाल है? कहा जाता है कि जनता की याददाश्त बेहद कमजोर होती है. लेकिन ऐसा क्या है कि पंद्रह साल बाद भी मध्यप्रदेश की जनता दिग्विजय सिंह के दस साल के शासन को नहीं भूल सकी? आखिर क्यों दिग्विजय सिंह के एमपी में दौर की याद आलाकमान को दिला कर उनका रिपोर्ट-कार्ड प्रभावित किया जाता है?

एक तरफ दिग्गी-राजा नर्मदा-यात्रा कर मध्यप्रदेश में सत्ता वापसी की तैयारी कर रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी कांग्रेस में ही वापसी मुश्किल हो चली है कि सार्वजनिक रूप से दिग्गी राजा की नाराजगी सामने आ रही है.

तस्वीर: दिग्विजय सिंह के फेसबुक से

राजनीति में समय का चक्र बड़ी तेजी से घूमता है. कल तक दिग्विजय सिंह गांधी परिवार में अपने रिश्तों की वजह से कांग्रेस में बड़ी अहमियत रखते थे लेकिन राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस वर्किंग कमिटी में भी दिग्विजय सिंह को जगह नहीं मिली.

दिग्विजय सिंह के हाथों से धीरे-धीरे एक-एक कर गोवा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना का प्रभार वापस ले लिया गया.

गोवा में सरकार न बना पाने को लेकर दिग्विजय सिंह पर विरोधी गंभीर आरोप लगाते हैं. ये तक सुगबुगाहट रही कि दिग्गी राजा की देरी की वजह से गोवा विधानसभा के चुनावों में ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई और बीजेपी ने फायदा उठा लिया. गोवा एपिसोड के बाद ही दिग्विजय सिंह से प्रभार छीन लिया गया. इसी तरह तेलंगाना के मामले में भी कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए दिग्विजय सिंह को ही दोषी माना गया.

ताजा मामला मध्यप्रदेश में बीएसपी-कांग्रेस के गठबंधन टूटने को लेकर हुआ. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन न होने के लिए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें आरएसएस का एजेंट तक कह डाला.

बहरहाल, वजह जो भी हो लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है कि मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह अपनी ही पार्टी में किनारे किए जा रहे हैं. हालांकि इसके बावजूद दिग्गी राजा अपने कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने के लिए कह रहे हैं कि चाहे जिसे भी टिकट मिले, दुश्मन को भी मिले लेकिन कांग्रेस को जिताओ. लेकिन इन शब्दों में भी दिग्गी का दर्द दिखाई दे रहा है कि चुनावी टिकट वितरण में भी उनकी राय या सहमति नहीं ली जा रही है.