अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में उमा भारती समेत जब बीजेपी के आडवाणी-जोशी सरीखे वरिष्ठ नेताओं पर फिर से मुकदमा चलाने का सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया तो उमा भारती ने ऐलान कर दिया कि राम मंदिर के लिए वो जेल जाने को तैयार हैं.
आनन-फानन में उमा भारती ने अयोध्या जाने का ऐलान भी कर दिया. लेकिन, जल्द ही अपने कदम पीछे खींच लिए. उमा भारती के तेवर तल्ख दिख रहे हैं लेकिन, अयोध्या जाने के फैसले से पलटने के बाद लगा कि उमा भारती में अब वो पहले वाली बात नहीं रह गई है जिसके लिए वो जानी जाती हैं.
अपने जिद्दी स्वभाव, अक्खड़पन और फायर ब्रांड हिंदुत्व के एक बड़े चेहरे के तौर पर अपनी छवि बनाने वाली भगवाधारी संन्यासिन के तेवर से लग रहा है कि उनके स्वभाव में काफी परिवर्तन भी आया है या फिर वक्त ने ऐसे बदलाव के लिए मजबूर कर दिया है.
विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले में फिर से मुकदमा शुरू होने के बाद उमा भारती को लगा कि इस मौके पर अयोध्या जाकर एक बार फिर से माहौल अपने पक्ष में भुनाया जा सकता है. लेकिन, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी आलाकमान की तरफ से फिलहाल उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया गया.
राम मंदिर के बहाने फिर राजनीति चमकाने की कोशिश
उमा भारती केंद्र सरकार में मंत्री हैं और विपक्ष की तरफ से उनके इस्तीफे के लिए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है. शायद इन तमाम अड़चनों से अलग अपनी हिंदुत्ववादी छवि को एक बार फिर से उभारकर उमा भारती अयोध्या के रास्ते पार्टी और सरकार के भीतर अपने महत्व को बढ़ाना चाह रही थी.
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उमा भारती के पास इस वक्त गंगा सफाई अभियान की जिम्मेदारी है लेकिन, अबतक गंगा सफाई अभियान का असर धरातल पर बिल्कुल नहीं दिख रहा है. ऐसी सूरत में उमा की कोशिश भी एक बार फिर से मंदिर मुद्दे के बहाने अपने-आप को फिर से लाइम लाइट में लाने से ज्यादा कुछ और नहीं दिखती है.
लेकिन, इस कोशिश को बीजेपी आलाकमान ने खत्म कर दिया. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी आलाकमान की तरफ से उमा भारती को अयोध्या जाने से मना कर दिया. शायद पार्टी आलाकमान को लगा कि इस मसले को ज्यादा हवा देने के बजाए इसे ज्यादा तूल न दिया जाए.
उमा भारती के तेवर क्यों पड़े ढीले?
उमा भारती के अब तक के सियासी इतिहास को देखकर पार्टी आलाकमान की बात मान कर अयोध्या जाने के फैसले को बदल देना अटपटा सा ही लगता है.
जरा याद कीजिए उस दौर को जब उमा भारती ने बिना किसी परवाह के पार्टी आलाकमान को चुनौती दे दी थी.
2003 के विधानसभा चुनाव में उमा भारती को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया था जिसके बाद हुए चुनाव में बीजेपी को तीन चौथाई सीटें मिली थी. उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थी लेकिन, कर्नाटक के हुबली में 1994 में दंगा भड़काने के पुराने आरोपों में घिरी उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.
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उमा भारती के इस्तीफे के बाद बाबूलाल गौड़ को मध्यप्रदेश की कमान सौंपी गई थी. इस दौरान उमा भारती ने कर्नाटक के हुबली से तिरंगा यात्रा शुरू की. उमा भारती उस वक्त अपने पूरे फार्म में थी.
लेकिन, जब पार्टी आलाकमान की तरफ से कुछ ही वक्त बाद शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश भेजा गया तो उसके बाद उमा भारती की नाराजगी खुल कर सामने आ गई. उमा को पार्टी का ये फैसला पसंद नहीं आया.
पार्टी के भीतर चल रहे उठापटक और अपनी उपेक्षा से नाराज उमा भारती ने उस वक्त के पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर ही सीधे हमला बोल दिया था. नवंबर 2004 में बीजेपी दफ्तर में ही चल रही बीजेपी पदाधिकारियों की बैठक में उमा भारती ने सीधे-सीधे पार्टी आलाकमान को अपने ऊपर कारवाई करने की चुनौती तक दे डाली. इसी के बाद उमा भारती को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
हार ने उमा भारती की राजनीति बदली
इसके बाद उमा भारती ने मध्य प्रदेश में भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाकर बीजेपी के खिलाफ अभियान में लग गई. लेकिन, उन्हें वो सफलता नहीं मिली जिसकी वो उम्मीद लगाए बैठी थी. उमा भारती की पार्टी तो पूरी तरह से साफ हो ही गई, वो खुद विधानसभा चुनाव हार गई.
लेकिन, इन सबसे बेपरवाह उमा भारती के अपने स्वभाव में बदलाव नहीं दिखा. नितिन गडकरी के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद उमा भारती की बीजेपी में जून 2011 में दोबारा इंट्री हुई. जिसके बाद गंगा को लेकर उन्होंने अभियान भी चलाया.
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मोदी सरकार बनी तो उमा भारती को गंगा सफाई अभियान की बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. लेकिन, अब उमा भारती के रवैयै में बदलाव देखने को मिल रहा है.
अटल-आडवाणी के सामने अपने कड़े तेवर दिखाने वाली साध्वी उमा मोदी-शाह के सामने अब अपने तेवर नहीं दिखा पा रही हैं. इतने दिनों में बीजेपी आलाकमान भी बदल गया है और उमा भारती के तेवर भी.
लेकिन, विनय कटियार जैसे नेता अभी भी इस मामले पर खुलकर बोल रहे हैं, एक बार फिर से आंदोलन चलाने की धमकी भी दे रहे हैं. सीबीआई पर साजिश रचने के आरोप लगा रहे हैं. शायद कटियार के लिए अब खोने को कुछ नहीं है.