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नीतीश को मध्यावधि चुनाव कराने की इतनी जल्दबाजी क्यों है ?

नीतीश कुमार ने कहा कि कर्ज की वजह से किसान खुदकुशी कर रहे हैं

Amitesh

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी सरकार को मध्यावधि चुनाव कराने की चुनौती दे रहे हैं. इस वक्त केंद्र सरकार किसानों के आंदोलन के चलते दबाव में है. मंदसौर की आग की लपटों ने दिल्ली तक को परेशान कर दिया है.

मध्यप्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक हर जगह बीजेपी शासित राज्यों में अन्नदाता आक्रोश में है. शायद इसी आक्रोश से नीतीश को आस दिख रही है. ये आस है मोदी सरकार को किसानों के मुद्दे पर घेरने की.


जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही नीतीश कुमार अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. खास तौर से उनके मन में वो टीस तो है ही जो उन्हें बार-बार दर्द देती रहती है कि बिहार में वो मुख्यमंत्री रहते हुए भी महागठबंधन में लालू यादव की पार्टी आरजेडी के जूनियर पार्टनर हैं.

इससे भी बड़ी टीस तो ये है कि जिस मोदी विरोध के नाम पर नीतीश ने बीजेपी का हाथ छोड़ दिया था. उसी बीजेपी के हाथों 2014 में बड़ी पटखनी मिली थी. सूबे की सत्ता में काबिज होने के बावजूद मोदी लहर ने उनकी लोकप्रियता को इस कदर मलीन कर दिया था कि राज्य की कुल 40 लोकसभा सीटों में से उन्हें महज 2 सीटें ही नसीब हो पाई थीं.

शायद नीतीश कुमार के मन में एक छोटी सी उम्मीद की किरण जल रही होगी कि गलती से भी मध्यावधि चुनाव हो जाएं और इस बार अपने दो सांसदों की संख्या को बढ़ाकर संसद के भीतर अपनी पार्टी की हैसियत को थोड़ा बढ़ा दिया जाए.

तभी तो नीतीश कुमार अचानक मोदी और उनकी सरकार पर दनादन वार करने शुरू कर दिए. नीतीश कुमार ने कहा कि कर्ज की वजह से किसान खुदकुशी कर रहे हैं. उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा है. बीजेपी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हए उन्होंने सरकार को खूब खरी-खोटी सुना दी.

लेकिन, मध्यावधि चुनाव की चुनौती से उनकी हसरतों को लेकर भी सवाल हो रहे हैं. क्या नीतीश की हसरतें एक बार फिर से जवां तो नहीं हो रहीं? क्या उनके मन में भीतर ही भीतर सीएम से पीएम बनने की कोई बेचैनी तो नहीं दिख रही.

अलबत्ता नीतीश कुमार ने तो कुछ महीने पहले ही साफ कर दिया था कि प्रधानमंत्री पद की रेस में वो शामिल नहीं हैं. उनका इशारा था कि इतनी छोटी पार्टी होने के नाते इतने कम सांसदों को साथ लेकर वो पीएम पद की कैसे सोच सकते हैं? उस वक्त तो यही लगा कि नीतीश कुमार फिलहाल इस तरह की हसरतों को तिलांजलि देकर बिहार की सरकार और सियासत पर फोकस करना चाहते हैं.

लेकिन, मध्यावधि चुनाव कराने की धमकी कहें या फिर खुले तौर पर चुनौती नीतीश ने एक बार फिर से तमाम अटकलों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है.

बिहार और यूपी में भी हो मध्यावधि चुनाव

लेकिन, मजेदार बात ये है कि नीतीश जी बिहार में भी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार हैं बशर्ते यूपी में भी ऐसा ही हो जाए. जब लोकसभा के मध्यावधि चुनाव के साथ बिहार के भी मध्यावधि चुनाव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने लगे हाथ यूपी का चुनाव करा लेने की शर्त रख दी.

शायद उन्हें लग रहा है कि यूपी में योगी सरकार उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है जिन उम्मीदों के लहर पर सवाल होकर वो सत्ता में आई थी. नीतीश कुमार को लग रहा है कि इस शर्त के बाद शायद बिहार में मध्यावधि चुनाव कराने की बात करने वालों का मुंह बंद हो जाएगा. खासतौर से बीजेपी के उन लोगों का जो कि बिहार में मध्यावधि चुनाव के कयास लगाते रहते हैं.

नोटबंदी पर समर्थन था, अब क्यों विरोध

लालू के साथ खट्टे मीठे रिश्तों के बीच सरकार चला रहे नीतीश कुमार के उपर आरोप लगते रहे हैं कि वो शायद बीजेपी के साथ एक बार फिर से चले जाएं. उनकी तरफ से कई मोर्चों पर मोदी सरकार  के कदम की तारीफ ने लालू के माथे पर पसीना ला दिया था.

नोटबंदी पर पूरे विपक्षी नेताओं की मोदी की घेराबंदी के वक्त नीतीश कुमार अपने धुर-विरोधी मोदी के लिए किसी राहत की उम्मीदों से कम नहीं दिख रहे थे. विपक्ष की बात को दरकिनार कर नीतीश ने मोदी के कदम की खुलकर सराहना की थी.

इसके पहले नीतीश कुमार का नाम जब मोदी विरोधी ध्रुव के केंद्र में प्रमुखता से लिया जा रहा था तो उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री पद की रेस से अलग कर एक नरम रवैये का संकेत दिया था. लेकिन, अब किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार पर वार ने साफ कर दिया है कि नीतीश अपनी अलग छवि और मोदी विरोधी नेता के तौर पर दिखने की कोशिश को जिंदा रखना चाहते हैं. शायद इसी बहाने लालू को साधने में सफल रहें.