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ओडिशा: बीजू जनता दल में नवीन पटनायक के बाद कौन?

देश में किसी भी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी ने आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं किया

Kasturi Ray

बीते गुरुवार को एक वाट्सऐप मैसेज ने लोगों की हैरानी बढ़ा दी. मैसेज में जो लिखा था, वो बात ही कुछ ऐसी थी. इस मैसेज में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का स्वास्थ्य खराब होने और विदेश में किसी अस्पताल में संभावित लीवर ट्रांसप्लांट के बारे में कहा गया था. हालांकि इस मैसेज से उस पोर्टल की सत्यता की भी बात उठती है- जहां से यह खबर बाहर निकली.

यह मैसेज नवीन पटनायक के विदेश में इलाज कराने के दौरान राज्य में उनकी जगह कौन लेगा, इसे लेकर भी पार्टी में संभावित आंतरिक कलह की ओर इशारा करता है. हालांकि इस खबर को बाद में फर्जी करार दिया गया.


मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जिन्हें ज्यादा ‘मीडिया सैवी’ नहीं माना जाता है. उन्होंने खुद ही स्पष्ट किया कि वो स्वस्थ और बेहतर हैं. हालांकि इस फर्जी खबर ने पार्टी के अंदर और बाहर एक महत्वपूर्ण सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि- ‘नवीन के बाद कौन?’

वैसे भी जनसभाओं और बैठकों में नवीन पटनायक की बॉडी लैंग्वेज देखकर साफ हो जाता है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. हालांकि खुद पटनायक और बीजू जनता दल (बीजेडी) के सदस्य हमेशा पार्टी में ‘ऑल इज वेल’ की बात किया करते हैं.

इसका मकसद बहुत साफ है कि जनता तक कोई गलत संदेश नहीं पहुंचे. क्योंकि राज्य में जिस पार्टी ने नवीन पटनायक के नेतृत्व में पहला चुनाव जीता उसी पार्टी ने सूबे में लगातार चार बार चुनाव जीता. ये करिश्मा बीजू पटनायक की सियासी समझ, जिनकी विरासत को बाद में उनके बेटे नवीन पटनायक ने अपने कंधों पर उठाया, उसकी बदौलत मुमकिन हो सका.

बिगड़ते स्वास्थ्य को जिम्मेदार

यहां तक कि हाल में हुए पंचायत चुनाव में पार्टी की हार के लिए नवीन पटनायक के बिगड़ते स्वास्थ्य को ही जिम्मेदार बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि पटनायक अपनी गिरती सेहत के कारण से ही राज्य के हर इलाके में लोगों तक पहुंच नहीं सके.

यही वजह है कि पार्टी, नवीन पटनायक के बाद आखिर क्या और कौन ? के सवाल से अंदर ही अंदर जूझ रही है. तमिलनाडु में जयललिता की बिगड़ती सेहत के बाद जो कुछ भी हुआ वो खुद में एक ताजा उदाहरण है.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बारे में धारणा है कि वो मीडिया और खबरों से दूर रहते हैं (फोटो: फेसबुक से साभार)

इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेडी में अगर नवीन पटनायक की जगह कोई नहीं ले सकता, तो बीजू बाबू की सियासी विरासत को संभालने की बात ही छोड़ दीजिए. यहां तक कि पार्टी में नए नेतृत्व की तलाश को लेकर भी पार्टी के कई खेमों में अंदरखाने घमासान छिड़ा हुआ है. देश की दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की तरह ही बीजेडी में भी किसी दूसरे नेता को पार्टी और राज्य की चुनौती संभालने के काबिल नहीं बनाया गया है.

वरिष्ठ बीजेडी नेता दामोदर रौत हमेशा से बड़बोले रहे हैं. इसके लिए कई बार उन्हें पार्टी सदस्यों की आलोचना का शिकार भी होना पड़ा है. जबकि पार्टी का युवा नेतृत्व जिसे मुख्यमंत्री के करीब माना जाता है, उसमें इतनी सियासी करिश्मा नहीं है, जो पार्टी को उनकी विधानसभा सीट से आगे ले जा सके और कोई सामूहिक विचार पैदा कर पाए.

एक शख्स के चलते अस्तित्व

जैसा दिखता है कि हर क्षेत्रीय पार्टी किसी एक शख्स के चलते अस्तित्व में आई और बाद में उसी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टियों को चुनौती दिया और मतदाताओं का समर्थन जुटाया. एआईएडीएमके हो या फिर आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, जेडीयू या फिर बीजेडी - किसी भी सियासी दल ने आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए अपना उत्तराधिकारी तैयार नहीं किया.

यही वजह है कि एक शख्स जिसने अपनी मेहनत से पार्टी को खड़ा किया उसी पर पार्टी की सारी जिम्मेदारी आन पड़ती है. कुछ मामलों में ऐसी सियासी विरासत को संभालने के लिए परिवार के सदस्य आगे आते हैं. लेकिन नवीन पटनायक, मायावती, ममता बनर्जी और यहां तक कि केजरीवाल के मामले में यह संभावना भी मुमकिन नहीं हो सकती. क्योंकि ऐसी पार्टियां उनके नेता के जीवन काल तक ही आगे बढ़ती हैं.

उसके बाद पार्टी में बिखराव को रोक पाना नामुमकिन हो जाता है. पार्टी में सब कुछ सामान्य रहने पर किसी उत्तराधिकारी का चुनाव कर लेने से ऐसी स्थिति को टाला जा सकता है.

कांशीराम अकेले ऐसा नेता थे जिन्होंने अपने जीवन काल के दौरान ही मायावती को अपना सियासी विरासत सौंप दिया था. लेकिन मायावती के बाद कौन? ये सवाल आज भी जवाब का इंतजार कर रहा है. यूपी में अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल की बात हो या फिर पंजाब में शिरोमणि अकाली दल हो, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल की बात हो- इन सभी सियासी पार्टियों के उत्तराधिकारी को लेकर कोई निंश्चितता नहीं है.

नेतृत्व के लिए तैयार करना चाहिए

यही हाल पश्चिम बंगाल में टीएमसी का है तो आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी और तेलंगाना राष्ट्रीय समिति भी इसी सवाल से जूझ रही है. वक्त आ चला है जब क्षेत्रीय पार्टियों को एक शख्स के सियासी करिश्मे की परछाई से बाहर निकल कर ज्यादा से ज्यादा नेताओं को नेतृत्व के लिए तैयार करना चाहिए. जिससे जनता का भरोसा इन नेताओं पर जग सके.

इसके साथ ही ये जिम्मेदारी उन नेताओं की भी है जिन्होंने अपनी बदौलत पार्टी को खड़ा किया और पार्टी की स्थिति जब मजबूत हो तभी उत्तराधिकारी को पार्टी की कमान सौंपना समझदारी होती है.

ओडिशा में जहां तक बात बीजेडी की है तो नवीन पटनायक के लिए अभी वक्त है कि लोग समझ सकें कि पार्टी की मजबूती कितनी है. और आपातकाल जैसी स्थिति में पार्टी को बिखराव से रोका जा सके. यहां तक कि बीजू बाबू की राजनीतिक विरासत बीजू जनता दल के जरिए उनकी अनुपस्थिति में भी निरंतर आगे बढ़ाई जा सके.