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मायावती पर आरोप लगाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं कौन?

1991 में वह बीएसपी के पहले मुस्लिम विधायक बने थे

FP Staff

सियासत और सियासतदां के रास्ते कभी सीधे नहीं होते हैं. राजनीति खुद ब खुद किसी को नायक बना देती है या खलनायक का दर्जा दे देती है. सियासत जमीनी हकीकत, मुश्किलों और अवसरों को जन्म देती है. जिस शख्स ने उस मौके को देखा और परखा वो नायक या नायिका बन गया.

1980 के मध्य में यूपी की राजनीति में सामाजिक क्रांति का प्रयोग जारी था. गली-कूचे में एक महिला अपने संघर्ष के जरिए उन लोगों की मुश्किलों को देश और दुनिया के सामने रख रही थी जो वर्षों से मुख्य धारा से कटे हुए थे.


इतिहास उस पल का इंतजार कर रहा था जब एक संघर्ष कामयाबी के आसन पर आसीन होने जा रही थी. यूपी की सत्ता पर गठबंधन की शक्ल में मायावती काबिज हुईं. राजनीति अपनी चाल चलती रही, बीएसपी का विस्तार होता रहा, अलग अलग पृष्ठभूमि से लोग बीएसपी में शामिल हुए उनमें से ही एक थे नसीमुद्दीन सिद्दीकी. लेकिन अब वो बीएसपी के लिए इतिहास बन चुके हैं.

चिट्ठी में नसीमुद्दीन का झलका दर्द

बीएसपी के कद्दावर नेता रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को जब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया तो उनकी जबान तल्ख हो गई थी, लेकिन वो काफी भावुक हो चले थे.

उन्होंने एक चिट्ठी में लिखा है कि वो मायावती, सतीश चंद्र मिश्रा के बारे में वो राज जानते हैं जो आम लोगों को जानना चाहिए. एक दुखद प्रसंग का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि कैसे उनकी बड़ी बेटी मायावती के स्वार्थ का शिकार बन गई. इलाज के अभाव में उनकी बेटी ने दम तोड़ दिया और वो कुछ न कर सके.

नसीमुद्दीन सिद्दीकी का उत्थान और पतन

नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बीएसपी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. उनके बेटे अफज़ल सिद्दीकी को भी पार्टी ने निष्कासित कर दिया है. बीएसपी के नेशनल जनरल सेक्रेटरी सतीश चंद्र मिश्रा ने नसीमुद्दीन पर टिकट देने के बदले पैसा लेने, अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है.

नसीमुद्दीन कभी बीएसपी सुप्रीमो के सबसे खास व बीएसपी के प्रमुख सिपहसालार थे. बुंदेलखंड के बांदा जिले के एक छोटे से गांव गिरवा के रहने वाले नसीमुद्दीन का परिवार राजनीति से दूर था.

कोई सियासी पहचान नहीं होने के बाद भी अपने भाई की बदौलत राजनीति में आने वाले नसीमुद्दीन ने एक समय यूपी की सियासत में अपना दायरा बेहद बड़ा कर लिया था. 1991 में वह बीएसपी के पहले मुस्लिम विधायक बने थे.

सिद्दीकी 1991 में बने विधायक

1991 में नसीमुद्दीन चुनाव जीते और बांदा और बीएसपी के पहले मुस्लिम विधायक बनें. धीरे-धीरे वे मायावती के बेहद खास हो गए. 2007 में बीएसपी की सरकार बनी तो नसीमुद्दीन मिनी मुख्यमंत्री के रूप में उभरे और 5 साल में ही पूरे परिवार को आर्थिक मजबूती दे दी.

इसी सियासी मजबूती और रसूख ने परिवार में राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा भी मजबूत की. परिवार के कई सदस्यों ने बीएसपी में राजनीतिक पारी शुरू करने की कोशिश की लेकिन नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने इसे स्वीकार नहीं किया. यहीं से परिवार में बगावत का सिलसिला शुरू हो गया.

लोग कहते थे मिनी सीएम

मायावती 1995 में पहली बार सीएम बनीं, तब नसीमुद्दीन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इसके बाद 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक मायावती की शॉर्ट टर्म गवर्नमेंट में भी वे मंत्री बने.

3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक एक साल के लिए वे कैबिनेट का भी हिस्सा रहे. इसके बाद 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 तक मायावती की फुल टाइम गवर्नमेंट में भी मंत्री रहे. मायावती का करीबी होने के कारण लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहा करते थे.

जब सिद्दीकी परिवार में शुरू हुई सियासत

2010 के एमएलसी चुनाव में मायावती ने बांदा हमीरपुर क्षेत्र से नसीमुद्दीन के बड़े भाई और पुराने बीएसपी नेता जमीरउद्दीन सिद्दीकी को प्रत्याशी घोषित कर दिया.

बताते हैं कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी को ये बात बेहद नागवार गुजरी और एक दिन बाद ही जमीरउद्दीन का टिकट कटवाकर नसीमुद्दीन ने अपनी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को एमएलसी प्रत्याशी घोषित करा दिया.

चुनाव जितवाकर अपनी पत्नी को विधान परिषद पहुंचा दिया. बस इसके बाद ही परिवार में विद्रोह हुआ और हसनुद्दीन सिद्दीकी और नसीमुद्दीन के साथ पूर्व जि‍ला पंचायत अध्यक्ष शकील अली ने सपा का दामन थामकर नसीमुद्दीन की सियासी जमीन में भूचाल ला दिया.